KAINCHI

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Public Group 5 members 10 Posts Literature

A Group meant to re-assert Bhartiya version of Feminisim.

  • ये जो आजकल के छोटे छोटे नेता और पत्तलकार जो जरा सी राजनैतिक सीलन या दलदल होते ही पनपने लगते हैं और भिन भिन करते हुए मासूम लोगों का ख़ून पीते हैं , डंक मारते हैं और समाज और देश को रुग्ण बनाते हैं इन पर ब्लैक हिट का छिड़काव जनहित और राष्ट्रहित में ज़रूरी है.... क्यूंकि ये इतने बे..... गैरत और बे..... शरम हैं कि कुख्यात अपराधियों के मरने पर भी रूदाली रुंदन करते हैं.... अजगर और कोबरा भी इनके आगे फेल हैं...... कद इनका बहुत छोटा ...... लेकिन इनके लालच का पेट बहुत बड़ा....... अपने लालच में ये लोगों का पास्ट , प्रेजेन्ट और फ्यूचर सब कुछ निगल जाए ......!!!!!!
    ये जो आजकल के छोटे छोटे नेता और पत्तलकार जो जरा सी राजनैतिक सीलन या दलदल होते ही पनपने लगते हैं और भिन भिन करते हुए मासूम लोगों का ख़ून पीते हैं , डंक मारते हैं और समाज और देश को रुग्ण बनाते हैं इन पर ब्लैक हिट का छिड़काव जनहित और राष्ट्रहित में ज़रूरी है.... क्यूंकि ये इतने बे..... गैरत और बे..... शरम हैं कि कुख्यात अपराधियों के मरने पर भी रूदाली रुंदन करते हैं.... अजगर और कोबरा भी इनके आगे फेल हैं...... कद इनका बहुत छोटा ...... लेकिन इनके लालच का पेट बहुत बड़ा....... अपने लालच में ये लोगों का पास्ट , प्रेजेन्ट और फ्यूचर सब कुछ निगल जाए ......!!!!!!
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  • Iराजनीति या टुच्ची नीति..... बहन ने ही भाई को हलाल कर दिया...... बाप के होते हुए बेटों को बाप के नाम से बेदखल कर दिया...... सुना था कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय...... लेकिन यहां तो किसका बीज .... कौन सी खाद .... कौन सा पानी ..... कौन सा फल ...ये तो घोटाला हो गया .... सब कुछ लालच की कीचड़ में बदरंग हो गया..... ना रहा घोड़ा ना रहा हाथी .... ना ही गधा ...... चमचों के शोर में ये तो खच्चर बन गया ...... एक नई आंधी का गुबार देश के विकास रथ को रोकने को तैयार हो गया ...... दुलत्ती खाने वाले आजू बाजू बैठे हों भले ही ..... खच्चर को हांकने वाले भी मुस्तैद हैं कि जनता जाग चुकी है चाय पीकर अब ...... अब खच्चर नाही...... बुलडोजर अपना ट्रेंडी हो गया !!!!!

    मनीषा
    Iराजनीति या टुच्ची नीति..... बहन ने ही भाई को हलाल कर दिया...... बाप के होते हुए बेटों को बाप के नाम से बेदखल कर दिया...... सुना था कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय...... लेकिन यहां तो किसका बीज .... कौन सी खाद .... कौन सा पानी ..... कौन सा फल ...ये तो घोटाला हो गया .... सब कुछ लालच की कीचड़ में बदरंग हो गया..... ना रहा घोड़ा ना रहा हाथी .... ना ही गधा ...... चमचों के शोर में ये तो खच्चर बन गया ...... एक नई आंधी का गुबार देश के विकास रथ को रोकने को तैयार हो गया ...... दुलत्ती खाने वाले आजू बाजू बैठे हों भले ही ..... खच्चर को हांकने वाले भी मुस्तैद हैं कि जनता जाग चुकी है चाय पीकर अब ...... अब खच्चर नाही...... बुलडोजर अपना ट्रेंडी हो गया !!!!! मनीषा
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  • एक कहावत थी धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का ...... लेकिन आजकल के ज़माने में कुछ गधे लोट भी होते हैं जो मालिकों के चरणों में इतना लोट ते हैं कि उन्हें अपना अब्बू अम्मी समझने लगते हैं , और लोट ते लोट ते दिमाग की लालटेन भी बुझा देते हैं , अब्बू अम्मी जहां कहें वहीं लोटा लेकर बैठ जाते हैं ..... बिना अपने दिमाग की लालटेन जलाए देश में आग लगाने की फ़िराक में लगे रहते हैं चाहे वो हज़ार किलो विस्फोटक सामग्री के द्वारा हो या ज़हरीले नफ़रत की उल्टियां , या सनातन से सौतेलापन ...... सठियाए हुए गधे लोट तो और ख़तरनाक ....
    अपनी नाक तो कटा कर ही लोट ते हैं , बुरस्ट अचार की कीचड़ में ... बोले तो सु .. वर भी सु सु कर सरमा जाएं लोटने की कला में .... अब ये गधे लोट तो केवल लोटते ही नहीं ....बल्कि खोदते भी हैं देश की जड़ों को ...... अपनी चाटुकारिता की पटुता साबित करते करते .... इतना चाटने में माहिर हो जाते हैं कि गुड़ और गोबर का अंतर ही भूल जाते हैं और देश को बारूद के ढेर पर रख ख़ाक में करने की कवायद में लग जाते हैं..… ये याद दिलाना ज़रूरी इन्हें कि धोबी पाट क्या होता है ..... जब पड़ता है पिछवाड़े तो अब्बू अम्मी भी साथ छोड़ कर नानी के घर ई .... डली खाने टल्ली होकर ई....टल्ली चले जायेंगे...... और ये गधे लोट जनता के आगे कितने ही लोटे बस फिर तो लोटा लेकर दौड़ते ही नज़र आएंगे , तोड़ो यात्रा में अब्बा की खालाओं के साथ गुफ्तगू तुम्हारे लिए सब गु... कर जाएगी ...... तो भाई लोट को बांधो और थोड़ा ध्यान करो ... इस मोड़ पे मौड़ी ना मिले दद्दा , दुलत्ती मिल जाएगी या फिर धोबी पाट.... तो गधे लोट कहीं लमलोट ना हो जाएं, तो बांधो लंगोट और हो जाओ गोल .... तुम्हें तो ७२ हुरें भी ना मिले , क्यूंकि बरश्ट अचार की राह बस दोज़ख़ तक जाती है ........ फिर बस यही जपना पड़ेगा .... मुझे तो तेरी लात लग गई , उई उई ......
    एक कहावत थी धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का ...... लेकिन आजकल के ज़माने में कुछ गधे लोट भी होते हैं जो मालिकों के चरणों में इतना लोट ते हैं कि उन्हें अपना अब्बू अम्मी समझने लगते हैं , और लोट ते लोट ते दिमाग की लालटेन भी बुझा देते हैं , अब्बू अम्मी जहां कहें वहीं लोटा लेकर बैठ जाते हैं ..... बिना अपने दिमाग की लालटेन जलाए देश में आग लगाने की फ़िराक में लगे रहते हैं चाहे वो हज़ार किलो विस्फोटक सामग्री के द्वारा हो या ज़हरीले नफ़रत की उल्टियां , या सनातन से सौतेलापन ...... सठियाए हुए गधे लोट तो और ख़तरनाक .... अपनी नाक तो कटा कर ही लोट ते हैं , बुरस्ट अचार की कीचड़ में ... बोले तो सु .. वर भी सु सु कर सरमा जाएं लोटने की कला में .... अब ये गधे लोट तो केवल लोटते ही नहीं ....बल्कि खोदते भी हैं देश की जड़ों को ...... अपनी चाटुकारिता की पटुता साबित करते करते .... इतना चाटने में माहिर हो जाते हैं कि गुड़ और गोबर का अंतर ही भूल जाते हैं और देश को बारूद के ढेर पर रख ख़ाक में करने की कवायद में लग जाते हैं..… ये याद दिलाना ज़रूरी इन्हें कि धोबी पाट क्या होता है ..... जब पड़ता है पिछवाड़े तो अब्बू अम्मी भी साथ छोड़ कर नानी के घर ई .... डली खाने टल्ली होकर ई....टल्ली चले जायेंगे...... और ये गधे लोट जनता के आगे कितने ही लोटे बस फिर तो लोटा लेकर दौड़ते ही नज़र आएंगे , तोड़ो यात्रा में अब्बा की खालाओं के साथ गुफ्तगू तुम्हारे लिए सब गु... कर जाएगी ...... तो भाई लोट को बांधो और थोड़ा ध्यान करो ... इस मोड़ पे मौड़ी ना मिले दद्दा , दुलत्ती मिल जाएगी या फिर धोबी पाट.... तो गधे लोट कहीं लमलोट ना हो जाएं, तो बांधो लंगोट और हो जाओ गोल .... तुम्हें तो ७२ हुरें भी ना मिले , क्यूंकि बरश्ट अचार की राह बस दोज़ख़ तक जाती है ........ फिर बस यही जपना पड़ेगा .... मुझे तो तेरी लात लग गई , उई उई ......
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  • रिश्ते हांडी या प्रेशर कुकर -

