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bhokal.com की पूरी टीम का बहुत बहुत आभार खासकर Sandeep Pandey sir जी का । बहुत ही कम समय में वेरिफाइड करने के लिए शुक्रिया .
अब और जोश के साथ #bhokal काटा जाएगा.
bhokal.com की पूरी टीम का बहुत बहुत आभार खासकर [AhamSandy] sir जी का । बहुत ही कम समय में वेरिफाइड करने के लिए शुक्रिया . अब और जोश के साथ #bhokal काटा जाएगा.
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  • आज दोस्तों बात करते हैं एक ऐसी शख़्सियत के बारे में जो मौज़ूदा समय के सबसे शक्तिशाली देश संयुक्त राज्य अमेरिका का निवासी था और उसे लड़ना पड़ा अपनों से अपनों के लिए। जी हाँ हम बात कर रहे हैं थॉमस मोंटगोमरी ग्रेगरी (Thomas Montgomery Gregory) की। थॉमस ग्रेगरी एक प्रसिद्ध नाटककार, इतिहासकार, शिक्षक, दार्शनिक, सामाजिक कार्यकर्ता और राष्ट्रीय अश्वेत थिएटर आंदोलन को आगे बढ़ाने वाले व्यक्ति थे।

    थॉमस ग्रेगरी के समय अमेरिका में नस्लवाद बहुत ही हावी था और अश्वेत लोगों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार अपने चरम पर था इसीलिए ग्रेगरी ने अपने शरुआती जीवन में ही यह मन बना लिया था कि अपनी कला का उपयोग अश्वेत लोगों के सामाजिक परिवर्तन के लिए करना है। उन्होंने अपनी कला के द्वारा हासिल उपलब्धि “रेस इन आर्ट” के माध्यम से अश्वेतों के के सशक्तिकरण को नई दिशा दी जो द सिटीजन नामक पत्रिका में उनके द्वारा लिखे गए एक लेख से पता चलता है। जिसे थॉमस ग्रेगरी के अन्य सहयोगियों जॉर्ज डब्ल्यू एलिस , विलियम स्टेनली ब्रेथवेट एवं चार्ल्स एफ लेन द्वारा प्रकाशित किया गया।

    पूरा क़िस्सा पढ़ने के लिए लॉगिन कीजिये - www.ninetv.in
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  • आर. के. सिंह पटेल का जन्म चित्रकूट जनपद के पहाड़ी ब्लॉक में स्थित बालापुर, खालसा नामक ग्राम में सन् 1959 को हुआ था। इनके पिता जी का नाम श्री भगवान दिन सिंह एवं माता जी का नाम श्री मती राम सखी देवी है । इनका पूरा नाम राम कृपाल सिंह पटेल है लेकिन अपने चुनावी क्षेत्र में आर. के. सिंह पटेल के नाम से ही लोकप्रिय है।
    किसान परिवार में जन्मे आर के सिंह पटेल ने अपने गृह जनपद चित्रकूट से इंटरमीडियट की परीक्षा पास करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन तक कि पढ़ाई पूरी की है ।
    आर. के. सिंह पटेल की पूरी कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करें -www.ninetv.in
    #ninetv
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    आर. के. सिंह पटेल का जन्म चित्रकूट जनपद के पहाड़ी ब्लॉक में स्थित बालापुर, खालसा नामक ग्राम में सन् 1959 को हुआ था। इनके पिता जी का नाम श्री भगवान दिन सिंह एवं माता जी का नाम श्री मती राम सखी देवी है । इनका पूरा नाम राम कृपाल सिंह पटेल है लेकिन अपने चुनावी क्षेत्र में आर. के. सिंह पटेल के नाम से ही लोकप्रिय है। किसान परिवार में जन्मे आर के सिंह पटेल ने अपने गृह जनपद चित्रकूट से इंटरमीडियट की परीक्षा पास करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन तक कि पढ़ाई पूरी की है । आर. के. सिंह पटेल की पूरी कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करें -www.ninetv.in #ninetv #NineTv
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  • आज दोस्तों बात करते हैं एक ऐसी शख़्सियत के बारे में जो मौज़ूदा समय के सबसे शक्तिशाली देश संयुक्त राज्य अमेरिका का निवासी था और उसे लड़ना पड़ा अपनों से अपनों के लिए। जी हाँ हम बात कर रहे हैं थॉमस मोंटगोमरी ग्रेगरी (Thomas Montgomery Gregory) की। थॉमस ग्रेगरी एक प्रसिद्ध नाटककार, इतिहासकार, शिक्षक, दार्शनिक, सामाजिक कार्यकर्ता और राष्ट्रीय अश्वेत थिएटर आंदोलन को आगे बढ़ाने वाले व्यक्ति थे।

