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- https://youtu.be/GC-pjDOz-Zk
अजय सिंह बिष्ट कैसे बने योगी आदित्यनाथ? जाने योगी आदित्यनाथ की जिंदगी से जुडी कुछ अनकही बातें। योगी कैसे बने उत्तर प्रदेश के सीएम?
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भौकाल बना रहे।https://youtu.be/GC-pjDOz-Zk अजय सिंह बिष्ट कैसे बने योगी आदित्यनाथ? जाने योगी आदित्यनाथ की जिंदगी से जुडी कुछ अनकही बातें। योगी कैसे बने उत्तर प्रदेश के सीएम? #hindi #yogi #yogiadityanath #yogi_adityanath #up #cm #cmyogi #cmyogiadityanath #bjp #bjpnews #ajaysingh #information #untoldstory #untoldhistory #mystery #mysterious #facts #family #education #background भौकाल बना रहे। -
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- हमारा जीवन भी बस ऐसे ही रोशनी से गुजरता है। थोड़ा अँधेरा लिए हुए थोड़ा उजाला लिए हुए। जिसकी तरफ हम ज़्यादा ध्यान देते हैं,जीवन भी उसी तरफ मुड़ता जाता है। अँधेरा डराता है और उजाला उम्मीद देता है। हम उम्मीद पर भरोसा नहीं करते हैं लेकिन डर तुरंत जाते हैं। होना इसका उल्टा चाहिए। ये आस-पास के पहाड़ हमारी आस पास की मुश्किलें हैं। इनको तो ध्यान ही नहीं देना है भई। इनके सहारे ही तो हमें अँधेरे से बाहर निकलना है। तभी तो जो रोशनी अभी हमें थोड़ी थोड़ी दिख रही है वो पूरी दिखेगी। तो आपको क्या अच्छा लगता है डार्क लाइट वाली रोशनी या अँधेरा ।
#Anand_Mishra #Power_Capsule #motivationहमारा जीवन भी बस ऐसे ही रोशनी से गुजरता है। थोड़ा अँधेरा लिए हुए थोड़ा उजाला लिए हुए। जिसकी तरफ हम ज़्यादा ध्यान देते हैं,जीवन भी उसी तरफ मुड़ता जाता है। अँधेरा डराता है और उजाला उम्मीद देता है। हम उम्मीद पर भरोसा नहीं करते हैं लेकिन डर तुरंत जाते हैं। होना इसका उल्टा चाहिए। ये आस-पास के पहाड़ हमारी आस पास की मुश्किलें हैं। इनको तो ध्यान ही नहीं देना है भई। इनके सहारे ही तो हमें अँधेरे से बाहर निकलना है। तभी तो जो रोशनी अभी हमें थोड़ी थोड़ी दिख रही है वो पूरी दिखेगी। तो आपको क्या अच्छा लगता है डार्क लाइट वाली रोशनी या अँधेरा । #Anand_Mishra #Power_Capsule #motivation - कभी - कभी सीखने के लिए झुकना भी जरुरी होता है, विनम्रता हमें मूल्यवान बनाती है...
#Abhirajthakur
#bhokalकभी - कभी सीखने के लिए झुकना भी जरुरी होता है, विनम्रता हमें मूल्यवान बनाती है... #Abhirajthakur #bhokal -
- Government Scheme for Women Entrepreneurs1. Scheme: Skill Upgradation and Mahila Coir Yojana Ministry: Ministry of Micro, Small and Medium Enterprises Department: Coir: Board Benefit of the Scheme: It is an exclusive training programme aimed at the skill development of women artisans engaged in the coir industry. Two months of training in coir spinning is imparted through this programme. The...
- हम चाहते तो हैं जीतना लेकिन उसके लिए कितना काम करना पड़ेगा , कितनी मेहनत करनी पड़ेगी, इसके बारे में थोड़ा कम गंभीर होते हैं,
हाँ मोटिवेशनल वीडियो देखकर तो हम मोटिवेट होना चाहते हैं लेकिन सही रास्ते में चलकर मेहनत नहीं करना चाहते ,
क्योंकि हमारे पास बहानों की दुकान जो है भई. हाँ हमे दूसरों को सफल देखकर ज़रूर जलन होती है लेकिन उसकी सफलता के पीछे का संघर्ष हम नहीं पढ़ना चाहते हैं. तो जब तक बहानों की पोटली को जलाएंगे नहीं , सच में मेहनत करेंगे नहीं , हवा में तीर चलना नहीं छोड़ेंगे तब तक We can not Win.
