रिश्ते हांडी या प्रेशर कुकर -

पुराने समय में हंडिया या पतीली में खाना बनाते थे और धीमे धीमे पकते खाने की सौंधी सौंधी खुशबू
मन से लेकर आत्मा को भी तृप्त कर देती थी और नाक से होकर गुजरती हुई जीभ के स्वाद को जाग्रत कर मुंह में पानी ला देती थी ! हांडी में पका खाना हाज़मे को भी दुरुस्त रखता था और जो आजकल की नई नवेली बीमारियां और दुश्वारियां हैं उनका तो नाम पता तक इंसान नहीं जानता था !

फिर आया प्रेशर कुकर का ज़माना .... जो ना जाने कितने और प्रेशर को साथ लेकर आया... खाना तो जल्दी पकता है
लेकिन कितनी देर में पचता है ये बात दीगर है ! और कितनी बीमारियों को इंस्टॉल कर जाता है इस पर तो सोचा ही नहीं गया शायद ..अलबत्ता ऐसे ऐसे अतरंगी रोगों को जन्म दे गया जिनका नाम भी बोले कोई तो लगे कि बोलने वाला अफलातून की औलाद है !


आजकल की दुनिया में ऐसा ही कुछ हाल रिश्तों का हो चुका है ...
पहले हांडी में धीमे धीमे पकते रिश्तों की सौंधी सौंधी खुशबू ज़िंदगी को चिरकाल तक महकाती रहती थी, वो कहते हैं... ना ज़िंदगी के साथ भी ज़िंदगी के बाद भी.... ऐसे अमर और अटूट रिश्ते जिनमें चाहे कोई आंख से दूर हो पर दिल से दूर ना होता था ... वीडियो कॉल का ज़माना ना था , पर बिन देखे भी एक दूसरे का दीदार होता था , एक दूसरे की अनकही बातों का भी खयाल होता था.... कहते हैं कि काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है ... यदि एक बार धोखा मिलता भी था तो आगे इंसान दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता है कि तर्ज़ पर संभल कर नए रिश्ते बनाता था......
लेकिन आजकल के रिश्ते भी प्रेशर कुकर जैसे हो गए हैं , गैस पर रखते साथ ही सड़कछाप आवारा जैसे सीटी बजने लगती है .... लव एट फर्स्ट साइट ... और कुछ समय के बाद ही ....
तू लग जा साइड... इन प्रेशर कुकर रिश्तों की प्रॉब्लम केवल ब्रेक अप की ही नहीं बल्कि उसके बाद जो वो अंग्रेजी के हग से हिंदी वाले वर्जिन पर आ जाते हैं और रिश्तों की बदहजमी को हलक से उलट ते हैं और ये नफ़रत की नाली अपराधों के नाले में बदल जाती है .... क्रूरता का तांडव ये जो चारों ओर चल रहा है , चेहरे और नाम बदल रहे हैं और मोडस ऑपरेंडी ... बाकी कहानी सेम .....
बुलबुले जैसे आकर्षण को अटल प्रेम समझकर अपने विश्वास , आस्था , सम्मान को यूं ही हर ऐरे गैरे नत्थुखैरे पर ज़ाया करने वाले
गलत जगह पर गलत व्यक्ति पर अपने भावों की बरसात करने वाले कभी रिश्तों की परिणीति पर नहीं पहुंचते बल्कि ऐसे लोग समाज में अपने सड़े गले रिश्तों की दुर्गंध से दूसरों का भी जीना मुहाल कर देते हैं!

और फिर ये लोग या तो सूटकेस में पाए जाते हैं या .फिर नफरतों की आंधियों से घिर जाते हैं और समाज को भी दूषित करते हैं !

गिरगिट से भी ज़्यादा तेज़ी से पार्टनर्स बदलने वालों को यदि सच में प्रेम रंग में रंगना हो तो उन्हें अनंत प्रेम के सागर के स्रोतों को समझने की आवश्यकता है जहां एक ने समुंदर पर पुल बना दिया तो दूजे ने कई जन्म लेकर कठिन तप कर अपने मनचाहे वर की प्राप्ति की और तीजा जो सुदर्शन चक्र होते हुए भी बांसुरी बजाता है और युग युगांतर तक जो निरंतर प्रेम के झरने सा निष्काम प्रेम के संदेश की प्रेरणा देता है.......!

फिल्मों और वेब सिरीज़ के नकली हीरो के नकली प्रेम को फ़ॉलो करके तो ज़िंदगी में बस cob web hi मिलेंगे और ज़िंदगी मकड़ जाल में फंसकर रह जाएगी और असली हीरो को फ़ॉलो करोगे तो ज़िंदगी उजाले से रोशन हो जाएगी .....