    थॉमस ग्रेगरी के समय अमेरिका में नस्लवाद बहुत ही हावी था और अश्वेत लोगों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार अपने चरम पर था इसीलिए ग्रेगरी ने अपने शरुआती जीवन में ही यह मन बना लिया था कि अपनी कला का उपयोग अश्वेत लोगों के सामाजिक परिवर्तन के लिए करना है। उन्होंने अपनी कला के द्वारा हासिल उपलब्धि “रेस इन आर्ट” के माध्यम से अश्वेतों के के सशक्तिकरण को नई दिशा दी जो द सिटीजन नामक पत्रिका में उनके द्वारा लिखे गए एक लेख से पता चलता है। जिसे थॉमस ग्रेगरी के अन्य सहयोगियों जॉर्ज डब्ल्यू एलिस , विलियम स्टेनली ब्रेथवेट एवं चार्ल्स एफ लेन द्वारा प्रकाशित किया गया।

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    आज दोस्तों बात करते हैं एक ऐसी शख़्सियत के बारे में जो मौज़ूदा समय के सबसे शक्तिशाली देश संयुक्त राज्य अमेरिका का निवासी था और उसे लड़ना पड़ा अपनों से अपनों के लिए। जी हाँ हम बात कर रहे हैं थॉमस मोंटगोमरी ग्रेगरी (Thomas Montgomery Gregory) की। थॉमस ग्रेगरी एक प्रसिद्ध नाटककार, इतिहासकार, शिक्षक, दार्शनिक, सामाजिक कार्यकर्ता और राष्ट्रीय अश्वेत थिएटर आंदोलन को आगे बढ़ाने वाले व्यक्ति थे। थॉमस ग्रेगरी के समय अमेरिका में नस्लवाद बहुत ही हावी था और अश्वेत लोगों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार अपने चरम पर था इसीलिए ग्रेगरी ने अपने शरुआती जीवन में ही यह मन बना लिया था कि अपनी कला का उपयोग अश्वेत लोगों के सामाजिक परिवर्तन के लिए करना है। उन्होंने अपनी कला के द्वारा हासिल उपलब्धि “रेस इन आर्ट” के माध्यम से अश्वेतों के के सशक्तिकरण को नई दिशा दी जो द सिटीजन नामक पत्रिका में उनके द्वारा लिखे गए एक लेख से पता चलता है। जिसे थॉमस ग्रेगरी के अन्य सहयोगियों जॉर्ज डब्ल्यू एलिस , विलियम स्टेनली ब्रेथवेट एवं चार्ल्स एफ लेन द्वारा प्रकाशित किया गया। पूरा क़िस्सा पढ़ने के लिए लॉगिन कीजिये - www.ninetv.in #ninetv
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  • उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) भारतीय राजनीति का हमेशा से ही एक सक्रिया चेहरा रहे हैं। जिन्होंने विवादों, राजनीतिक बयानबाजी से ऊपर उठकर भारत की राजनीति में अपनी एक अलग जगह बनाई। वे आज एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ और भारतीय संघीय गणराज्य के रक्षा मंत्री हैं। वह भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सदस्य हैं और भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कई बार मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। उन्होंने भारतीय सरकार में विभिन्न मंत्रीमंडलों में भी महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है। राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) भारतीय राजनीति में एक प्रमुख और कद्दावर राजनेता के तौर पर ऊभर कर आए हैं। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से वर्तमान में राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) सांसद हैं। वे भारत के गृह मंत्री (Home Minister) रह चुके हैं।

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    उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) भारतीय राजनीति का हमेशा से ही एक सक्रिया चेहरा रहे हैं। जिन्होंने विवादों, राजनीतिक बयानबाजी से ऊपर उठकर भारत की राजनीति में अपनी एक अलग जगह बनाई। वे आज एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ और भारतीय संघीय गणराज्य के रक्षा मंत्री हैं। वह भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सदस्य हैं और भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कई बार मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। उन्होंने भारतीय सरकार में विभिन्न मंत्रीमंडलों में भी महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है। राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) भारतीय राजनीति में एक प्रमुख और कद्दावर राजनेता के तौर पर ऊभर कर आए हैं। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से वर्तमान में राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) सांसद हैं। वे भारत के गृह मंत्री (Home Minister) रह चुके हैं। पूरा क़िस्सा पढ़ने के लिए लॉगिन कीजिये - www.ninetv.in #ninetv
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  • 8 अक्टूबर, रविवार को पुष्य नक्षत्र का संयोग बन रहा है। ज्योतिष में इसे रवि पुष्य योग कहा जाता है। इस योग में खरीदारी और अन्य शुभ काम करने से उनका फायदा मिलेगा। नवरात्र से पहले आने वाला ये रवि पुष्य संयोग पूरे दिन रहेगा। फिर दीपावली से पहले 5 नवंबर को रवि पुष्य योग बनेगा।

    ऐसी स्थिति साल में चार-पांच बार ही बनती है, इसलिए हर तरह के शुभ काम और नए काम की शुरुआत के लिए 8 तारीख को बन रहा शुभ संयोग बहुत ही खास रहेगा। इस शुभ संयोग में किए गए लेन-देन, निवेश, खरीदारी और शुरू किए काम से धन लाभ होता है।

