बकलोल बुद्धिजीवी - जो डकैत और बकैत होते हैं , इनके लिए लठैत की ज़रूरत होती ही है भइया ....
वो क्या है ना कि बड़े बुजुर्ग कह गए हैं ना कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते.... और हमारे तुलसी बाबा भी तो गागर में सागर की तरह - भय बिनु होत ना प्रीति..… कह गए हैं , इन बकलोल पप्पुओं को तो सही समय पर सही डोज़ मिलना ज़रूरी है वो अपने बच्चन साहब भी कहते हैं ना ... दो बूंद ज़िंदगी की ... उसी तरह से इन चिरकुटों के लिए... दो सोटे सुबह और शाम.... ज़रूरी हैं .....अपने कलम की ...…। ज़िन्दगी के साथ भी , ज़िन्दगी के बाद भी , ताकि आने वाले कई जन्मों तक ये हिमाकत फिर से ना करें । सुन्दर काण्ड में भी प्रसंग आता है कि जब हनुमान जी लंका से वापिस आ रहे थे तो उन्होंने इतनी ज़ोर से पैर रखा ज़मीन पर की उसकी धमक से राक्षसियों के गर्भ गिर गए , ये एक प्रतीकात्मक रूप में लें तो जैसे कहते हैं ना अंग्रेजी में To Nip In The Bud , इसी तरह बुराई अंश मात्र भी हो तो उसको इग्नोर ना करके जड़ से ख़तम कर दो ... क्यूंकि भइया ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी ....और यहां तो बांसुरी नहीं टूटे ढोल बज रहे वो भी बेसुरे अलाप के संग .... इसीलिए इन बेसुरों को सुर ताल सिखाने की ज़रूरत वो भी इन्हें खूब अच्छे से बजा बजा कर ..…जब तक ये भारत में रत ना हो जाएं और सनातन की तान ना लगाएं .... बजाते रहो इनकी ......वैसे भी जिनका न कोई आधार ना कोई धार , ठहरे पानी के काईं जैसे काइंया, कहां शुद्ध खरे सोने और गंगाजल जैसों के सामने ठहर पाएंगे , बस ज़रा देर लगेगी दूध का दूध और पानी का पानी हो ही जायेगा ..... बस ना जाने कितने बुद्धिजीवियों की कलई उतरेगी ... हम इंतज़ार करेंगे ..... मोदी जी के जादू ने पप्पू पप्पी को तो तिलकधारी बनाकर आरती करवा ही दी , अब बाकी चमचों का क्या होगा कालिया...... पिक्चर अभी बाकी है दोस्त .......!
बकलोल बुद्धिजीवी - जो डकैत और बकैत होते हैं , इनके लिए लठैत की ज़रूरत होती ही है भइया .... वो क्या है ना कि बड़े बुजुर्ग कह गए हैं ना कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते.... और हमारे तुलसी बाबा भी तो गागर में सागर की तरह - भय बिनु होत ना प्रीति..… कह गए हैं , इन बकलोल पप्पुओं को तो सही समय पर सही डोज़ मिलना ज़रूरी है वो अपने बच्चन साहब भी कहते हैं ना ... दो बूंद ज़िंदगी की ... उसी तरह से इन चिरकुटों के लिए... दो सोटे सुबह और शाम.... ज़रूरी हैं .....अपने कलम की ...…। ज़िन्दगी के साथ भी , ज़िन्दगी के बाद भी , ताकि आने वाले कई जन्मों तक ये हिमाकत फिर से ना करें । सुन्दर काण्ड में भी प्रसंग आता है कि जब हनुमान जी लंका से वापिस आ रहे थे तो उन्होंने इतनी ज़ोर से पैर रखा ज़मीन पर की उसकी धमक से राक्षसियों के गर्भ गिर गए , ये एक प्रतीकात्मक रूप में लें तो जैसे कहते हैं ना अंग्रेजी में To Nip In The Bud , इसी तरह बुराई अंश मात्र भी हो तो उसको इग्नोर ना करके जड़ से ख़तम कर दो ... क्यूंकि भइया ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी ....और यहां तो बांसुरी नहीं टूटे ढोल बज रहे वो भी बेसुरे अलाप के संग .... इसीलिए इन बेसुरों को सुर ताल सिखाने की ज़रूरत वो भी इन्हें खूब अच्छे से बजा बजा कर ..…जब तक ये भारत में रत ना हो जाएं और सनातन की तान ना लगाएं .... बजाते रहो इनकी ......वैसे भी जिनका न कोई आधार ना कोई धार , ठहरे पानी के काईं जैसे काइंया, कहां शुद्ध खरे सोने और गंगाजल जैसों के सामने ठहर पाएंगे , बस ज़रा देर लगेगी दूध का दूध और पानी का पानी हो ही जायेगा ..... बस ना जाने कितने बुद्धिजीवियों की कलई उतरेगी ... हम इंतज़ार करेंगे ..... मोदी जी के जादू ने पप्पू पप्पी को तो तिलकधारी बनाकर आरती करवा ही दी , अब बाकी चमचों का क्या होगा कालिया...... पिक्चर अभी बाकी है दोस्त .......!
Like
1
·734 Views