#Anand_Mishra #Motivation #bhokal_bna_raheहम चाहते तो हैं जीतना लेकिन उसके लिए कितना काम करना पड़ेगा , कितनी मेहनत करनी पड़ेगी, इसके बारे में थोड़ा कम गंभीर होते हैं, हाँ मोटिवेशनल वीडियो देखकर तो हम मोटिवेट होना चाहते हैं लेकिन सही रास्ते में चलकर मेहनत नहीं करना चाहते , क्योंकि हमारे पास बहानों की दुकान जो है भई. हाँ हमे दूसरों को सफल देखकर ज़रूर जलन होती है लेकिन उसकी सफलता के पीछे का संघर्ष हम नहीं पढ़ना चाहते हैं. तो जब तक बहानों की पोटली को जलाएंगे नहीं , सच में मेहनत करेंगे नहीं , हवा में तीर चलना नहीं छोड़ेंगे तब तक We can not Win. #Anand_Mishra #Motivation #bhokal_bna_rahe - वीणा वादणी
हे! मात शारदे वर दे।
अंकन मध्य भाव भर दे॥
हर्षित चेतन विभु नभ पर।
आनंदित हृदय सुलभ कर॥
कँवलासित माँ वारिद मग।
सिंदूरी बदन विलय जग॥
स्वर्णिम प्रभात आभा भव।
वासंती संगनी प्रभा नव॥
पापी कलुषित को तर दे।
माँ! दीप ज्ञान का ज़र दे॥
मन विकल शून्य है माता।
कंपित हृदय नहीं भाता॥
माँ श्वेत वसन वैभव कृति।
विपुला आलौकिक नभ धृति॥
पीयूष प्रमादित शुभकर।
सुंदर मुख ज्ञान भयंकर॥
©-राजन-सिंह
वीणा वादणी हे! मात शारदे वर दे। अंकन मध्य भाव भर दे॥ हर्षित चेतन विभु नभ पर। आनंदित हृदय सुलभ कर॥ कँवलासित माँ वारिद मग। सिंदूरी बदन विलय जग॥ स्वर्णिम प्रभात आभा भव। वासंती संगनी प्रभा नव॥ पापी कलुषित को तर दे। माँ! दीप ज्ञान का ज़र दे॥ मन विकल शून्य है माता। कंपित हृदय नहीं भाता॥ माँ श्वेत वसन वैभव कृति। विपुला आलौकिक नभ धृति॥ पीयूष प्रमादित शुभकर। सुंदर मुख ज्ञान भयंकर॥ ©-राजन-सिंह -
- Manisha Goyal
अंधेरों और उजालों की इस लुकाछिपी का नाम ही ज़िंदगी...... निराशा के बादल ज़िंदगी के आकाश में नृत्य करते हैं कभी ...... और कभी आशा की उजली किरण चमकती है ..... धूप छांव का ये कारवां बस यूं ही चलता रहता है ज़िंदगी के अंतिम अध्याय तक.......!!!!!Manisha Goyal अंधेरों और उजालों की इस लुकाछिपी का नाम ही ज़िंदगी...... निराशा के बादल ज़िंदगी के आकाश में नृत्य करते हैं कभी ...... और कभी आशा की उजली किरण चमकती है ..... धूप छांव का ये कारवां बस यूं ही चलता रहता है ज़िंदगी के अंतिम अध्याय तक.......!!!!! -
- किसी को तो रास आयेंगे हम भी,?
कोई तो सादगी पसंद करता होगा ना?किसी को तो रास आयेंगे हम भी,? कोई तो सादगी पसंद करता होगा ना? - इश्क अधूरी हो या पूरी लफ्ज़ो की मोहताज़ नही होती...
इश्क अधूरी हो या पूरी लफ्ज़ो की मोहताज़ नही होती...