    पुराने समय में हंडिया या पतीली में खाना बनाते थे और धीमे धीमे पकते खाने की सौंधी सौंधी खुशबू
    मन से लेकर आत्मा को भी तृप्त कर देती थी और नाक से होकर गुजरती हुई जीभ के स्वाद को जाग्रत कर मुंह में पानी ला देती थी ! हांडी में पका खाना हाज़मे को भी दुरुस्त रखता था और जो आजकल की नई नवेली बीमारियां और दुश्वारियां हैं उनका तो नाम पता तक इंसान नहीं जानता था !

    फिर आया प्रेशर कुकर का ज़माना .... जो ना जाने कितने और प्रेशर को साथ लेकर आया... खाना तो जल्दी पकता है
    लेकिन कितनी देर में पचता है ये बात दीगर है ! और कितनी बीमारियों को इंस्टॉल कर जाता है इस पर तो सोचा ही नहीं गया शायद ..अलबत्ता ऐसे ऐसे अतरंगी रोगों को जन्म दे गया जिनका नाम भी बोले कोई तो लगे कि बोलने वाला अफलातून की औलाद है !


    आजकल की दुनिया में ऐसा ही कुछ हाल रिश्तों का हो चुका है ...
    पहले हांडी में धीमे धीमे पकते रिश्तों की सौंधी सौंधी खुशबू ज़िंदगी को चिरकाल तक महकाती रहती थी, वो कहते हैं... ना ज़िंदगी के साथ भी ज़िंदगी के बाद भी.... ऐसे अमर और अटूट रिश्ते जिनमें चाहे कोई आंख से दूर हो पर दिल से दूर ना होता था ... वीडियो कॉल का ज़माना ना था , पर बिन देखे भी एक दूसरे का दीदार होता था , एक दूसरे की अनकही बातों का भी खयाल होता था.... कहते हैं कि काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है ... यदि एक बार धोखा मिलता भी था तो आगे इंसान दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता है कि तर्ज़ पर संभल कर नए रिश्ते बनाता था......
    लेकिन आजकल के रिश्ते भी प्रेशर कुकर जैसे हो गए हैं , गैस पर रखते साथ ही सड़कछाप आवारा जैसे सीटी बजने लगती है .... लव एट फर्स्ट साइट ... और कुछ समय के बाद ही ....
    तू लग जा साइड... इन प्रेशर कुकर रिश्तों की प्रॉब्लम केवल ब्रेक अप की ही नहीं बल्कि उसके बाद जो वो अंग्रेजी के हग से हिंदी वाले वर्जिन पर आ जाते हैं और रिश्तों की बदहजमी को हलक से उलट ते हैं और ये नफ़रत की नाली अपराधों के नाले में बदल जाती है .... क्रूरता का तांडव ये जो चारों ओर चल रहा है , चेहरे और नाम बदल रहे हैं और मोडस ऑपरेंडी ... बाकी कहानी सेम .....
    बुलबुले जैसे आकर्षण को अटल प्रेम समझकर अपने विश्वास , आस्था , सम्मान को यूं ही हर ऐरे गैरे नत्थुखैरे पर ज़ाया करने वाले
    गलत जगह पर गलत व्यक्ति पर अपने भावों की बरसात करने वाले कभी रिश्तों की परिणीति पर नहीं पहुंचते बल्कि ऐसे लोग समाज में अपने सड़े गले रिश्तों की दुर्गंध से दूसरों का भी जीना मुहाल कर देते हैं!

    और फिर ये लोग या तो सूटकेस में पाए जाते हैं या .फिर नफरतों की आंधियों से घिर जाते हैं और समाज को भी दूषित करते हैं !

    गिरगिट से भी ज़्यादा तेज़ी से पार्टनर्स बदलने वालों को यदि सच में प्रेम रंग में रंगना हो तो उन्हें अनंत प्रेम के सागर के स्रोतों को समझने की आवश्यकता है जहां एक ने समुंदर पर पुल बना दिया तो दूजे ने कई जन्म लेकर कठिन तप कर अपने मनचाहे वर की प्राप्ति की और तीजा जो सुदर्शन चक्र होते हुए भी बांसुरी बजाता है और युग युगांतर तक जो निरंतर प्रेम के झरने सा निष्काम प्रेम के संदेश की प्रेरणा देता है.......!

