भारतीय संस्कृति सनातन परपंरा की संवाहक है जो वैज्ञानिक आधार पर जीवन दर्शन का प्रतिपादन करती है और सही मायनों में आधुनिक और तार्किक दृष्टिकोण रखती है । हां , ये अलग बात है कि कुछ टिड्डी दलों और मच्छरों के आगमन के कारण हमारी संस्कृति और सभ्यता को कुछ आघात पहुंचा लेकिन ये कीट- पतंगे हमारी सनातन संस्कृति को सम्पूर्ण रूप से समाप्त नहीं कर पाए । सनातन संस्कृति जो कहती है कि स्त्री - पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं , यहां तक कि ईश्वर ने भी जब धरती पर अवतार लिए , तो अपनी अर्धांगिनी को अपनी लीला में एक महत्वपूर्ण स्थान दिया । शिव भी शक्ति के बिना शव समान हैं । नरकासुर से युद्ध करते समय , कृष्ण जी के साथ , सत्यभामा भी थी और उन्होंने वीरता और साहस के साथ उस राक्षस का सामना किया । माता पार्वती , दुर्गा और अनेकानेक रूपों में आदिशक्ति ने दुष्टों के विभिन्न रूपों का संहार किया ।

देवासुर संग्राम में महारानी कैकई ने महाराजा दशरथ के सारथी की भूमिका का वहन करते हुए उनके प्राणों की रक्षा की ।

गार्गी , मैत्रेई , अहिल्या आदि अनेक विदुषी नारियों से भारतीय संस्कृति सुशोभित है ।

कलयुग की बात करें तो रानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मबाई, रानी अहिल्याबाई होलकर , माता जीजाबाई आदि सशक्त नारी के स्वरूप को प्रतिबिंबित करती हैं।


और ऐसे देश में तथाकथित नारीवादी संगठन पश्चिमी सभ्यता का उदाहरण दे , झूठे नारी सशक्तिकरण की आड़ में नारी के स्त्रीत्व और सतीत्व दोनों का हरण एक राक्षस की तरह करते हैं !

एक कहावत है हमारे ठेठ देसी," घर में ना हैं दाने, अम्मा चली भुनाने.." बोले तो इन तथाकथित फेमिनिस्टनियों के पास , खुद तो रिश्तों के नाम पर नाज़ायाज पालतू पल्टुओं के या अकेलेपन के अलावा कुछ होता नहीं , और बार्किंग कर करके अच्छे खासे बसे बसाए घरों को उजाड़ने में हर वक़्त व्यस्त रहती हैं !

अरे इन लाल बड़ी बिंदी गैंग को कौन समझाए कि नारी यदि नींव है तो पुरुष उस पर खड़ी मज़बूत इमारत , और मज़बूत नींव और मज़बूत इमारत मिलकर ही एक सार्थक इबारत लिखते हैं ज़िंदगी की ...…..! पुरुष चाहे भाई हो , बेटा या चाहे पति , मित्र या प्रेमी वो एक स्त्री की इमोशनल ताक़त होता है , और ऐसा ही कुछ पुरुष के लिए , मां, पत्नी , मित्र , बहन , प्रेमिका किसी के भी रूप में , नारी पुरुष का संबल होती है !

लेकिन इन तथाकथित फेमिनिस्ट , जो आधी , अधूरी, असुरक्षित , अधकचरे , सड़े - गले रिश्तों और ज्ञान को लिए , केवल शराब में डूबने और सिगरेट के धुंए में धुंआ - धुंआ होती ज़िन्दगी जीती हैं , सम्पूर्ण और खुशहाल स्त्री के जीवन को भी नरक में बदलने के लिए येन केन प्रकारेन प्रयासरत रहती हैं !!!!! इन कलयुगी सूपर्नखाओं को सीता से चिरकाल से जलन रही है !!!!! अतृप्त आत्माओं की तरह ये इधर उधर भटकती अपने जलन के वमन करती घूमती रहती हैं !

पश्चिमी सभ्यता जहां स्त्रियों को मतदान के अधिकार के लिए आंदोलन करने पड़े , जहां उन्हें युद्ध में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं थी , और यदि फिर भी कोई ले , तो उसे मार दिया जाता था , और दूसरे कबीले वाले जहां स्त्री को भोग्या के अलावा कुछ नहीं माना जाता , वो किस मुंह से उस देश के लोगों को नारी सशक्तिकरण सिखाएंगे जहां नारी को देवी मान कर पूजा जाता है ! ये तो कुछ ऐसा ही हुआ उल्टा चोर
कोतवाल को डांटे ....