    #ninetv

    8 अक्टूबर, रविवार को पुष्य नक्षत्र का संयोग बन रहा है। ज्योतिष में इसे रवि पुष्य योग कहा जाता है। इस योग में खरीदारी और अन्य शुभ काम करने से उनका फायदा मिलेगा। नवरात्र से पहले आने वाला ये रवि पुष्य संयोग पूरे दिन रहेगा। फिर दीपावली से पहले 5 नवंबर को रवि पुष्य योग बनेगा। ऐसी स्थिति साल में चार-पांच बार ही बनती है, इसलिए हर तरह के शुभ काम और नए काम की शुरुआत के लिए 8 तारीख को बन रहा शुभ संयोग बहुत ही खास रहेगा। इस शुभ संयोग में किए गए लेन-देन, निवेश, खरीदारी और शुरू किए काम से धन लाभ होता है। #ninetv
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  • हिन्दी फिल्म के दिग्गज प्रोड्यूसर रण जौहर के पिता यश जौहर किसी पहचान के मोहताज़ नहीं थे वो खुद में एक बड़े और स्वभाव के अछे माने जाने आदमी थे यश जौहर अपनी फिल्म इंडस्ट्री की बदौलत उन्होंने काफी नाम कमाया है अगर बात करें उनकी फिल्म की जो ' कुछ कुछ होता है', कल हो ना हो' ये सब उनकी काफी सुपर हिट फ़िल्मों को प्रोड्यूस करने वाले यश जौहर आज भले ही हमारे बीच न हों मगर अपनी इन सब फिल्मों के जरिए वो आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं लोग आज भी इन्हें याद करते हैं|
    हिन्दी फिल्म के दिग्गज प्रोड्यूसर रण जौहर के पिता यश जौहर किसी पहचान के मोहताज़ नहीं थे वो खुद में एक बड़े और स्वभाव के अछे माने जाने आदमी थे यश जौहर अपनी फिल्म इंडस्ट्री की बदौलत उन्होंने काफी नाम कमाया है अगर बात करें उनकी फिल्म की जो ' कुछ कुछ होता है', कल हो ना हो' ये सब उनकी काफी सुपर हिट फ़िल्मों को प्रोड्यूस करने वाले यश जौहर आज भले ही हमारे बीच न हों मगर अपनी इन सब फिल्मों के जरिए वो आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं लोग आज भी इन्हें याद करते हैं|
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  • रमण महर्षि कह गए, “भक्ति ज्ञान की माता है। प्रेम है तो ज्ञान आ जाता है। भक्ति ज्ञान की माता है।”

    प्रेम है तो धीरे-धीरे ज्ञान आ जाएगा, पर ज्ञान है तो उससे प्रेम नहीं आ जाएगा; बेटा माँ को नहीं पैदा कर देगा। हम बड़े प्रेमहीन, रूखे लोग होते है; कुछ पानी नहीं होता हस्ती में। सब बिल्कुल सूखा-सूखा। हम में से ज़्यादातर लोगों के तो आँसू भी नहीं बहते ठीक से। आँख से कुछ बह रहा है। क्या? कीचड़; आँसू नहीं।

    #AnandMishra #Motivation #PowerCapsule
    रमण महर्षि कह गए, “भक्ति ज्ञान की माता है। प्रेम है तो ज्ञान आ जाता है। भक्ति ज्ञान की माता है।” प्रेम है तो धीरे-धीरे ज्ञान आ जाएगा, पर ज्ञान है तो उससे प्रेम नहीं आ जाएगा; बेटा माँ को नहीं पैदा कर देगा। हम बड़े प्रेमहीन, रूखे लोग होते है; कुछ पानी नहीं होता हस्ती में। सब बिल्कुल सूखा-सूखा। हम में से ज़्यादातर लोगों के तो आँसू भी नहीं बहते ठीक से। आँख से कुछ बह रहा है। क्या? कीचड़; आँसू नहीं। #AnandMishra #Motivation #PowerCapsule
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  • ये कहावत तो सुनी होगी न
    पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।

    अब इसका अर्थ भी सरल तरीक़े से समझो
    जग भर को तो ज्ञान है, किसको नहीं ज्ञान है। घर-घर में वेद -पुराण रखी हुई हैं, बाइबल-क़ुरआन रखी हुई हैं। ज्ञान किसको नहीं है! काम किसके आ रहा है? काम उसके आएगा जिसके दिल में प्रेम है। उसके ज्ञान काम आ जाएगा।

