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  • विश्व पृथ्वी दिवस की शुभकामनाएँ....
    विश्व पृथ्वी दिवस की शुभकामनाएँ....
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  • संस्मरण भाग १ - रेगिस्तान के फूल

    तुम उन दिनों मेरे गर्भ में थी,नई-२ गृहस्थी के बीच जब तुम्हारे होने का जो पहला अहसास हुआ था,वो मुझे आज भी याद है,मैं खुश होने की बजाए घबरा गई थी,कि मैं तुम्हें नहीं सम्हाल पाई तो...या मुझसे अनजाने ही कोई चूक हो गई तो...इसी उधेड़ बुन में दिन गुजरते और रातें कटती मेरी...यह भाव किसी से कह भी नहीं पाती थी,सब कुछ नया-२ सा था न...इस घबराहट के चलते मैं यह भी भूल जाती थी,कि मेरा वजूद पृथ्वी सा हो गया है,और मेरे अंदर अंकुरण हो रहा नवजीवन का...बहुत उदास दिन बीते जा रहे थे,और मैं लगभग अवसाद में थी...
    तपता जेठ माह आ गया था,मन के साथ तन भी झुलसने लगा था,तब आम-तरबूज की बहार थी,पर मेरी तो जैसे स्वाद कलिकाएं ही ख़त्म हो गई थी,हर समय बस लगता कि पेट में चक्कर आ रहे है,बहुत थकी-२ हुई रहती,सब खयाल रखते पर न जाने क्यों उनकी अपेक्षाएं ज्यादा लगती मुझे और मैं खुद को कमज़ोर पाती थी,तन से भी और मन से भी....उस पर तुम भी अपने होने का अहसास हर रोज किसी न किसी तरह से मुझे कराती रहती थी...
    मई का महीना था वो,घर में दैनिक भास्कर अखबार आता है,तो मई के महीने में mothers day आता है यह उसी साल पता चला मुझे जब मैं स्वयं माँ बनने वाली थी।
    उस mothers day को अखबार के साथ मधुरिमा में बहुत सारी माओं के अनुभव छपे थे पर मेरी नज़र अटकी एक फोटो पर,एक गोलू मोलू बच्चे की फोटो थी वो...जाने चाइनीज था कि जापानी,कोरियन था या कहीं और का पर एक दम गोल मटोल,गुलाबी रंग,छोटी छोटी मुस्कुराती दो आंखे,पिचकी सी नाक,लाल होंठ...ऐसा लग रहा था मानो गुड़हल का फूल!!
    उस फोटो पर बस दिल आ गया था,उसे देखकर यही सोचती थी की तुम्हारी आंखे भी वैसी ही होनी चाहिये,तुम भी गोलू मोलू हो काश !!!!!!
    रोज न जाने कितनी ही बार उसे देखती और तुम्हारा चेहरा बनाती अपनी कल्पना की कूची से...मानो मैं कोई चित्रकार बन गई थी और रच रही थी अपनी सर्वप्रिय कृति,जैसे कुम्हार गढ़ता है कच्ची मिट्टी से कोई मूरत,वैसे ही गढ़ रही थी मैं तुम्हें......
    तुमसे प्रेम हो गया था,तुम्हारी आदत हो गई थी अब मुझे,तुम्हें देखे बिना ही मैं तुम्हें देख चुकी थी...
    उस फ़ोटो के प्रति मेरी दीवानगी को देख के अक्सर तुम्हारी दादी कहा करती थीं,इन मत देख्या कर सार दिन ही,टाबर की आंख्या छोटी हो ज्यासी"""पर मेरे लिये वो कोई सिर्फ एक फ़ोटो नहीं थी,वो तुम थी...
    अब दिक्कतें बढ़ने लगी थी,प्रसव निकट था औऱ फिर वो दिन आया जब तुम रेशमी अहसास लिये,प्यार की बरसात लिए हमारे जीवन में आई,वो सुबह सबसे खूबसूरत सुबह थी जब तुम्हें पहली बार छुआ था और तुम हूबहू उस फोटो वाले बच्चे जैसी थी माथा,रंग, होंठ,नाक यहां तक कि हाथ पैरों की सिलवटें भी वही की वही थी एकदम गोल मटोल...
    बस देख के मैं इतना ही बोल पाई थी कि ""आंखे तो बड़ी है...