    फिल्मों और वेब सिरीज़ के नकली हीरो के नकली प्रेम को फ़ॉलो करके तो ज़िंदगी में बस cob web hi मिलेंगे और ज़िंदगी मकड़ जाल में फंसकर रह जाएगी और असली हीरो को फ़ॉलो करोगे तो ज़िंदगी उजाले से रोशन हो जाएगी .....

    खीर तो भाई हांडी या पतीले में धीमे धीमे सौंधी सौंधी ही पकती है , और असली हीर भी भइया सौंधे सौंधे धीमे धीमे बनते रिश्तों से ही मिलती है प्रेशर कुकर जैसे सीटी बजाते रिश्ते तो बस आवारगी की बानगी होती है !!!!!
    रिश्ते हांडी या प्रेशर कुकर - पुराने समय में हंडिया या पतीली में खाना बनाते थे और धीमे धीमे पकते खाने की सौंधी सौंधी खुशबू मन से लेकर आत्मा को भी तृप्त कर देती थी और नाक से होकर गुजरती हुई जीभ के स्वाद को जाग्रत कर मुंह में पानी ला देती थी ! हांडी में पका खाना हाज़मे को भी दुरुस्त रखता था और जो आजकल की नई नवेली बीमारियां और दुश्वारियां हैं उनका तो नाम पता तक इंसान नहीं जानता था ! फिर आया प्रेशर कुकर का ज़माना .... जो ना जाने कितने और प्रेशर को साथ लेकर आया... खाना तो जल्दी पकता है लेकिन कितनी देर में पचता है ये बात दीगर है ! और कितनी बीमारियों को इंस्टॉल कर जाता है इस पर तो सोचा ही नहीं गया शायद ..अलबत्ता ऐसे ऐसे अतरंगी रोगों को जन्म दे गया जिनका नाम भी बोले कोई तो लगे कि बोलने वाला अफलातून की औलाद है ! आजकल की दुनिया में ऐसा ही कुछ हाल रिश्तों का हो चुका है ... पहले हांडी में धीमे धीमे पकते रिश्तों की सौंधी सौंधी खुशबू ज़िंदगी को चिरकाल तक महकाती रहती थी, वो कहते हैं... ना ज़िंदगी के साथ भी ज़िंदगी के बाद भी.... ऐसे अमर और अटूट रिश्ते जिनमें चाहे कोई आंख से दूर हो पर दिल से दूर ना होता था ... वीडियो कॉल का ज़माना ना था , पर बिन देखे भी एक दूसरे का दीदार होता था , एक दूसरे की अनकही बातों का भी खयाल होता था.... कहते हैं कि काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है ... यदि एक बार धोखा मिलता भी था तो आगे इंसान दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता है कि तर्ज़ पर संभल कर नए रिश्ते बनाता था...... लेकिन आजकल के रिश्ते भी प्रेशर कुकर जैसे हो गए हैं , गैस पर रखते साथ ही सड़कछाप आवारा जैसे सीटी बजने लगती है .... लव एट फर्स्ट साइट ... और कुछ समय के बाद ही .... तू लग जा साइड... इन प्रेशर कुकर रिश्तों की प्रॉब्लम केवल ब्रेक अप की ही नहीं बल्कि उसके बाद जो वो अंग्रेजी के हग से हिंदी वाले वर्जिन पर आ जाते हैं और रिश्तों की बदहजमी को हलक से उलट ते हैं और ये नफ़रत की नाली अपराधों के नाले में बदल जाती है .... क्रूरता का तांडव ये जो चारों ओर चल रहा है , चेहरे और नाम बदल रहे हैं और मोडस ऑपरेंडी ... बाकी कहानी सेम ..... बुलबुले जैसे आकर्षण को अटल प्रेम समझकर अपने विश्वास , आस्था , सम्मान को यूं ही हर ऐरे गैरे नत्थुखैरे पर ज़ाया करने वाले गलत जगह पर गलत व्यक्ति पर अपने भावों की बरसात करने वाले कभी रिश्तों की परिणीति पर नहीं पहुंचते बल्कि ऐसे लोग समाज में अपने सड़े गले रिश्तों की दुर्गंध से दूसरों का भी जीना मुहाल कर देते हैं! और फिर ये लोग या तो सूटकेस में पाए जाते हैं या .फिर नफरतों की आंधियों से घिर जाते हैं और समाज को भी दूषित करते हैं ! गिरगिट से भी ज़्यादा तेज़ी से पार्टनर्स बदलने वालों को यदि सच में प्रेम रंग में रंगना हो तो उन्हें अनंत प्रेम के सागर के स्रोतों को समझने की आवश्यकता है जहां एक ने समुंदर पर पुल बना दिया तो दूजे ने कई जन्म लेकर कठिन तप कर अपने मनचाहे वर की प्राप्ति की और तीजा जो सुदर्शन चक्र होते हुए भी बांसुरी बजाता है और युग युगांतर तक जो निरंतर प्रेम के झरने सा निष्काम प्रेम के संदेश की प्रेरणा देता है.......! फिल्मों और वेब सिरीज़ के नकली हीरो के नकली प्रेम को फ़ॉलो करके तो ज़िंदगी में बस cob web hi मिलेंगे और ज़िंदगी मकड़ जाल में फंसकर रह जाएगी और असली हीरो को फ़ॉलो करोगे तो ज़िंदगी उजाले से रोशन हो जाएगी ..... खीर तो भाई हांडी या पतीले में धीमे धीमे सौंधी सौंधी ही पकती है , और असली हीर भी भइया सौंधे सौंधे धीमे धीमे बनते रिश्तों से ही मिलती है प्रेशर कुकर जैसे सीटी बजाते रिश्ते तो बस आवारगी की बानगी होती है !!!!!
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  • भोकाल दुलत्ती का! -

    कहते हैं कि गधों को दुलत्ती मारने की आदत होती है लेकिन कुछ दु.. लत को दुलत्ती खाए बिना अक्ल नहीं आती ... अब भला खानदानी गधे से ज़्यादा बढ़िया दुलत्ती कौन खिला सकता है..... पहली बार देखने को मिला इस ब्रांडेड युग में कि गधे भी ब्रांडेड होते हैं और उनकी दुलत्ती भी... अपनी ज़रूरत से अधिक महत्वकांक्षा और सही कहें तो लाल अच जब कब्र में पैर पड़े होने पर भी हावी रहता हो और देश और समाज को दरकिनार कर दिया जाता हो तो ऐसे लोगों को किनारे लगते देर नहीं लगती ....ऐसे लोग ना केवल हाशिए पर आ जाते हैं बल्कि लालच के नाले में कीड़े की तरह डूब कर मर जाते हैं और उनकी स्थिति, ना माया मिली ना राम जैसी हो जाती है ..