इश्क होनी चाहिए सच्ची...
क्योंकि मिलावट वालों की कोई इतिहास नही होतीइश्क अधूरी हो या पूरी लफ्ज़ो की मोहताज़ नही होती... इश्क अधूरी हो या पूरी लफ्ज़ो की मोहताज़ नही होती... इश्क होनी चाहिए सच्ची... क्योंकि मिलावट वालों की कोई इतिहास नही होती -
- सभी को नमस्कार। यह मेरा पहला पोस्ट है। मैं प्रशांत पांडेय दैनिक जागरण पटना में वरीय उप मुख्य संपादक। भौकाल डॉट कॉम पर हम सभी को एकत्रित करने के लिए और एक नया मंच देने के लिए संदीप पांडेय जी का आभार। उम्मीद ही नहीं पूरा भरोसा है कि हम सभी यहां अपने टैलेंट को एक नया आयाम देने में और उससे कमाई करने में भी सफल होंगे। इस मौक़े पर हम सभी के लिए शुभकामनाएँ तो बनती हैं। हम सभी को बहुत बहुत बधाई। ??????सभी को नमस्कार। यह मेरा पहला पोस्ट है। मैं प्रशांत पांडेय दैनिक जागरण पटना में वरीय उप मुख्य संपादक। भौकाल डॉट कॉम पर हम सभी को एकत्रित करने के लिए और एक नया मंच देने के लिए संदीप पांडेय जी का आभार। उम्मीद ही नहीं पूरा भरोसा है कि हम सभी यहां अपने टैलेंट को एक नया आयाम देने में और उससे कमाई करने में भी सफल होंगे। इस मौक़े पर हम सभी के लिए शुभकामनाएँ तो बनती हैं। हम सभी को बहुत बहुत बधाई। ??????
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- तस्वीर अच्छी भले न हो लेकिन इसके पीछे की कहानी बहुत अच्छी है
हम अच्छी चीजों से तो कुछ अच्छा सीखते नहीं तो बुरी चीजों से भला कैसे सीख लेंगे और हमारी यही आदत हमें नए स्किल सीखने से रोकती है
चलो एक बार कचरा बिनने वाले को समझते हैं अब आप सोच रहे होंगे कि कचरा बिनने वाले से भला क्या सीख लेंगे हम ? चलो इसको समझते हैं कचरा बिनने वाला उन चीजों को इकट्ठा करता है जो हमारे लिए बिल्कुल बेकार हो चुकी होती हैं यानी हमारे हिसाब वो किसी भी काम की नहीं होती और हम उन चीजों को फेक देते हैं लेकिन कचरा बिनने वाला ऐसे बेकार चीजों को इकट्ठा करके उनसे भी काम की चीजे निकाल लेता है और वो बेचकर पैसे कमा लेता है , मतलब एक इंसान बेकार से बेकार चीजों से भी अच्छी चीजें ढूढ़ ले रहा है और हम अच्छी चीजों ,अच्छे लोगों के आस-पास रहकर भी कुछ नहीं सीख पाते हैं क्यों क्योंकि कहीं न कहीं इसमें हमारा ईगो बीच में आ जाता है जो हमें नई स्किल को सीखने से रोक देता है लेकिन अगर आप एक बार सिर्फ ये उद्देश्य लेकर चलें कि हमें जो कुछ भी नया सीखने को मिलेगा ( चाहे अपने छोटों से या बड़ों से ) सीखेंगे तो देखना बहुत कम समय में आप तेज़ी से ग्रोथ कर जायेंगे.