    साहिब ने आगे भी बात की है। उन्होंने कहा है कि ज्ञान तुम्हारे पास नहीं भी हो, पर अगर प्रेम है तो चल पड़ोगे और धीरे-धीरे ज्ञान आता जाएगा। पूछ लोगे, इससे पूछ लोगे, उससे पूछ लोगे; कुछ अनुभव से आएगा, कुछ ध्यान से आएगा।
    #AnandMishra #PowerCapsule #Motivation
    ये कहावत तो सुनी होगी न पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। अब इसका अर्थ भी सरल तरीक़े से समझो जग भर को तो ज्ञान है, किसको नहीं ज्ञान है। घर-घर में वेद -पुराण रखी हुई हैं, बाइबल-क़ुरआन रखी हुई हैं। ज्ञान किसको नहीं है! काम किसके आ रहा है? काम उसके आएगा जिसके दिल में प्रेम है। उसके ज्ञान काम आ जाएगा। साहिब ने आगे भी बात की है। उन्होंने कहा है कि ज्ञान तुम्हारे पास नहीं भी हो, पर अगर प्रेम है तो चल पड़ोगे और धीरे-धीरे ज्ञान आता जाएगा। पूछ लोगे, इससे पूछ लोगे, उससे पूछ लोगे; कुछ अनुभव से आएगा, कुछ ध्यान से आएगा। #AnandMishra #PowerCapsule #Motivation
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  • ज़्यादातर लोग ज्ञान का क्या करते हैं ? कभी ये सवाल आपके मन में आया है ? मैं बताता हूँ क्या करते हैं. ज्ञान इकट्ठा करके सो जाते हैं.कहते हैं, “बढ़िया चीज़ मिल गई है। अब सोते हैं इसी पर।” तो बढ़िया चीज़ तुम्हें दी किसलिए गई थी? कि उसका उपयोग करके मंज़िल तक जाओ। पर मंज़िल के लिए कोई चाहत ही नहीं। कुछ लोग और आगे के होते हैं, वो कहते हैं, “बढ़िया गाड़ी मिली है। चलो बेच ही देते हैं।” #AnandMishra #Motivation #PowerCapsule
    ज़्यादातर लोग ज्ञान का क्या करते हैं ? कभी ये सवाल आपके मन में आया है ? मैं बताता हूँ क्या करते हैं. ज्ञान इकट्ठा करके सो जाते हैं.कहते हैं, “बढ़िया चीज़ मिल गई है। अब सोते हैं इसी पर।” तो बढ़िया चीज़ तुम्हें दी किसलिए गई थी? कि उसका उपयोग करके मंज़िल तक जाओ। पर मंज़िल के लिए कोई चाहत ही नहीं। कुछ लोग और आगे के होते हैं, वो कहते हैं, “बढ़िया गाड़ी मिली है। चलो बेच ही देते हैं।” #AnandMishra #Motivation #PowerCapsule
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  • ये किन कल्पनाओं में हो कि इधर-उधर जाकर कहीं भाग गए, छुप गए तो मुक्ति मिल जाएगी ? जिन्हें अपनी दासता बरक़रार रखनी हो, वो भले ही संघर्ष ना करें, पर जो मुक्ति के प्रार्थी हों, उनका संघर्ष के बिना कैसे काम चलेगा? उन्हें तो घोर संघर्ष करना पड़ेगा, भीतर भी और बाहर भी। अर्जुन एक-एक तीर जो चला रहा है, वो कौरवों मात्र पर नहीं चला रहा है; अर्जुन का एक-एक तीर पुराने अर्जुन पर भी चल रहा है। हर तीर के साथ पुराना अर्जुन मिटता जा रहा है और एक नए अर्जुन का जन्म हो रहा है।

    पुराना अर्जुन कौन? पुराना अर्जुन वो जो पाण्डु पुत्र था; पुराना अर्जुन वो जो भीष्म के वंश का था; पुराना अर्जुन वो जो द्रोण का शिष्य था। नया अर्जुन कौन? जो सिर्फ कृष्ण का है। ये मुक्ति है— अर्जुन स्वयं से मुक्त हो रहा है एक-एक तीर के साथ। इसको कहते हैं मुक्ति। दूसरों को नहीं मार रहा अर्जुन; दूसरों से पहले स्वयं को मार रहा है। आज पहला अध्याय पढ़ा आपने। पहले अध्याय का जो अर्जुन है, वो अट्ठारहवें अध्याय में कहीं मिलेगा? तो कहाँ गया पहले अध्याय का अर्जुन? कहाँ गया?

    अट्ठारवें अध्याय तक आते-आते पहले अध्याय का अर्जुन कहाँ गया? मर गया। किसने मारा उसे? अर्जुन ने ही मारा। ये मुक्ति है। देह होकर देखोगे, स्थूल दृष्टि से देखोगे तो तुम्हें दिखाई पड़ेगा कि अर्जुन तो तीर चला रहा है दूसरों पर। वास्तव में अर्जुन तीर चला रहा है स्वयं पर। इस युद्ध को लड़ना अर्जुन की साधना भी है – वो अपने ही पूर्वग्रहों से, मोह से, बँधनों से मुक्त हुआ जा रहा है - ऐसे मिलती है मुक्ति। जीव पैदा हुए हो, बेटा। लगातार कर्म तो करना ही है। एक कर्म है तीर चलाना, एक कर्म है भाग जाना।

