एक कहावत थी धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का ...... लेकिन आजकल के ज़माने में कुछ गधे लोट भी होते हैं जो मालिकों के चरणों में इतना लोट ते हैं कि उन्हें अपना अब्बू अम्मी समझने लगते हैं , और लोट ते लोट ते दिमाग की लालटेन भी बुझा देते हैं , अब्बू अम्मी जहां कहें वहीं लोटा लेकर बैठ जाते हैं ..... बिना अपने दिमाग की लालटेन जलाए देश में आग लगाने की फ़िराक में लगे रहते हैं चाहे वो हज़ार किलो विस्फोटक सामग्री के द्वारा हो या ज़हरीले नफ़रत की उल्टियां , या सनातन से सौतेलापन ...... सठियाए हुए गधे लोट तो और ख़तरनाक ....
अपनी नाक तो कटा कर ही लोट ते हैं , बुरस्ट अचार की कीचड़ में ... बोले तो सु .. वर भी सु सु कर सरमा जाएं लोटने की कला में .... अब ये गधे लोट तो केवल लोटते ही नहीं ....बल्कि खोदते भी हैं देश की जड़ों को ...... अपनी चाटुकारिता की पटुता साबित करते करते .... इतना चाटने में माहिर हो जाते हैं कि गुड़ और गोबर का अंतर ही भूल जाते हैं और देश को बारूद के ढेर पर रख ख़ाक में करने की कवायद में लग जाते हैं..… ये याद दिलाना ज़रूरी इन्हें कि धोबी पाट क्या होता है ..... जब पड़ता है पिछवाड़े तो अब्बू अम्मी भी साथ छोड़ कर नानी के घर ई .... डली खाने टल्ली होकर ई....टल्ली चले जायेंगे...... और ये गधे लोट जनता के आगे कितने ही लोटे बस फिर तो लोटा लेकर दौड़ते ही नज़र आएंगे , तोड़ो यात्रा में अब्बा की खालाओं के साथ गुफ्तगू तुम्हारे लिए सब गु... कर जाएगी ...... तो भाई लोट को बांधो और थोड़ा ध्यान करो ... इस मोड़ पे मौड़ी ना मिले दद्दा , दुलत्ती मिल जाएगी या फिर धोबी पाट.... तो गधे लोट कहीं लमलोट ना हो जाएं, तो बांधो लंगोट और हो जाओ गोल .... तुम्हें तो ७२ हुरें भी ना मिले , क्यूंकि बरश्ट अचार की राह बस दोज़ख़ तक जाती है ........ फिर बस यही जपना पड़ेगा .... मुझे तो तेरी लात लग गई , उई उई ......
एक कहावत थी धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का ...... लेकिन आजकल के ज़माने में कुछ गधे लोट भी होते हैं जो मालिकों के चरणों में इतना लोट ते हैं कि उन्हें अपना अब्बू अम्मी समझने लगते हैं , और लोट ते लोट ते दिमाग की लालटेन भी बुझा देते हैं , अब्बू अम्मी जहां कहें वहीं लोटा लेकर बैठ जाते हैं ..... बिना अपने दिमाग की लालटेन जलाए देश में आग लगाने की फ़िराक में लगे रहते हैं चाहे वो हज़ार किलो विस्फोटक सामग्री के द्वारा हो या ज़हरीले नफ़रत की उल्टियां , या सनातन से सौतेलापन ...... सठियाए हुए गधे लोट तो और ख़तरनाक .... अपनी नाक तो कटा कर ही लोट ते हैं , बुरस्ट अचार की कीचड़ में ... बोले तो सु .. वर भी सु सु कर सरमा जाएं लोटने की कला में .... अब ये गधे लोट तो केवल लोटते ही नहीं ....बल्कि खोदते भी हैं देश की जड़ों को ...... अपनी चाटुकारिता की पटुता साबित करते करते .... इतना चाटने में माहिर हो जाते हैं कि गुड़ और गोबर का अंतर ही भूल जाते हैं और देश को बारूद के ढेर पर रख ख़ाक में करने की कवायद में लग जाते हैं..… ये याद दिलाना ज़रूरी इन्हें कि धोबी पाट क्या होता है ..... जब पड़ता है पिछवाड़े तो अब्बू अम्मी भी साथ छोड़ कर नानी के घर ई .... डली खाने टल्ली होकर ई....टल्ली चले जायेंगे...... और ये गधे लोट जनता के आगे कितने ही लोटे बस फिर तो लोटा लेकर दौड़ते ही नज़र आएंगे , तोड़ो यात्रा में अब्बा की खालाओं के साथ गुफ्तगू तुम्हारे लिए सब गु... कर जाएगी ...... तो भाई लोट को बांधो और थोड़ा ध्यान करो ... इस मोड़ पे मौड़ी ना मिले दद्दा , दुलत्ती मिल जाएगी या फिर धोबी पाट.... तो गधे लोट कहीं लमलोट ना हो जाएं, तो बांधो लंगोट और हो जाओ गोल .... तुम्हें तो ७२ हुरें भी ना मिले , क्यूंकि बरश्ट अचार की राह बस दोज़ख़ तक जाती है ........ फिर बस यही जपना पड़ेगा .... मुझे तो तेरी लात लग गई , उई उई ......
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