#Anand_Mishra #motivation #power_capsuleतस्वीर अच्छी भले न हो लेकिन इसके पीछे की कहानी बहुत अच्छी है हम अच्छी चीजों से तो कुछ अच्छा सीखते नहीं तो बुरी चीजों से भला कैसे सीख लेंगे और हमारी यही आदत हमें नए स्किल सीखने से रोकती है चलो एक बार कचरा बिनने वाले को समझते हैं अब आप सोच रहे होंगे कि कचरा बिनने वाले से भला क्या सीख लेंगे हम ? चलो इसको समझते हैं कचरा बिनने वाला उन चीजों को इकट्ठा करता है जो हमारे लिए बिल्कुल बेकार हो चुकी होती हैं यानी हमारे हिसाब वो किसी भी काम की नहीं होती और हम उन चीजों को फेक देते हैं लेकिन कचरा बिनने वाला ऐसे बेकार चीजों को इकट्ठा करके उनसे भी काम की चीजे निकाल लेता है और वो बेचकर पैसे कमा लेता है , मतलब एक इंसान बेकार से बेकार चीजों से भी अच्छी चीजें ढूढ़ ले रहा है और हम अच्छी चीजों ,अच्छे लोगों के आस-पास रहकर भी कुछ नहीं सीख पाते हैं क्यों क्योंकि कहीं न कहीं इसमें हमारा ईगो बीच में आ जाता है जो हमें नई स्किल को सीखने से रोक देता है लेकिन अगर आप एक बार सिर्फ ये उद्देश्य लेकर चलें कि हमें जो कुछ भी नया सीखने को मिलेगा ( चाहे अपने छोटों से या बड़ों से ) सीखेंगे तो देखना बहुत कम समय में आप तेज़ी से ग्रोथ कर जायेंगे. #Anand_Mishra #motivation #power_capsule - मोहलत बस इतनी ही मिली मुश्किलों से...... कि गीले रूमालों को सुखा लिया हमने।। #bhokal
- साल 2015 बिहार राज्य का दरभंगा जिला। अपनी बोली में शहद, आँखों में नित नयी ऊँचाई छूने की चमक और उसके लिए मेहनत करने से कभी न थकने की ललक। आम जनजीवन में छोटी-मोटी तकरार; पर फिर भी बसता है दिलों नें प्यार। और इन सबसे ऊपर जो परवरदिगार ने फुरसत से नवाजी है वो है राजनीति की ब्यार।
भारतवर्ष में एक पोपुलर कहावत है कि प्यार करना है तो पंजाब चलो और राजनीति करनी हो तो बिहार। जहाँ के अर्थशास्त्र की किताब में लिखी-छपी राजनीति की बातें चाणक्य को चाणक्य बनाने में सफल होती है वहीं, उसी राजनीति के सागर का मंथन कर निकला हुआ बैंक मैनेजर माथुर साहेब का सुपुत्र रुद्र माथुर और राजनीति की रीति-रिवाज को पीढ़ी-दर-पीढ़ी बढ़ाते विधायक जी की सुपुत्री गौरी मिश्रा।
उम्र में कच्चे; दोनों बच्चे। अभी-अभी तो बायलॉजी की साइकोलॉजी समझना शुरू ही किया था कि आयु की जलवायु अपनी पुरवाई हवा से दिल के दीवार पर कील ठोक इश्क़ का अंगोछा डाल, हरियाणा रोडवेज के बस के जैसे अपनी सीट पक्की करने में लगा हुआ था।
अब देखना है कि मध्यमवर्गीय माथुर साहेब के सुपुत्र के प्यार को कहाँ जाकर करार मिलता है?
या फिर सत्ताधारी विधायक जी की राजनीति की बढ़ती हुई गति उन्हीं की सुपुत्री गौरी मिश्रा जी के प्यार के बीच दीवार बन जायेगा?