    तुम कह रहे हो कि तीर चलाने से मुक्ति मिल गई भाग जाने से, अब भाग जाने से मुक्ति कैसे मिलेगी ? कर्म तो तुमने दोनों ही दशाओं में किया ही न। तीर चलाना एक कर्म था और मैदान से भाग जाना भी एक कर्म होता। तीर चलाने से मुक्ति मिली भाग जाने से, और अब ये जो भाग जाने का कर्म है, इससे मुक्ति कैसे मिलेगी, बोलो?
    #Anand_Mishra #Motivation
    ये किन कल्पनाओं में हो कि इधर-उधर जाकर कहीं भाग गए, छुप गए तो मुक्ति मिल जाएगी ? जिन्हें अपनी दासता बरक़रार रखनी हो, वो भले ही संघर्ष ना करें, पर जो मुक्ति के प्रार्थी हों, उनका संघर्ष के बिना कैसे काम चलेगा? उन्हें तो घोर संघर्ष करना पड़ेगा, भीतर भी और बाहर भी। अर्जुन एक-एक तीर जो चला रहा है, वो कौरवों मात्र पर नहीं चला रहा है; अर्जुन का एक-एक तीर पुराने अर्जुन पर भी चल रहा है। हर तीर के साथ पुराना अर्जुन मिटता जा रहा है और एक नए अर्जुन का जन्म हो रहा है। पुराना अर्जुन कौन? पुराना अर्जुन वो जो पाण्डु पुत्र था; पुराना अर्जुन वो जो भीष्म के वंश का था; पुराना अर्जुन वो जो द्रोण का शिष्य था। नया अर्जुन कौन? जो सिर्फ कृष्ण का है। ये मुक्ति है— अर्जुन स्वयं से मुक्त हो रहा है एक-एक तीर के साथ। इसको कहते हैं मुक्ति। दूसरों को नहीं मार रहा अर्जुन; दूसरों से पहले स्वयं को मार रहा है। आज पहला अध्याय पढ़ा आपने। पहले अध्याय का जो अर्जुन है, वो अट्ठारहवें अध्याय में कहीं मिलेगा? तो कहाँ गया पहले अध्याय का अर्जुन? कहाँ गया? अट्ठारवें अध्याय तक आते-आते पहले अध्याय का अर्जुन कहाँ गया? मर गया। किसने मारा उसे? अर्जुन ने ही मारा। ये मुक्ति है। देह होकर देखोगे, स्थूल दृष्टि से देखोगे तो तुम्हें दिखाई पड़ेगा कि अर्जुन तो तीर चला रहा है दूसरों पर। वास्तव में अर्जुन तीर चला रहा है स्वयं पर। इस युद्ध को लड़ना अर्जुन की साधना भी है – वो अपने ही पूर्वग्रहों से, मोह से, बँधनों से मुक्त हुआ जा रहा है - ऐसे मिलती है मुक्ति। जीव पैदा हुए हो, बेटा। लगातार कर्म तो करना ही है। एक कर्म है तीर चलाना, एक कर्म है भाग जाना। तुम कह रहे हो कि तीर चलाने से मुक्ति मिल गई भाग जाने से, अब भाग जाने से मुक्ति कैसे मिलेगी ? कर्म तो तुमने दोनों ही दशाओं में किया ही न। तीर चलाना एक कर्म था और मैदान से भाग जाना भी एक कर्म होता। तीर चलाने से मुक्ति मिली भाग जाने से, और अब ये जो भाग जाने का कर्म है, इससे मुक्ति कैसे मिलेगी, बोलो? #Anand_Mishra #Motivation
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  • गुलामी के लिए कोई संघर्ष नही चाहिए लेकिन मुक्ति के लिए हमेशा संघर्ष करना होगा
    ये किन कल्पनाओं में हो कि इधर-उधर जाकर कहीं भाग गए, छुप गए तो मुक्ति मिल जाएगी ? जिन्हें अपनी दासता बरक़रार रखनी हो, वो भले ही संघर्ष ना करें, पर जो मुक्ति के प्रार्थी हों, उनका संघर्ष के बिना कैसे काम चलेगा? उन्हें तो घोर संघर्ष करना पड़ेगा, भीतर भी और बाहर भी। अर्जुन एक-एक तीर जो चला रहा है, वो कौरवों मात्र पर नहीं चला रहा है; अर्जुन का एक-एक तीर पुराने अर्जुन पर भी चल रहा है। हर तीर के साथ...
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  • मेरी गुजारिश है Bhokal Desk कि एडिटेड वॉइस क्लिप का विकल्प इसमें रखा जाना चाहिए ताकि कोई वॉइस को एडिट करके uplode करना चाहे तो कर सके। ये सारे फीचर्स इस प्लेटफॉर्म को सबसे पावरफुल बना देंगे .Sandeep Pandey
    मेरी गुजारिश है [master] कि एडिटेड वॉइस क्लिप का विकल्प इसमें रखा जाना चाहिए ताकि कोई वॉइस को एडिट करके uplode करना चाहे तो कर सके। ये सारे फीचर्स इस प्लेटफॉर्म को सबसे पावरफुल बना देंगे .[AhamSandy]
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  • *अपनी मृत्यु और अपनों की मृत्यु डरावनी लगती है। बाकी तो मौत को enjoy ही करता है आदमी* ...