खीर तो भाई हांडी या पतीले में धीमे धीमे सौंधी सौंधी ही पकती है , और असली हीर भी भइया सौंधे सौंधे धीमे धीमे बनते रिश्तों से ही मिलती है प्रेशर कुकर जैसे सीटी बजाते रिश्ते तो बस आवारगी की बानगी होती है !!!!!
रिश्ते हांडी या प्रेशर कुकर - पुराने समय में हंडिया या पतीली में खाना बनाते थे और धीमे धीमे पकते खाने की सौंधी सौंधी खुशबू मन से लेकर आत्मा को भी तृप्त कर देती थी और नाक से होकर गुजरती हुई जीभ के स्वाद को जाग्रत कर मुंह में पानी ला देती थी ! हांडी में पका खाना हाज़मे को भी दुरुस्त रखता था और जो आजकल की नई नवेली बीमारियां और दुश्वारियां हैं उनका तो नाम पता तक इंसान नहीं जानता था ! फिर आया प्रेशर कुकर का ज़माना .... जो ना जाने कितने और प्रेशर को साथ लेकर आया... खाना तो जल्दी पकता है लेकिन कितनी देर में पचता है ये बात दीगर है ! और कितनी बीमारियों को इंस्टॉल कर जाता है इस पर तो सोचा ही नहीं गया शायद ..अलबत्ता ऐसे ऐसे अतरंगी रोगों को जन्म दे गया जिनका नाम भी बोले कोई तो लगे कि बोलने वाला अफलातून की औलाद है ! आजकल की दुनिया में ऐसा ही कुछ हाल रिश्तों का हो चुका है ... पहले हांडी में धीमे धीमे पकते रिश्तों की सौंधी सौंधी खुशबू ज़िंदगी को चिरकाल तक महकाती रहती थी, वो कहते हैं... ना ज़िंदगी के साथ भी ज़िंदगी के बाद भी.... ऐसे अमर और अटूट रिश्ते जिनमें चाहे कोई आंख से दूर हो पर दिल से दूर ना होता था ... वीडियो कॉल का ज़माना ना था , पर बिन देखे भी एक दूसरे का दीदार होता था , एक दूसरे की अनकही बातों का भी खयाल होता था.... कहते हैं कि काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है ... यदि एक बार धोखा मिलता भी था तो आगे इंसान दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता है कि तर्ज़ पर संभल कर नए रिश्ते बनाता था...... लेकिन आजकल के रिश्ते भी प्रेशर कुकर जैसे हो गए हैं , गैस पर रखते साथ ही सड़कछाप आवारा जैसे सीटी बजने लगती है .... लव एट फर्स्ट साइट ... और कुछ समय के बाद ही .... तू लग जा साइड... इन प्रेशर कुकर रिश्तों की प्रॉब्लम केवल ब्रेक अप की ही नहीं बल्कि उसके बाद जो वो अंग्रेजी के हग से हिंदी वाले वर्जिन पर आ जाते हैं और रिश्तों की बदहजमी को हलक से उलट ते हैं और ये नफ़रत की नाली अपराधों के नाले में बदल जाती है .... क्रूरता का तांडव ये जो चारों ओर चल रहा है , चेहरे और नाम बदल रहे हैं और मोडस ऑपरेंडी ... बाकी कहानी सेम ..... बुलबुले जैसे आकर्षण को अटल प्रेम समझकर अपने विश्वास , आस्था , सम्मान को यूं ही हर ऐरे गैरे नत्थुखैरे पर ज़ाया करने वाले गलत जगह पर गलत व्यक्ति पर अपने भावों की बरसात करने वाले कभी रिश्तों की परिणीति पर नहीं पहुंचते बल्कि ऐसे लोग समाज में अपने सड़े गले रिश्तों की दुर्गंध से दूसरों का भी जीना मुहाल कर देते हैं! और फिर ये लोग या तो सूटकेस में पाए जाते हैं या .फिर नफरतों की आंधियों से घिर जाते हैं और समाज को भी दूषित करते हैं ! गिरगिट से भी ज़्यादा तेज़ी से पार्टनर्स बदलने वालों को यदि सच में प्रेम रंग में रंगना हो तो उन्हें अनंत प्रेम के सागर के स्रोतों को समझने की आवश्यकता है जहां एक ने समुंदर पर पुल बना दिया तो दूजे ने कई जन्म लेकर कठिन तप कर अपने मनचाहे वर की प्राप्ति की और तीजा जो सुदर्शन चक्र होते हुए भी बांसुरी बजाता है और युग युगांतर तक जो निरंतर प्रेम के झरने सा निष्काम प्रेम के संदेश की प्रेरणा देता है.......! फिल्मों और वेब सिरीज़ के नकली हीरो के नकली प्रेम को फ़ॉलो करके तो ज़िंदगी में बस cob web hi मिलेंगे और ज़िंदगी मकड़ जाल में फंसकर रह जाएगी और असली हीरो को फ़ॉलो करोगे तो ज़िंदगी उजाले से रोशन हो जाएगी ..... खीर तो भाई हांडी या पतीले में धीमे धीमे सौंधी सौंधी ही पकती है , और असली हीर भी भइया सौंधे सौंधे धीमे धीमे बनते रिश्तों से ही मिलती है प्रेशर कुकर जैसे सीटी बजाते रिश्ते तो बस आवारगी की बानगी होती है !!!!!
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