रुद्र और गौरी की प्यार हकार देने पहुँचा है "भौकाल" आपके दरवाजे, तो आइए जुड़िए हमारी लव स्टोरी के साथ फुरसत निकाल तसल्ली कोर्नर से बैठ पढ़ डालिए लव कोर्नर के साथ।साल 2015 बिहार राज्य का दरभंगा जिला। अपनी बोली में शहद, आँखों में नित नयी ऊँचाई छूने की चमक और उसके लिए मेहनत करने से कभी न थकने की ललक। आम जनजीवन में छोटी-मोटी तकरार; पर फिर भी बसता है दिलों नें प्यार। और इन सबसे ऊपर जो परवरदिगार ने फुरसत से नवाजी है वो है राजनीति की ब्यार। भारतवर्ष में एक पोपुलर कहावत है कि प्यार करना है तो पंजाब चलो और राजनीति करनी हो तो बिहार। जहाँ के अर्थशास्त्र की किताब में लिखी-छपी राजनीति की बातें चाणक्य को चाणक्य बनाने में सफल होती है वहीं, उसी राजनीति के सागर का मंथन कर निकला हुआ बैंक मैनेजर माथुर साहेब का सुपुत्र रुद्र माथुर और राजनीति की रीति-रिवाज को पीढ़ी-दर-पीढ़ी बढ़ाते विधायक जी की सुपुत्री गौरी मिश्रा। उम्र में कच्चे; दोनों बच्चे। अभी-अभी तो बायलॉजी की साइकोलॉजी समझना शुरू ही किया था कि आयु की जलवायु अपनी पुरवाई हवा से दिल के दीवार पर कील ठोक इश्क़ का अंगोछा डाल, हरियाणा रोडवेज के बस के जैसे अपनी सीट पक्की करने में लगा हुआ था। अब देखना है कि मध्यमवर्गीय माथुर साहेब के सुपुत्र के प्यार को कहाँ जाकर करार मिलता है? या फिर सत्ताधारी विधायक जी की राजनीति की बढ़ती हुई गति उन्हीं की सुपुत्री गौरी मिश्रा जी के प्यार के बीच दीवार बन जायेगा? रुद्र और गौरी की प्यार हकार देने पहुँचा है "भौकाल" आपके दरवाजे, तो आइए जुड़िए हमारी लव स्टोरी के साथ फुरसत निकाल तसल्ली कोर्नर से बैठ पढ़ डालिए लव कोर्नर के साथ। - *अपनी मृत्यु और अपनों की मृत्यु डरावनी लगती है। बाकी तो मौत को enjoy ही करता है आदमी* ...
?थोड़ा समय निकाल कर अंत तक पूरा पढ़ना
मौत के स्वाद का चटखारे लेता मनुष्य ...
थोड़ा कड़वा लिखा है पर मन का लिखा है ...
*मौत से प्यार नहीं , मौत तो हमारा स्वाद है*।---
बकरे का,
गाय का,
भेंस का,
ऊँट का,
सुअर,
हिरण का,
तीतर का,
मुर्गे का,
हलाल का,
बिना हलाल का,
ताजा बकरे का,
भुना हुआ,
छोटी मछली,
बड़ी मछली,
हल्की आंच पर सिका हुआ।
न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं मौत के।
क्योंकि मौत किसी और की, और स्वाद हमारा....
स्वाद से कारोबार बन गई मौत।
मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्स।
नाम *पालन* और मक़सद *हत्या*
स्लाटर हाउस तक खोल दिये। वो भी ऑफिशियल। गली गली में खुले नान वेज रेस्टॉरेंट, मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं ? मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नही है।
जो हमारी तरह बोल नही सकते,
अभिव्यक्त नही कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं,
उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया ?
कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं ?
या उनकी आहें नहीं निकलतीं ?
डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों को सीख देते है, बेटा कभी किसी का दिल नही दुखाना ! किसी की आहें मत लेना ! किसी की आंख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आना चाहिए !
बच्चों में झुठे संस्कार डालते बाप को, अपने हाथ मे वो हडडी दिखाई नही देती, जो इससे पहले एक शरीर थी, जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक मां थी ...??
जिसे काटा गया होगा ?
जो कराहा होगा ?
जो तड़पा होगा ?
जिसकी आहें निकली होंगी ?
जिसने बद्दुआ भी दी होगी ?
कैसे मान लिया कि जब जब धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो
भगवान सिर्फ तुम इंसानों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे ..
क्या मूक जानवर उस परमपिता परमेश्वर की संतान नहीं हैं .
क्या उस ईश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है ..
धर्म की आड़ में उस परमपिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ईद पर बकरे काटते हो, कभी दुर्गा मां या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो।
कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो ।
कभी सोचा ...!!!
क्या ईश्वर का स्वाद होता है ? ....क्या है उनका भोजन ?
किसे ठग रहे हो ?
भगवान को ?
अल्लाह को ?
जीसस को?
या खुद को ?
मंगलवार को नानवेज नही खाता ...!!!
आज शनिवार है इसलिए नहीं ...!!!
अभी रोज़े चल रहे हैं ....!!!