    ?थोड़ा समय निकाल कर अंत तक पूरा पढ़ना

    मौत के स्वाद का चटखारे लेता मनुष्य ...
    थोड़ा कड़वा लिखा है पर मन का लिखा है ...

    *मौत से प्यार नहीं , मौत तो हमारा स्वाद है*।---

    बकरे का,
    गाय का,
    भेंस का,
    ऊँट का,
    सुअर,
    हिरण का,
    तीतर का,
    मुर्गे का,
    हलाल का,
    बिना हलाल का,
    ताजा बकरे का,
    भुना हुआ,
    छोटी मछली,
    बड़ी मछली,
    हल्की आंच पर सिका हुआ।
    न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं मौत के।
    क्योंकि मौत किसी और की, और स्वाद हमारा....

    स्वाद से कारोबार बन गई मौत।
    मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्स।
    नाम *पालन* और मक़सद *हत्या*
    स्लाटर हाउस तक खोल दिये। वो भी ऑफिशियल। गली गली में खुले नान वेज रेस्टॉरेंट, मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं ? मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नही है।

    जो हमारी तरह बोल नही सकते,
    अभिव्यक्त नही कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं,
    उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया ?
    कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं ?
    या उनकी आहें नहीं निकलतीं ?

    डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों को सीख देते है, बेटा कभी किसी का दिल नही दुखाना ! किसी की आहें मत लेना ! किसी की आंख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आना चाहिए !

    बच्चों में झुठे संस्कार डालते बाप को, अपने हाथ मे वो हडडी दिखाई नही देती, जो इससे पहले एक शरीर थी, जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक मां थी ...??
    जिसे काटा गया होगा ?
    जो कराहा होगा ?
    जो तड़पा होगा ?
    जिसकी आहें निकली होंगी ?
    जिसने बद्दुआ भी दी होगी ?

    कैसे मान लिया कि जब जब धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो
    भगवान सिर्फ तुम इंसानों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे ..

    क्या मूक जानवर उस परमपिता परमेश्वर की संतान नहीं हैं .
    क्या उस ईश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है ..
    धर्म की आड़ में उस परमपिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ईद पर बकरे काटते हो, कभी दुर्गा मां या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो।
    कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो ।

    कभी सोचा ...!!!
    क्या ईश्वर का स्वाद होता है ? ....क्या है उनका भोजन ?

    किसे ठग रहे हो ?
    भगवान को ?
    अल्लाह को ?
    जीसस को?
    या खुद को ?

    मंगलवार को नानवेज नही खाता ...!!!
    आज शनिवार है इसलिए नहीं ...!!!
    अभी रोज़े चल रहे हैं ....!!!
    नवरात्रि में तो सवाल ही नही उठता ....!!!

    झूठ पर झूठ....
    ...झूठ पर झूठ
    ..झूठ पर झूठ ..

    ईश्वर ने बुद्धि सिर्फ तुम्हे दी । ताकि तमाम योनियों में भटकने के बाद मानव योनि में तुम जन्म मृत्यु के चक्र से निकलने का रास्ता ढूँढ सको। लेकिन तुमने इस मानव योनि को पाते ही स्वयं को भगवान समझ लिया।

    तुम्ही कहते हो, की हम जो प्रकति को देंगे, वही प्रकृति हमे लौटायेगी।
    यह संकेत है ईश्वर का।