    आजकल के अज पाब भी ऐसा ही कर रहे .....अरे कौन इन्हें समझाए जो मौज कर रहे कर लो... लेकिन अब भी इनकी आत्मा घोड़े बेचकर सो रही हो जैसे ,तो ऐसे अज़ पाव को मज करने भेज देना चाहिए.... बड़े बुज़ुर्ग ऐसे को ही पढ़े लिखे गंवार कहते होंगे , सिस्टम का अचार डालकर खैनी चाट कर ये ता ता थईया कब तक चलेगी और ईमानदार की बैंड बजाकर ये भूल ना जाना कि ये देश है वीर जवानों का , और इनकी सटक ली तो भाई सारे नाग नागिन डांस करते नज़र आएंगे ...

    हमारा डॉग, डॉग और सड्डा डॉग टॉमी.... ट्विन टॉवर को तोड़ने में अलग नियम और हल्द्वानी की अवैध बस्ती के लिए कुछ और ....
    कहां से आते हैं ऐसे महान आत्मन.... अंग्रेजों से भी सौ कदम आगे .... गब्बर सिंह , मोगैंबो सब के सब गम खाके गश खा जाएं इन सफेदपोशों के आगे तो...



    महादेव की भक्ति की बीन पर सारे सांप बिच्छू नाचते नाचते गर्दिश की टोकरी में बंद होकर रह जाएंगे .....फिर ना कहियो भइया
    हमें कि इस महान संस्कृति के रक्षकों ने इन कोबराओं को कैबरे करा दिन दहाड़े इनकी कुत्सित मानसिकता को सफ़ाचट कर दिया.....!!!!!
    भोकाल दुलत्ती का! - कहते हैं कि गधों को दुलत्ती मारने की आदत होती है लेकिन कुछ दु.. लत को दुलत्ती खाए बिना अक्ल नहीं आती ... अब भला खानदानी गधे से ज़्यादा बढ़िया दुलत्ती कौन खिला सकता है..... पहली बार देखने को मिला इस ब्रांडेड युग में कि गधे भी ब्रांडेड होते हैं और उनकी दुलत्ती भी... अपनी ज़रूरत से अधिक महत्वकांक्षा और सही कहें तो लाल अच जब कब्र में पैर पड़े होने पर भी हावी रहता हो और देश और समाज को दरकिनार कर दिया जाता हो तो ऐसे लोगों को किनारे लगते देर नहीं लगती ....ऐसे लोग ना केवल हाशिए पर आ जाते हैं बल्कि लालच के नाले में कीड़े की तरह डूब कर मर जाते हैं और उनकी स्थिति, ना माया मिली ना राम जैसी हो जाती है .. आजकल के अज पाब भी ऐसा ही कर रहे .....अरे कौन इन्हें समझाए जो मौज कर रहे कर लो... लेकिन अब भी इनकी आत्मा घोड़े बेचकर सो रही हो जैसे ,तो ऐसे अज़ पाव को मज करने भेज देना चाहिए.... बड़े बुज़ुर्ग ऐसे को ही पढ़े लिखे गंवार कहते होंगे , सिस्टम का अचार डालकर खैनी चाट कर ये ता ता थईया कब तक चलेगी और ईमानदार की बैंड बजाकर ये भूल ना जाना कि ये देश है वीर जवानों का , और इनकी सटक ली तो भाई सारे नाग नागिन डांस करते नज़र आएंगे ... हमारा डॉग, डॉग और सड्डा डॉग टॉमी.... ट्विन टॉवर को तोड़ने में अलग नियम और हल्द्वानी की अवैध बस्ती के लिए कुछ और .... कहां से आते हैं ऐसे महान आत्मन.... अंग्रेजों से भी सौ कदम आगे .... गब्बर सिंह , मोगैंबो सब के सब गम खाके गश खा जाएं इन सफेदपोशों के आगे तो... महादेव की भक्ति की बीन पर सारे सांप बिच्छू नाचते नाचते गर्दिश की टोकरी में बंद होकर रह जाएंगे .....फिर ना कहियो भइया हमें कि इस महान संस्कृति के रक्षकों ने इन कोबराओं को कैबरे करा दिन दहाड़े इनकी कुत्सित मानसिकता को सफ़ाचट कर दिया.....!!!!!
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  • बकलोल बुद्धिजीवी - जो डकैत और बकैत होते हैं , इनके लिए लठैत की ज़रूरत होती ही है भइया ....
    वो क्या है ना कि बड़े बुजुर्ग कह गए हैं ना कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते.... और हमारे तुलसी बाबा भी तो गागर में सागर की तरह - भय बिनु होत ना प्रीति..… कह गए हैं , इन बकलोल पप्पुओं को तो सही समय पर सही डोज़ मिलना ज़रूरी है वो अपने बच्चन साहब भी कहते हैं ना ... दो बूंद ज़िंदगी की ... उसी तरह से इन चिरकुटों के लिए... दो सोटे सुबह और शाम.... ज़रूरी हैं .....अपने कलम की ...…। ज़िन्दगी के साथ भी , ज़िन्दगी के बाद भी , ताकि आने वाले कई जन्मों तक ये हिमाकत फिर से ना करें । सुन्दर काण्ड में भी प्रसंग आता है कि जब हनुमान जी लंका से वापिस आ रहे थे तो उन्होंने इतनी ज़ोर से पैर रखा ज़मीन पर की उसकी धमक से राक्षसियों के गर्भ गिर गए , ये एक प्रतीकात्मक रूप में लें तो जैसे कहते हैं ना अंग्रेजी में To Nip In The Bud , इसी तरह बुराई अंश मात्र भी हो तो उसको इग्नोर ना करके जड़ से ख़तम कर दो ... क्यूंकि भइया ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी ....और यहां तो बांसुरी नहीं टूटे ढोल बज रहे वो भी बेसुरे अलाप के संग .... इसीलिए इन बेसुरों को सुर ताल सिखाने की ज़रूरत वो भी इन्हें खूब अच्छे से बजा बजा कर ..…जब तक ये भारत में रत ना हो जाएं और सनातन की तान ना लगाएं .... बजाते रहो इनकी ......वैसे भी जिनका न कोई आधार ना कोई धार , ठहरे पानी के काईं जैसे काइंया, कहां शुद्ध खरे सोने और गंगाजल जैसों के सामने ठहर पाएंगे , बस ज़रा देर लगेगी दूध का दूध और पानी का पानी हो ही जायेगा ..... बस ना जाने कितने बुद्धिजीवियों की कलई उतरेगी ... हम इंतज़ार करेंगे ..... मोदी जी के जादू ने पप्पू पप्पी को तो तिलकधारी बनाकर आरती करवा ही दी , अब बाकी चमचों का क्या होगा कालिया...... पिक्चर अभी बाकी है दोस्त .......!
    बकलोल बुद्धिजीवी - जो डकैत और बकैत होते हैं , इनके लिए लठैत की ज़रूरत होती ही है भइया .... वो क्या है ना कि बड़े बुजुर्ग कह गए हैं ना कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते.... और हमारे तुलसी बाबा भी तो गागर में सागर की तरह - भय बिनु होत ना प्रीति..… कह गए हैं , इन बकलोल पप्पुओं को तो सही समय पर सही डोज़ मिलना ज़रूरी है वो अपने बच्चन साहब भी कहते हैं ना ... दो बूंद ज़िंदगी की ... उसी तरह से इन चिरकुटों के लिए... दो सोटे सुबह और शाम.... ज़रूरी हैं .....अपने कलम की ...…। ज़िन्दगी के साथ भी , ज़िन्दगी के बाद भी , ताकि आने वाले कई जन्मों तक ये हिमाकत फिर से ना करें । सुन्दर काण्ड में भी प्रसंग आता है कि जब हनुमान जी लंका से वापिस आ रहे थे तो उन्होंने इतनी ज़ोर से पैर रखा ज़मीन पर की उसकी धमक से राक्षसियों के गर्भ गिर गए , ये एक प्रतीकात्मक रूप में लें तो जैसे कहते हैं ना अंग्रेजी में To Nip In The Bud , इसी तरह बुराई अंश मात्र भी हो तो उसको इग्नोर ना करके जड़ से ख़तम कर दो ... क्यूंकि भइया ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी ....और यहां तो बांसुरी नहीं टूटे ढोल बज रहे वो भी बेसुरे अलाप के संग .... इसीलिए इन बेसुरों को सुर ताल सिखाने की ज़रूरत वो भी इन्हें खूब अच्छे से बजा बजा कर ..…जब तक ये भारत में रत ना हो जाएं और सनातन की तान ना लगाएं .... बजाते रहो इनकी ......वैसे भी जिनका न कोई आधार ना कोई धार , ठहरे पानी के काईं जैसे काइंया, कहां शुद्ध खरे सोने और गंगाजल जैसों के सामने ठहर पाएंगे , बस ज़रा देर लगेगी दूध का दूध और पानी का पानी हो ही जायेगा ..... बस ना जाने कितने बुद्धिजीवियों की कलई उतरेगी ... हम इंतज़ार करेंगे ..... मोदी जी के जादू ने पप्पू पप्पी को तो तिलकधारी बनाकर आरती करवा ही दी , अब बाकी चमचों का क्या होगा कालिया...... पिक्चर अभी बाकी है दोस्त .......!
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  • कायदे से देखा जाए तो वैश्यायों से बदतर होती हैं तथाकथित आधुनिक सोच वाली फेमिनिस्ट....जो केवल मजबूरी में और जबरन अपना तन बेचती है ..... लेकिन ये फेक फेमिनिस्ट तो अपनी आत्मा तक को तार तार कर दूषित कर देती हैं जिनका ना कोई धर्म है ना ईमान , जानबूझकर दूसरी महिलाओं के घर को तोड़ती हैं ..... कहते हैं कि सात घर तो चुड़ैल भी छोड़ देती है ... लेकिन इन बलाओं से क्या कोई बच सकता है ?????? तंत्र में जो डाकिनी , शाकिनी का ज़िक्र आता है , शायद वो भी इन्हें देखकर तौबा कर जाएं .... लेकिन ये तो वो बला हैं जो झूठ से सच का क़त्ल करती हैं!!!!! "प्रेम नाम है मेरा मैं वो बला हूं जो शीशे से पत्थर को तोड़ता हूं ...." कुछ वैसा ही ! मीडिया रिसर्च करके देख लें कितने ऐसे किस्से मिलेंगे जहां झूठी पॉपुलैरिटी के लालच में कितने पुरुषों और लड़कों को फेमिनिज्म की वेदी पर बलि कर दिया गया !!!!! सबसे डरावना पहलू तो ये है कि ये छदम नारीवाद आम घरों में और जनमानस की सोच में टीवी सीरियल्स और एक प्रोपेगंडा के तहत प्रवेश कर चुका है! बेटी होना ज़रूरी है एक , बेटी ही माता पिता का ख़याल रख सकती है .... लेकिन क्या बहुएं किसी की बेटियां नहीं ......!