    तुम मेरा सृजन हो,मेरी सर्वश्रेष्ठ कृति...


    मीनाक्षी जोशी
    #याद
    संस्मरण भाग १ - रेगिस्तान के फूल तुम उन दिनों मेरे गर्भ में थी,नई-२ गृहस्थी के बीच जब तुम्हारे होने का जो पहला अहसास हुआ था,वो मुझे आज भी याद है,मैं खुश होने की बजाए घबरा गई थी,कि मैं तुम्हें नहीं सम्हाल पाई तो...या मुझसे अनजाने ही कोई चूक हो गई तो...इसी उधेड़ बुन में दिन गुजरते और रातें कटती मेरी...यह भाव किसी से कह भी नहीं पाती थी,सब कुछ नया-२ सा था न...इस घबराहट के चलते मैं यह भी भूल जाती थी,कि मेरा वजूद पृथ्वी सा हो गया है,और मेरे अंदर अंकुरण हो रहा नवजीवन का...बहुत उदास दिन बीते जा रहे थे,और मैं लगभग अवसाद में थी... तपता जेठ माह आ गया था,मन के साथ तन भी झुलसने लगा था,तब आम-तरबूज की बहार थी,पर मेरी तो जैसे स्वाद कलिकाएं ही ख़त्म हो गई थी,हर समय बस लगता कि पेट में चक्कर आ रहे है,बहुत थकी-२ हुई रहती,सब खयाल रखते पर न जाने क्यों उनकी अपेक्षाएं ज्यादा लगती मुझे और मैं खुद को कमज़ोर पाती थी,तन से भी और मन से भी....उस पर तुम भी अपने होने का अहसास हर रोज किसी न किसी तरह से मुझे कराती रहती थी... मई का महीना था वो,घर में दैनिक भास्कर अखबार आता है,तो मई के महीने में mothers day आता है यह उसी साल पता चला मुझे जब मैं स्वयं माँ बनने वाली थी। उस mothers day को अखबार के साथ मधुरिमा में बहुत सारी माओं के अनुभव छपे थे पर मेरी नज़र अटकी एक फोटो पर,एक गोलू मोलू बच्चे की फोटो थी वो...जाने चाइनीज था कि जापानी,कोरियन था या कहीं और का पर एक दम गोल मटोल,गुलाबी रंग,छोटी छोटी मुस्कुराती दो आंखे,पिचकी सी नाक,लाल होंठ...ऐसा लग रहा था मानो गुड़हल का फूल!! उस फोटो पर बस दिल आ गया था,उसे देखकर यही सोचती थी की तुम्हारी आंखे भी वैसी ही होनी चाहिये,तुम भी गोलू मोलू हो काश !!!!!! रोज न जाने कितनी ही बार उसे देखती और तुम्हारा चेहरा बनाती अपनी कल्पना की कूची से...मानो मैं कोई चित्रकार बन गई थी और रच रही थी अपनी सर्वप्रिय कृति,जैसे कुम्हार गढ़ता है कच्ची मिट्टी से कोई मूरत,वैसे ही गढ़ रही थी मैं तुम्हें...... तुमसे प्रेम हो गया था,तुम्हारी आदत हो गई थी अब मुझे,तुम्हें देखे बिना ही मैं तुम्हें देख चुकी थी... उस फ़ोटो के प्रति मेरी दीवानगी को देख के अक्सर तुम्हारी दादी कहा करती थीं,इन मत देख्या कर सार दिन ही,टाबर की आंख्या छोटी हो ज्यासी"""पर मेरे लिये वो कोई सिर्फ एक फ़ोटो नहीं थी,वो तुम थी... अब दिक्कतें बढ़ने लगी थी,प्रसव निकट था औऱ फिर वो दिन आया जब तुम रेशमी अहसास लिये,प्यार की बरसात लिए हमारे जीवन में आई,वो सुबह सबसे खूबसूरत सुबह थी जब तुम्हें पहली बार छुआ था और तुम हूबहू उस फोटो वाले बच्चे जैसी थी माथा,रंग, होंठ,नाक यहां तक कि हाथ पैरों की सिलवटें भी वही की वही थी एकदम गोल मटोल... बस देख के मैं इतना ही बोल पाई थी कि ""आंखे तो बड़ी है... तुम मेरा सृजन हो,मेरी सर्वश्रेष्ठ कृति... मीनाक्षी जोशी #याद
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