    प्रकृति के साथ रहो।
    प्रकृति के होकर रहो।
    #Anand_Mishra
    *अपनी मृत्यु और अपनों की मृत्यु डरावनी लगती है। बाकी तो मौत को enjoy ही करता है आदमी* ... ?थोड़ा समय निकाल कर अंत तक पूरा पढ़ना ✍️ मौत के स्वाद का चटखारे लेता मनुष्य ... थोड़ा कड़वा लिखा है पर मन का लिखा है ... *मौत से प्यार नहीं , मौत तो हमारा स्वाद है*।--- बकरे का, गाय का, भेंस का, ऊँट का, सुअर, हिरण का, तीतर का, मुर्गे का, हलाल का, बिना हलाल का, ताजा बकरे का, भुना हुआ, छोटी मछली, बड़ी मछली, हल्की आंच पर सिका हुआ। न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं मौत के। क्योंकि मौत किसी और की, और स्वाद हमारा.... स्वाद से कारोबार बन गई मौत। मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्स। नाम *पालन* और मक़सद *हत्या*❗ स्लाटर हाउस तक खोल दिये। वो भी ऑफिशियल। गली गली में खुले नान वेज रेस्टॉरेंट, मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं ? मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नही है। जो हमारी तरह बोल नही सकते, अभिव्यक्त नही कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं, उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया ? कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं ? या उनकी आहें नहीं निकलतीं ? डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों को सीख देते है, बेटा कभी किसी का दिल नही दुखाना ! किसी की आहें मत लेना ! किसी की आंख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आना चाहिए ! बच्चों में झुठे संस्कार डालते बाप को, अपने हाथ मे वो हडडी दिखाई नही देती, जो इससे पहले एक शरीर थी, जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक मां थी ...?? जिसे काटा गया होगा ? जो कराहा होगा ? जो तड़पा होगा ? जिसकी आहें निकली होंगी ? जिसने बद्दुआ भी दी होगी ? कैसे मान लिया कि जब जब धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो भगवान सिर्फ तुम इंसानों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे ..❓ क्या मूक जानवर उस परमपिता परमेश्वर की संतान नहीं हैं .❓ क्या उस ईश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है ..❓ धर्म की आड़ में उस परमपिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ईद पर बकरे काटते हो, कभी दुर्गा मां या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो। कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो । कभी सोचा ...!!! क्या ईश्वर का स्वाद होता है ? ....क्या है उनका भोजन ? किसे ठग रहे हो ? भगवान को ? अल्लाह को ? जीसस को? या खुद को ? मंगलवार को नानवेज नही खाता ...!!! आज शनिवार है इसलिए नहीं ...!!! अभी रोज़े चल रहे हैं ....!!! नवरात्रि में तो सवाल ही नही उठता ....!!! झूठ पर झूठ.... ...झूठ पर झूठ ..झूठ पर झूठ .. ईश्वर ने बुद्धि सिर्फ तुम्हे दी । ताकि तमाम योनियों में भटकने के बाद मानव योनि में तुम जन्म मृत्यु के चक्र से निकलने का रास्ता ढूँढ सको। लेकिन तुमने इस मानव योनि को पाते ही स्वयं को भगवान समझ लिया। तुम्ही कहते हो, की हम जो प्रकति को देंगे, वही प्रकृति हमे लौटायेगी। यह संकेत है ईश्वर का। प्रकृति के साथ रहो। प्रकृति के होकर रहो। #Anand_Mishra
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  • तस्वीर अच्छी भले न हो लेकिन इसके पीछे की कहानी बहुत अच्छी है
    हम अच्छी चीजों से तो कुछ अच्छा सीखते नहीं तो बुरी चीजों से भला कैसे सीख लेंगे और हमारी यही आदत हमें नए स्किल सीखने से रोकती है
    चलो एक बार कचरा बिनने वाले को समझते हैं अब आप सोच रहे होंगे कि कचरा बिनने वाले से भला क्या सीख लेंगे हम ? चलो इसको समझते हैं कचरा बिनने वाला उन चीजों को इकट्ठा करता है जो हमारे लिए बिल्कुल बेकार हो चुकी होती हैं यानी हमारे हिसाब वो किसी भी काम की नहीं होती और हम उन चीजों को फेक देते हैं लेकिन कचरा बिनने वाला ऐसे बेकार चीजों को इकट्ठा करके उनसे भी काम की चीजे निकाल लेता है और वो बेचकर पैसे कमा लेता है , मतलब एक इंसान बेकार से बेकार चीजों से भी अच्छी चीजें ढूढ़ ले रहा है और हम अच्छी चीजों ,अच्छे लोगों के आस-पास रहकर भी कुछ नहीं सीख पाते हैं क्यों क्योंकि कहीं न कहीं इसमें हमारा ईगो बीच में आ जाता है जो हमें नई स्किल को सीखने से रोक देता है लेकिन अगर आप एक बार सिर्फ ये उद्देश्य लेकर चलें कि हमें जो कुछ भी नया सीखने को मिलेगा ( चाहे अपने छोटों से या बड़ों से ) सीखेंगे तो देखना बहुत कम समय में आप तेज़ी से ग्रोथ कर जायेंगे.