    करुणा , केयर , स्नेह जिम्मेदारी संभालना आदि ये सारे सॉफ्ट स्किल्स लड़कियों में , भगवान स्वत: ही जन्म से भर देता है लेकिन इन फेमिनिस्ट की हार्ड ड्रिंक इनके सॉफ्ट स्किल्स को फ़्लैश कर देती है और जो रह जाता है इनमें वो है गटर जैसी बदबूदार मानसिकता ...... तभी तो इन्हें एक पुरुष में कोई रिश्ता नज़र नहीं आता , कुछ नज़र आता है इन्हें , तो बस , हर पुरुष में सिर्फ एक मर्द नज़र आता है वो भी शोषक , बलात्कारी अपराधी , और ये जो अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझ पुरुषों की इज़्ज़त का चीर हरण करती हैं .... उसका कौन हिसाब देगा ????? पोलिस स्टेशन न जाने कितनी फाइल्स झूठे केसों से भरी पड़ी हैं चाहे वो इव टीजिंग के नाम पर हों या दहेज उत्पीड़न या बलात्कार के नाम पर ...... ।इन्हीं लोगों के कारण सही लोगों के लिए न्याय पाना दुष्कर हो जाता है।


    आधी से अधिक फेमिनिस्ट के सिम्पटम्स स्त्रियों से अधिक मर्दों जैसे होते हैं , उनका पहनावा , बोली आदि केवल उनकी हीन भावना का ही प्रदर्शन करते हैं .... जैसे कहते हैं चौबे जी गए थे छब्बे जी बनने और लौटे दुबे जी बनकर .... पुरुषों का विरोध करते करते ना ये स्त्री रह पाती ना मर्द ..... अब आगे क्या ही कहें.... छाप तिलक सब छीनी रे ..... ! सबरीमाला मामले में ये फेमिनिस्ट चिल्ला चिल्ला कर मंदिर में पूजा करने की बात कर रही थीं , और हक़ीक़त में पूजा , अर्चना , श्रद्धा से इन डाकनियों का चाहे कोई वास्ता ना हो !!!!!!