To be continued....
भारतीय संस्कृति सनातन परपंरा की संवाहक है जो वैज्ञानिक आधार पर जीवन दर्शन का प्रतिपादन करती है और सही मायनों में आधुनिक और तार्किक दृष्टिकोण रखती है । हां , ये अलग बात है कि कुछ टिड्डी दलों और मच्छरों के आगमन के कारण हमारी संस्कृति और सभ्यता को कुछ आघात पहुंचा लेकिन ये कीट- पतंगे हमारी सनातन संस्कृति को सम्पूर्ण रूप से समाप्त नहीं कर पाए । सनातन संस्कृति जो कहती है कि स्त्री - पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं , यहां तक कि ईश्वर ने भी जब धरती पर अवतार लिए , तो अपनी अर्धांगिनी को अपनी लीला में एक महत्वपूर्ण स्थान दिया । शिव भी शक्ति के बिना शव समान हैं । नरकासुर से युद्ध करते समय , कृष्ण जी के साथ , सत्यभामा भी थी और उन्होंने वीरता और साहस के साथ उस राक्षस का सामना किया । माता पार्वती , दुर्गा और अनेकानेक रूपों में आदिशक्ति ने दुष्टों के विभिन्न रूपों का संहार किया । देवासुर संग्राम में महारानी कैकई ने महाराजा दशरथ के सारथी की भूमिका का वहन करते हुए उनके प्राणों की रक्षा की । गार्गी , मैत्रेई , अहिल्या आदि अनेक विदुषी नारियों से भारतीय संस्कृति सुशोभित है । कलयुग की बात करें तो रानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मबाई, रानी अहिल्याबाई होलकर , माता जीजाबाई आदि सशक्त नारी के स्वरूप को प्रतिबिंबित करती हैं। और ऐसे देश में तथाकथित नारीवादी संगठन पश्चिमी सभ्यता का उदाहरण दे , झूठे नारी सशक्तिकरण की आड़ में नारी के स्त्रीत्व और सतीत्व दोनों का हरण एक राक्षस की तरह करते हैं ! एक कहावत है हमारे ठेठ देसी," घर में ना हैं दाने, अम्मा चली भुनाने.." बोले तो इन तथाकथित फेमिनिस्टनियों के पास , खुद तो रिश्तों के नाम पर नाज़ायाज पालतू पल्टुओं के या अकेलेपन के अलावा कुछ होता नहीं , और बार्किंग कर करके अच्छे खासे बसे बसाए घरों को उजाड़ने में हर वक़्त व्यस्त रहती हैं ! अरे इन लाल बड़ी बिंदी गैंग को कौन समझाए कि नारी यदि नींव है तो पुरुष उस पर खड़ी मज़बूत इमारत , और मज़बूत नींव और मज़बूत इमारत मिलकर ही एक सार्थक इबारत लिखते हैं ज़िंदगी की ...…..! पुरुष चाहे भाई हो , बेटा या चाहे पति , मित्र या प्रेमी वो एक स्त्री की इमोशनल ताक़त होता है , और ऐसा ही कुछ पुरुष के लिए , मां, पत्नी , मित्र , बहन , प्रेमिका किसी के भी रूप में , नारी पुरुष का संबल होती है ! लेकिन इन तथाकथित फेमिनिस्ट , जो आधी , अधूरी, असुरक्षित , अधकचरे , सड़े - गले रिश्तों और ज्ञान को लिए , केवल शराब में डूबने और सिगरेट के धुंए में धुंआ - धुंआ होती ज़िन्दगी जीती हैं , सम्पूर्ण और खुशहाल स्त्री के जीवन को भी नरक में बदलने के लिए येन केन प्रकारेन प्रयासरत रहती हैं !!!!! इन कलयुगी सूपर्नखाओं को सीता से चिरकाल से जलन रही है !!!!! अतृप्त आत्माओं की तरह ये इधर उधर भटकती अपने जलन के वमन करती घूमती रहती हैं ! पश्चिमी सभ्यता जहां स्त्रियों को मतदान के अधिकार के लिए आंदोलन करने पड़े , जहां उन्हें युद्ध में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं थी , और यदि फिर भी कोई ले , तो उसे मार दिया जाता था , और दूसरे कबीले वाले जहां स्त्री को भोग्या के अलावा कुछ नहीं माना जाता , वो किस मुंह से उस देश के लोगों को नारी सशक्तिकरण सिखाएंगे जहां नारी को देवी मान कर पूजा जाता है ! ये तो कुछ ऐसा ही हुआ उल्टा चोर कोतवाल को डांटे .... To be continued....
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