    #Anand_Mishra #motivation #power_capsule
    तस्वीर अच्छी भले न हो लेकिन इसके पीछे की कहानी बहुत अच्छी है हम अच्छी चीजों से तो कुछ अच्छा सीखते नहीं तो बुरी चीजों से भला कैसे सीख लेंगे और हमारी यही आदत हमें नए स्किल सीखने से रोकती है चलो एक बार कचरा बिनने वाले को समझते हैं अब आप सोच रहे होंगे कि कचरा बिनने वाले से भला क्या सीख लेंगे हम ? चलो इसको समझते हैं कचरा बिनने वाला उन चीजों को इकट्ठा करता है जो हमारे लिए बिल्कुल बेकार हो चुकी होती हैं यानी हमारे हिसाब वो किसी भी काम की नहीं होती और हम उन चीजों को फेक देते हैं लेकिन कचरा बिनने वाला ऐसे बेकार चीजों को इकट्ठा करके उनसे भी काम की चीजे निकाल लेता है और वो बेचकर पैसे कमा लेता है , मतलब एक इंसान बेकार से बेकार चीजों से भी अच्छी चीजें ढूढ़ ले रहा है और हम अच्छी चीजों ,अच्छे लोगों के आस-पास रहकर भी कुछ नहीं सीख पाते हैं क्यों क्योंकि कहीं न कहीं इसमें हमारा ईगो बीच में आ जाता है जो हमें नई स्किल को सीखने से रोक देता है लेकिन अगर आप एक बार सिर्फ ये उद्देश्य लेकर चलें कि हमें जो कुछ भी नया सीखने को मिलेगा ( चाहे अपने छोटों से या बड़ों से ) सीखेंगे तो देखना बहुत कम समय में आप तेज़ी से ग्रोथ कर जायेंगे. #Anand_Mishra #motivation #power_capsule
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  • हम चाहते तो हैं जीतना लेकिन उसके लिए कितना काम करना पड़ेगा , कितनी मेहनत करनी पड़ेगी, इसके बारे में थोड़ा कम गंभीर होते हैं,
    हाँ मोटिवेशनल वीडियो देखकर तो हम मोटिवेट होना चाहते हैं लेकिन सही रास्ते में चलकर मेहनत नहीं करना चाहते ,
    क्योंकि हमारे पास बहानों की दुकान जो है भई. हाँ हमे दूसरों को सफल देखकर ज़रूर जलन होती है लेकिन उसकी सफलता के पीछे का संघर्ष हम नहीं पढ़ना चाहते हैं. तो जब तक बहानों की पोटली को जलाएंगे नहीं , सच में मेहनत करेंगे नहीं , हवा में तीर चलना नहीं छोड़ेंगे तब तक We can not Win.
    #Anand_Mishra #Motivation #bhokal_bna_rahe
    हम चाहते तो हैं जीतना लेकिन उसके लिए कितना काम करना पड़ेगा , कितनी मेहनत करनी पड़ेगी, इसके बारे में थोड़ा कम गंभीर होते हैं, हाँ मोटिवेशनल वीडियो देखकर तो हम मोटिवेट होना चाहते हैं लेकिन सही रास्ते में चलकर मेहनत नहीं करना चाहते , क्योंकि हमारे पास बहानों की दुकान जो है भई. हाँ हमे दूसरों को सफल देखकर ज़रूर जलन होती है लेकिन उसकी सफलता के पीछे का संघर्ष हम नहीं पढ़ना चाहते हैं. तो जब तक बहानों की पोटली को जलाएंगे नहीं , सच में मेहनत करेंगे नहीं , हवा में तीर चलना नहीं छोड़ेंगे तब तक We can not Win. #Anand_Mishra #Motivation #bhokal_bna_rahe
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  • हमारा जीवन भी बस ऐसे ही रोशनी से गुजरता है। थोड़ा अँधेरा लिए हुए थोड़ा उजाला लिए हुए। जिसकी तरफ हम ज़्यादा ध्यान देते हैं,जीवन भी उसी तरफ मुड़ता जाता है। अँधेरा डराता है और उजाला उम्मीद देता है। हम उम्मीद पर भरोसा नहीं करते हैं लेकिन डर तुरंत जाते हैं। होना इसका उल्टा चाहिए। ये आस-पास के पहाड़ हमारी आस पास की मुश्किलें हैं। इनको तो ध्यान ही नहीं देना है भई। इनके सहारे ही तो हमें अँधेरे से बाहर निकलना है। तभी तो जो रोशनी अभी हमें थोड़ी थोड़ी दिख रही है वो पूरी दिखेगी। तो आपको क्या अच्छा लगता है डार्क लाइट वाली रोशनी या अँधेरा ।
    #Anand_Mishra #Power_Capsule #motivation
    हमारा जीवन भी बस ऐसे ही रोशनी से गुजरता है। थोड़ा अँधेरा लिए हुए थोड़ा उजाला लिए हुए। जिसकी तरफ हम ज़्यादा ध्यान देते हैं,जीवन भी उसी तरफ मुड़ता जाता है। अँधेरा डराता है और उजाला उम्मीद देता है। हम उम्मीद पर भरोसा नहीं करते हैं लेकिन डर तुरंत जाते हैं। होना इसका उल्टा चाहिए। ये आस-पास के पहाड़ हमारी आस पास की मुश्किलें हैं। इनको तो ध्यान ही नहीं देना है भई। इनके सहारे ही तो हमें अँधेरे से बाहर निकलना है। तभी तो जो रोशनी अभी हमें थोड़ी थोड़ी दिख रही है वो पूरी दिखेगी। तो आपको क्या अच्छा लगता है डार्क लाइट वाली रोशनी या अँधेरा । #Anand_Mishra #Power_Capsule #motivation
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