    क्या इनके मुंह में दही जम जाते हैं या ज़बान पर ताले लग जाते हैं जब दूसरे पंथों की बात आती है !!!!!! क्यूं किसी मस्ज़िद में किसी स्त्री की एंट्री नहीं होती .....क्यूं वेटिकन सिटी में कोई पोपनी बनती ...... क्या है हिम्मत इनमें ये बोलने का !!!!!


    मैनुस्ट्रेशन पीरियड में मंदिरों में प्रवेश करने के लिए उत्पात मचाने वाली क्या घंटा भी जानती हैं सनातन के बारे में ?????? जिस संस्कृति के रंग में रंगकर ये पितृसत्तात्मक व्यवस्था या समाज के ख़िलाफ़ गले फाड़ती हैं , सही तो ये है बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद , बोले तो जिस समाज में ये नहीं पता मां के कितने पति , कौन सा बच्चा किस पिता की संतान , तो ऐसे बिखरे समाज को पिता का महत्व कैसे पता होगा .....परिवार , पिता , माता का एक धागे में गूंथे परिवार का महत्व एक संस्कारवान व्यक्ति ही समझ सकता है जैसे हीरे की कद्र एक जौहरी ही कर सकता है !!!!!
    कायदे से देखा जाए तो वैश्यायों से बदतर होती हैं तथाकथित आधुनिक सोच वाली फेमिनिस्ट....जो केवल मजबूरी में और जबरन अपना तन बेचती है ..... लेकिन ये फेक फेमिनिस्ट तो अपनी आत्मा तक को तार तार कर दूषित कर देती हैं जिनका ना कोई धर्म है ना ईमान , जानबूझकर दूसरी महिलाओं के घर को तोड़ती हैं ..... कहते हैं कि सात घर तो चुड़ैल भी छोड़ देती है ... लेकिन इन बलाओं से क्या कोई बच सकता है ?????? तंत्र में जो डाकिनी , शाकिनी का ज़िक्र आता है , शायद वो भी इन्हें देखकर तौबा कर जाएं .... लेकिन ये तो वो बला हैं जो झूठ से सच का क़त्ल करती हैं!!!!! "प्रेम नाम है मेरा मैं वो बला हूं जो शीशे से पत्थर को तोड़ता हूं ...." कुछ वैसा ही ! मीडिया रिसर्च करके देख लें कितने ऐसे किस्से मिलेंगे जहां झूठी पॉपुलैरिटी के लालच में कितने पुरुषों और लड़कों को फेमिनिज्म की वेदी पर बलि कर दिया गया !!!!! सबसे डरावना पहलू तो ये है कि ये छदम नारीवाद आम घरों में और जनमानस की सोच में टीवी सीरियल्स और एक प्रोपेगंडा के तहत प्रवेश कर चुका है! बेटी होना ज़रूरी है एक , बेटी ही माता पिता का ख़याल रख सकती है .... लेकिन क्या बहुएं किसी की बेटियां नहीं ......! करुणा , केयर , स्नेह जिम्मेदारी संभालना आदि ये सारे सॉफ्ट स्किल्स लड़कियों में , भगवान स्वत: ही जन्म से भर देता है लेकिन इन फेमिनिस्ट की हार्ड ड्रिंक इनके सॉफ्ट स्किल्स को फ़्लैश कर देती है और जो रह जाता है इनमें वो है गटर जैसी बदबूदार मानसिकता ...... तभी तो इन्हें एक पुरुष में कोई रिश्ता नज़र नहीं आता , कुछ नज़र आता है इन्हें , तो बस , हर पुरुष में सिर्फ एक मर्द नज़र आता है वो भी शोषक , बलात्कारी अपराधी , और ये जो अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझ पुरुषों की इज़्ज़त का चीर हरण करती हैं .... उसका कौन हिसाब देगा ????? पोलिस स्टेशन न जाने कितनी फाइल्स झूठे केसों से भरी पड़ी हैं चाहे वो इव टीजिंग के नाम पर हों या दहेज उत्पीड़न या बलात्कार के नाम पर ...... ।इन्हीं लोगों के कारण सही लोगों के लिए न्याय पाना दुष्कर हो जाता है। आधी से अधिक फेमिनिस्ट के सिम्पटम्स स्त्रियों से अधिक मर्दों जैसे होते हैं , उनका पहनावा , बोली आदि केवल उनकी हीन भावना का ही प्रदर्शन करते हैं .... जैसे कहते हैं चौबे जी गए थे छब्बे जी बनने और लौटे दुबे जी बनकर .... पुरुषों का विरोध करते करते ना ये स्त्री रह पाती ना मर्द ..... अब आगे क्या ही कहें.... छाप तिलक सब छीनी रे ..... ! सबरीमाला मामले में ये फेमिनिस्ट चिल्ला चिल्ला कर मंदिर में पूजा करने की बात कर रही थीं , और हक़ीक़त में पूजा , अर्चना , श्रद्धा से इन डाकनियों का चाहे कोई वास्ता ना हो !!!!!! क्या इनके मुंह में दही जम जाते हैं या ज़बान पर ताले लग जाते हैं जब दूसरे पंथों की बात आती है !!!!!! क्यूं किसी मस्ज़िद में किसी स्त्री की एंट्री नहीं होती .....क्यूं वेटिकन सिटी में कोई पोपनी बनती ...... क्या है हिम्मत इनमें ये बोलने का !!!!! मैनुस्ट्रेशन पीरियड में मंदिरों में प्रवेश करने के लिए उत्पात मचाने वाली क्या घंटा भी जानती हैं सनातन के बारे में ?????? जिस संस्कृति के रंग में रंगकर ये पितृसत्तात्मक व्यवस्था या समाज के ख़िलाफ़ गले फाड़ती हैं , सही तो ये है बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद , बोले तो जिस समाज में ये नहीं पता मां के कितने पति , कौन सा बच्चा किस पिता की संतान , तो ऐसे बिखरे समाज को पिता का महत्व कैसे पता होगा .....परिवार , पिता , माता का एक धागे में गूंथे परिवार का महत्व एक संस्कारवान व्यक्ति ही समझ सकता है जैसे हीरे की कद्र एक जौहरी ही कर सकता है !!!!!
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  • क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छुपी रहे , नकली चेहरा सामने आए असली सूरत छुपी रहे , तो कुछ ऐसा ही है इन तथाकथित फेमिनिस्टवादियों के साथ .....जब सनातन धर्म और उसकी परम्पराओं की बात आती है तो गूंगे भी बोल उठते हैं और जब दूसरे मज़हब और उनके रिवाजों की बात होती है तो सारे के सारे गूंगे बहरे हो जाते हैं.... इनकी कुत्सित मानसिकता तो तब चरम पर पहुंचती है कि जब इनकी मानवीय संवेदना भी धर्म और मजहब देखकर जाग्रत होती हैं ..... चाहे वो रेप हो या हत्या , हिन्दुओं के साथ हो तो मुंह से बोल नहीं फूटते और जब काले तम्बू वालों के साथ हों तो बम्बू में आग लग जाती है इनके ..... नारी की गरिमा से कोसों दूर ... लाली, लिपस्टिक , क्रीम , पाउडर की परतें चढ़ा , अपनी बदसूरत सोच को ढके , ये फेमिनिस्ट जब हमारी सनातन संस्कृति का बलात्कार करने का प्रयास करती हैं , तो क्यूं नहीं इन पर भी पॉस्को लगे , जहां सर तन से जुदा वाली सोच चलती है वहां इन्हें स्त्री के लिए श्राप जैसे घोर नरक वाले हलाला , ट्रिपल तलाक़, चार शादियां वगैरह नहीं दिखते, जिस समाज में क्रूरता और हिंसा धर्म के नाम पर जायज़ हो और उसका ईनाम सत्तर हूरों का मिलना हो , वहां इन फेमिनिस्ट की ज़बान पर ताले क्यूं लग जाते हैं !!!!!!