नवरात्रि में तो सवाल ही नही उठता ....!!!
झूठ पर झूठ....
...झूठ पर झूठ
..झूठ पर झूठ ..
ईश्वर ने बुद्धि सिर्फ तुम्हे दी । ताकि तमाम योनियों में भटकने के बाद मानव योनि में तुम जन्म मृत्यु के चक्र से निकलने का रास्ता ढूँढ सको। लेकिन तुमने इस मानव योनि को पाते ही स्वयं को भगवान समझ लिया।
तुम्ही कहते हो, की हम जो प्रकति को देंगे, वही प्रकृति हमे लौटायेगी।
यह संकेत है ईश्वर का।
प्रकृति के साथ रहो।
प्रकृति के होकर रहो।
#Anand_Mishra*अपनी मृत्यु और अपनों की मृत्यु डरावनी लगती है। बाकी तो मौत को enjoy ही करता है आदमी* ... ?थोड़ा समय निकाल कर अंत तक पूरा पढ़ना ✍️ मौत के स्वाद का चटखारे लेता मनुष्य ... थोड़ा कड़वा लिखा है पर मन का लिखा है ... *मौत से प्यार नहीं , मौत तो हमारा स्वाद है*।--- बकरे का, गाय का, भेंस का, ऊँट का, सुअर, हिरण का, तीतर का, मुर्गे का, हलाल का, बिना हलाल का, ताजा बकरे का, भुना हुआ, छोटी मछली, बड़ी मछली, हल्की आंच पर सिका हुआ। न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं मौत के। क्योंकि मौत किसी और की, और स्वाद हमारा.... स्वाद से कारोबार बन गई मौत। मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्स। नाम *पालन* और मक़सद *हत्या*❗ स्लाटर हाउस तक खोल दिये। वो भी ऑफिशियल। गली गली में खुले नान वेज रेस्टॉरेंट, मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं ? मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नही है। जो हमारी तरह बोल नही सकते, अभिव्यक्त नही कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं, उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया ? कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं ? या उनकी आहें नहीं निकलतीं ? डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों को सीख देते है, बेटा कभी किसी का दिल नही दुखाना ! किसी की आहें मत लेना ! किसी की आंख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आना चाहिए ! बच्चों में झुठे संस्कार डालते बाप को, अपने हाथ मे वो हडडी दिखाई नही देती, जो इससे पहले एक शरीर थी, जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक मां थी ...?? जिसे काटा गया होगा ? जो कराहा होगा ? जो तड़पा होगा ? जिसकी आहें निकली होंगी ? जिसने बद्दुआ भी दी होगी ? कैसे मान लिया कि जब जब धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो भगवान सिर्फ तुम इंसानों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे ..❓ क्या मूक जानवर उस परमपिता परमेश्वर की संतान नहीं हैं .❓ क्या उस ईश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है ..❓ धर्म की आड़ में उस परमपिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ईद पर बकरे काटते हो, कभी दुर्गा मां या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो। कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो । कभी सोचा ...!!! क्या ईश्वर का स्वाद होता है ? ....क्या है उनका भोजन ? किसे ठग रहे हो ? भगवान को ? अल्लाह को ? जीसस को? या खुद को ? मंगलवार को नानवेज नही खाता ...!!! आज शनिवार है इसलिए नहीं ...!!! अभी रोज़े चल रहे हैं ....!!! नवरात्रि में तो सवाल ही नही उठता ....!!! झूठ पर झूठ.... ...झूठ पर झूठ ..झूठ पर झूठ .. ईश्वर ने बुद्धि सिर्फ तुम्हे दी । ताकि तमाम योनियों में भटकने के बाद मानव योनि में तुम जन्म मृत्यु के चक्र से निकलने का रास्ता ढूँढ सको। लेकिन तुमने इस मानव योनि को पाते ही स्वयं को भगवान समझ लिया। तुम्ही कहते हो, की हम जो प्रकति को देंगे, वही प्रकृति हमे लौटायेगी। यह संकेत है ईश्वर का। प्रकृति के साथ रहो। प्रकृति के होकर रहो। #Anand_Mishra -
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