    ये सुविधावादी सोच वाली फेमिनिस्ट स्वतंत्रता और स्वछंदता का अंतर ही नहीं जानती....छछूंदर जैसी , स्वतंत्रता के नाम पर , वल्गैरिटी की नुमाइश करने वाली , सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने मानसिक दिवालियेपन का नाद करती हैं और अश्लीलता की ब्रांड एंबेसडर ......नाम कोई भी हो जाति कोई भी ही लेकिन इनकी एक ही जात होती है..... बोले तो गिरी हुई ...
    क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छुपी रहे , नकली चेहरा सामने आए असली सूरत छुपी रहे , तो कुछ ऐसा ही है इन तथाकथित फेमिनिस्टवादियों के साथ .....जब सनातन धर्म और उसकी परम्पराओं की बात आती है तो गूंगे भी बोल उठते हैं और जब दूसरे मज़हब और उनके रिवाजों की बात होती है तो सारे के सारे गूंगे बहरे हो जाते हैं.... इनकी कुत्सित मानसिकता तो तब चरम पर पहुंचती है कि जब इनकी मानवीय संवेदना भी धर्म और मजहब देखकर जाग्रत होती हैं ..... चाहे वो रेप हो या हत्या , हिन्दुओं के साथ हो तो मुंह से बोल नहीं फूटते और जब काले तम्बू वालों के साथ हों तो बम्बू में आग लग जाती है इनके ..... नारी की गरिमा से कोसों दूर ... लाली, लिपस्टिक , क्रीम , पाउडर की परतें चढ़ा , अपनी बदसूरत सोच को ढके , ये फेमिनिस्ट जब हमारी सनातन संस्कृति का बलात्कार करने का प्रयास करती हैं , तो क्यूं नहीं इन पर भी पॉस्को लगे , जहां सर तन से जुदा वाली सोच चलती है वहां इन्हें स्त्री के लिए श्राप जैसे घोर नरक वाले हलाला , ट्रिपल तलाक़, चार शादियां वगैरह नहीं दिखते, जिस समाज में क्रूरता और हिंसा धर्म के नाम पर जायज़ हो और उसका ईनाम सत्तर हूरों का मिलना हो , वहां इन फेमिनिस्ट की ज़बान पर ताले क्यूं लग जाते हैं !!!!!! ये सुविधावादी सोच वाली फेमिनिस्ट स्वतंत्रता और स्वछंदता का अंतर ही नहीं जानती....छछूंदर जैसी , स्वतंत्रता के नाम पर , वल्गैरिटी की नुमाइश करने वाली , सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने मानसिक दिवालियेपन का नाद करती हैं और अश्लीलता की ब्रांड एंबेसडर ......नाम कोई भी हो जाति कोई भी ही लेकिन इनकी एक ही जात होती है..... बोले तो गिरी हुई ...
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  • भारतीय संस्कृति सनातन परपंरा की संवाहक है जो वैज्ञानिक आधार पर जीवन दर्शन का प्रतिपादन करती है और सही मायनों में आधुनिक और तार्किक दृष्टिकोण रखती है । हां , ये अलग बात है कि कुछ टिड्डी दलों और मच्छरों के आगमन के कारण हमारी संस्कृति और सभ्यता को कुछ आघात पहुंचा लेकिन ये कीट- पतंगे हमारी सनातन संस्कृति को सम्पूर्ण रूप से समाप्त नहीं कर पाए । सनातन संस्कृति जो कहती है कि स्त्री - पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं , यहां तक कि ईश्वर ने भी जब धरती पर अवतार लिए , तो अपनी अर्धांगिनी को अपनी लीला में एक महत्वपूर्ण स्थान दिया । शिव भी शक्ति के बिना शव समान हैं । नरकासुर से युद्ध करते समय , कृष्ण जी के साथ , सत्यभामा भी थी और उन्होंने वीरता और साहस के साथ उस राक्षस का सामना किया । माता पार्वती , दुर्गा और अनेकानेक रूपों में आदिशक्ति ने दुष्टों के विभिन्न रूपों का संहार किया ।

    देवासुर संग्राम में महारानी कैकई ने महाराजा दशरथ के सारथी की भूमिका का वहन करते हुए उनके प्राणों की रक्षा की ।

    गार्गी , मैत्रेई , अहिल्या आदि अनेक विदुषी नारियों से भारतीय संस्कृति सुशोभित है ।

    कलयुग की बात करें तो रानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मबाई, रानी अहिल्याबाई होलकर , माता जीजाबाई आदि सशक्त नारी के स्वरूप को प्रतिबिंबित करती हैं।


    और ऐसे देश में तथाकथित नारीवादी संगठन पश्चिमी सभ्यता का उदाहरण दे , झूठे नारी सशक्तिकरण की आड़ में नारी के स्त्रीत्व और सतीत्व दोनों का हरण एक राक्षस की तरह करते हैं !

    एक कहावत है हमारे ठेठ देसी," घर में ना हैं दाने, अम्मा चली भुनाने.." बोले तो इन तथाकथित फेमिनिस्टनियों के पास , खुद तो रिश्तों के नाम पर नाज़ायाज पालतू पल्टुओं के या अकेलेपन के अलावा कुछ होता नहीं , और बार्किंग कर करके अच्छे खासे बसे बसाए घरों को उजाड़ने में हर वक़्त व्यस्त रहती हैं !

    अरे इन लाल बड़ी बिंदी गैंग को कौन समझाए कि नारी यदि नींव है तो पुरुष उस पर खड़ी मज़बूत इमारत , और मज़बूत नींव और मज़बूत इमारत मिलकर ही एक सार्थक इबारत लिखते हैं ज़िंदगी की ...…..! पुरुष चाहे भाई हो , बेटा या चाहे पति , मित्र या प्रेमी वो एक स्त्री की इमोशनल ताक़त होता है , और ऐसा ही कुछ पुरुष के लिए , मां, पत्नी , मित्र , बहन , प्रेमिका किसी के भी रूप में , नारी पुरुष का संबल होती है !

    लेकिन इन तथाकथित फेमिनिस्ट , जो आधी , अधूरी, असुरक्षित , अधकचरे , सड़े - गले रिश्तों और ज्ञान को लिए , केवल शराब में डूबने और सिगरेट के धुंए में धुंआ - धुंआ होती ज़िन्दगी जीती हैं , सम्पूर्ण और खुशहाल स्त्री के जीवन को भी नरक में बदलने के लिए येन केन प्रकारेन प्रयासरत रहती हैं !!!!! इन कलयुगी सूपर्नखाओं को सीता से चिरकाल से जलन रही है !!!!! अतृप्त आत्माओं की तरह ये इधर उधर भटकती अपने जलन के वमन करती घूमती रहती हैं !

    पश्चिमी सभ्यता जहां स्त्रियों को मतदान के अधिकार के लिए आंदोलन करने पड़े , जहां उन्हें युद्ध में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं थी , और यदि फिर भी कोई ले , तो उसे मार दिया जाता था , और दूसरे कबीले वाले जहां स्त्री को भोग्या के अलावा कुछ नहीं माना जाता , वो किस मुंह से उस देश के लोगों को नारी सशक्तिकरण सिखाएंगे जहां नारी को देवी मान कर पूजा जाता है ! ये तो कुछ ऐसा ही हुआ उल्टा चोर
    कोतवाल को डांटे ....

    To be continued....
    भारतीय संस्कृति सनातन परपंरा की संवाहक है जो वैज्ञानिक आधार पर जीवन दर्शन का प्रतिपादन करती है और सही मायनों में आधुनिक और तार्किक दृष्टिकोण रखती है । हां , ये अलग बात है कि कुछ टिड्डी दलों और मच्छरों के आगमन के कारण हमारी संस्कृति और सभ्यता को कुछ आघात पहुंचा लेकिन ये कीट- पतंगे हमारी सनातन संस्कृति को सम्पूर्ण रूप से समाप्त नहीं कर पाए । सनातन संस्कृति जो कहती है कि स्त्री - पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं , यहां तक कि ईश्वर ने भी जब धरती पर अवतार लिए , तो अपनी अर्धांगिनी को अपनी लीला में एक महत्वपूर्ण स्थान दिया । शिव भी शक्ति के बिना शव समान हैं । नरकासुर से युद्ध करते समय , कृष्ण जी के साथ , सत्यभामा भी थी और उन्होंने वीरता और साहस के साथ उस राक्षस का सामना किया । माता पार्वती , दुर्गा और अनेकानेक रूपों में आदिशक्ति ने दुष्टों के विभिन्न रूपों का संहार किया । देवासुर संग्राम में महारानी कैकई ने महाराजा दशरथ के सारथी की भूमिका का वहन करते हुए उनके प्राणों की रक्षा की । गार्गी , मैत्रेई , अहिल्या आदि अनेक विदुषी नारियों से भारतीय संस्कृति सुशोभित है । कलयुग की बात करें तो रानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मबाई, रानी अहिल्याबाई होलकर , माता जीजाबाई आदि सशक्त नारी के स्वरूप को प्रतिबिंबित करती हैं। और ऐसे देश में तथाकथित नारीवादी संगठन पश्चिमी सभ्यता का उदाहरण दे , झूठे नारी सशक्तिकरण की आड़ में नारी के स्त्रीत्व और सतीत्व दोनों का हरण एक राक्षस की तरह करते हैं ! एक कहावत है हमारे ठेठ देसी," घर में ना हैं दाने, अम्मा चली भुनाने.." बोले तो इन तथाकथित फेमिनिस्टनियों के पास , खुद तो रिश्तों के नाम पर नाज़ायाज पालतू पल्टुओं के या अकेलेपन के अलावा कुछ होता नहीं , और बार्किंग कर करके अच्छे खासे बसे बसाए घरों को उजाड़ने में हर वक़्त व्यस्त रहती हैं ! अरे इन लाल बड़ी बिंदी गैंग को कौन समझाए कि नारी यदि नींव है तो पुरुष उस पर खड़ी मज़बूत इमारत , और मज़बूत नींव और मज़बूत इमारत मिलकर ही एक सार्थक इबारत लिखते हैं ज़िंदगी की ...…..! पुरुष चाहे भाई हो , बेटा या चाहे पति , मित्र या प्रेमी वो एक स्त्री की इमोशनल ताक़त होता है , और ऐसा ही कुछ पुरुष के लिए , मां, पत्नी , मित्र , बहन , प्रेमिका किसी के भी रूप में , नारी पुरुष का संबल होती है ! लेकिन इन तथाकथित फेमिनिस्ट , जो आधी , अधूरी, असुरक्षित , अधकचरे , सड़े - गले रिश्तों और ज्ञान को लिए , केवल शराब में डूबने और सिगरेट के धुंए में धुंआ - धुंआ होती ज़िन्दगी जीती हैं , सम्पूर्ण और खुशहाल स्त्री के जीवन को भी नरक में बदलने के लिए येन केन प्रकारेन प्रयासरत रहती हैं !!!!! इन कलयुगी सूपर्नखाओं को सीता से चिरकाल से जलन रही है !!!!! अतृप्त आत्माओं की तरह ये इधर उधर भटकती अपने जलन के वमन करती घूमती रहती हैं ! पश्चिमी सभ्यता जहां स्त्रियों को मतदान के अधिकार के लिए आंदोलन करने पड़े , जहां उन्हें युद्ध में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं थी , और यदि फिर भी कोई ले , तो उसे मार दिया जाता था , और दूसरे कबीले वाले जहां स्त्री को भोग्या के अलावा कुछ नहीं माना जाता , वो किस मुंह से उस देश के लोगों को नारी सशक्तिकरण सिखाएंगे जहां नारी को देवी मान कर पूजा जाता है ! ये तो कुछ ऐसा ही हुआ उल्टा चोर कोतवाल को डांटे .... To be continued....
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