मैं मूलतः लेखिका हूँ. उपन्यास, कहानी, कविता लिखती हूँ. तीन उपन्यास, एक कहानी संग्रह और ९ कविता संग्रह
प्रकाशित हो चुके हैं.
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- जन्मदिन हो या वैवाहिक वर्षगाँठ , यदि भूल जाए कोई एक भी तो उसकी आफत .......लेकिन क्यों ? क्या ये सोचने का विषय नहीं ?
अब जन्मदिन तुम्हारा . तुम जन्मे उस दिन जरूरी थोड़े ही तुम्हारा पार्टनर भी उसे याद रखे और खुश होने का दिखावा करे . एक तो तुम पार्टनर की ज़िन्दगी में कम से कम २० से २५ साल बात आते हो और उससे उम्मीद करते हो वो तुम्हारा जन्मदिन याद रखे . क्या उसे और कोई काम नहीं . फिर क्या पता वो तुम्हारा जन्मदिन मनाने में खुश है भी या नहीं . आज व्यावहारिक होना ज्यादा जरूरी है बजाय भावनात्मक होने के . बेशक एक सम्बन्ध जुड़ता है पति पत्नी का लेकिन वहां यही अपेक्षाएं अक्सर बेवजह की कलह का कारण बन जाती हैं .
ऐसा ही कुछ आज के युवा के साथ होता है जिस वजह से ज्यादातर रिलेशन बीच राह में ही टूट जाते हैं क्योंकि वो तो जुड़ते ही इस वजह से हैं कि पार्टनर हमारी हर इच्छा पूरी करेगा और जब वैसा नहीं होता तो ब्रेक अप . फिर दूसरे को पकड़ लेते हैं लेकिन कहीं ठौर नहीं पाते क्योंकि दिशाहीन होते हैं . सम्बन्ध कोई भी हो वहां यदि इस तरह की चाहतें होंगी तो संभव ही नहीं दूर तक जा सकें .
इसी तरह वैवाहिक वर्षगाँठ की बात है . अब सोचिये जरा कोई बेचारा / बेचारी विवाह से खुश नहीं तो क्यों वो उस मनहूस दिन को याद रखेंगे ? उस पर पार्टनर की चाहत कि न सिर्फ याद रखा जाए बल्कि कोई महंगा गिफ्ट भी दिया जाए और बाहर डिनर भी किया जाए . सोचिये जरा बेमन से किया गया कार्य क्या ख़ुशी दे सकता है जिसमे एक खुश हो और दूसरा जबरदस्ती दूसरे की ख़ुशी में खुश होने का दिखावा भर कर रहा हो . जब सम्बन्ध ही मायने न रखता हो वहां दिखावे का क्या औचित्य ?
यदि इन बेवजह की औपचारिकताओं से सम्बन्ध को मुक्त रखा जाए तो आधी कलह तो जीवन से वैसे ही समाप्त हो जाए मगर हम भारतीय कुछ ज्यादा ही भावुक होते हैं और आधे से ज्यादा जीवन इसी भावुकता में व्यतीत कर देते हैं . बाद में कुछ भी हाथ नहीं लगता . यदि थोडा व्यावहारिक बनें और संबंधों को स्वयं पनपने दें , उन्हें थोडा उन्मुक्त आकाश दें तो स्वयमेव एक ऐसी जगह बना लेंगे जहाँ आपको कहना नहीं पड़ेगा बल्कि पार्टनर खुद स्वयं को समर्पित कर देगा .
vandana guptaजन्मदिन हो या वैवाहिक वर्षगाँठ , यदि भूल जाए कोई एक भी तो उसकी आफत .......लेकिन क्यों ? क्या ये सोचने का विषय नहीं ? अब जन्मदिन तुम्हारा . तुम जन्मे उस दिन जरूरी थोड़े ही तुम्हारा पार्टनर भी उसे याद रखे और खुश होने का दिखावा करे . एक तो तुम पार्टनर की ज़िन्दगी में कम से कम २० से २५ साल बात आते हो और उससे उम्मीद करते हो वो तुम्हारा जन्मदिन याद रखे . क्या उसे और कोई काम नहीं . फिर क्या पता वो तुम्हारा जन्मदिन मनाने में खुश है भी या नहीं . आज व्यावहारिक होना ज्यादा जरूरी है बजाय भावनात्मक होने के . बेशक एक सम्बन्ध जुड़ता है पति पत्नी का लेकिन वहां यही अपेक्षाएं अक्सर बेवजह की कलह का कारण बन जाती हैं . ऐसा ही कुछ आज के युवा के साथ होता है जिस वजह से ज्यादातर रिलेशन बीच राह में ही टूट जाते हैं क्योंकि वो तो जुड़ते ही इस वजह से हैं कि पार्टनर हमारी हर इच्छा पूरी करेगा और जब वैसा नहीं होता तो ब्रेक अप . फिर दूसरे को पकड़ लेते हैं लेकिन कहीं ठौर नहीं पाते क्योंकि दिशाहीन होते हैं . सम्बन्ध कोई भी हो वहां यदि इस तरह की चाहतें होंगी तो संभव ही नहीं दूर तक जा सकें . इसी तरह वैवाहिक वर्षगाँठ की बात है . अब सोचिये जरा कोई बेचारा / बेचारी विवाह से खुश नहीं तो क्यों वो उस मनहूस दिन को याद रखेंगे ? उस पर पार्टनर की चाहत कि न सिर्फ याद रखा जाए बल्कि कोई महंगा गिफ्ट भी दिया जाए और बाहर डिनर भी किया जाए . सोचिये जरा बेमन से किया गया कार्य क्या ख़ुशी दे सकता है जिसमे एक खुश हो और दूसरा जबरदस्ती दूसरे की ख़ुशी में खुश होने का दिखावा भर कर रहा हो . जब सम्बन्ध ही मायने न रखता हो वहां दिखावे का क्या औचित्य ? यदि इन बेवजह की औपचारिकताओं से सम्बन्ध को मुक्त रखा जाए तो आधी कलह तो जीवन से वैसे ही समाप्त हो जाए मगर हम भारतीय कुछ ज्यादा ही भावुक होते हैं और आधे से ज्यादा जीवन इसी भावुकता में व्यतीत कर देते हैं . बाद में कुछ भी हाथ नहीं लगता . यदि थोडा व्यावहारिक बनें और संबंधों को स्वयं पनपने दें , उन्हें थोडा उन्मुक्त आकाश दें तो स्वयमेव एक ऐसी जगह बना लेंगे जहाँ आपको कहना नहीं पड़ेगा बल्कि पार्टनर खुद स्वयं को समर्पित कर देगा . vandana guptaPlease log in to like, share and comment! - ग्रुप्स से जुड़ने के लिए उनके विषय में जानना होगा किन्तु उन ग्रुप्स पर क्लिक कर जानना चाहते हैं तो वो लॉक्ड होते हैं. ऐसे में कैसे कोई किसी ग्रुप से जुड़ेगा?
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एक पॉइंट इनेबल टिप्स का शो होता है उसका क्या यूज है उसके विषय में बताएं.
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- इस झूठी दुनिया से दूर भागता मन, खोजता है विश्रांति के पथ. पथिक बन अब भटकन से पाना चाहता है निजात. चाहता है पहुंचना मंजिल पर, अनभिज्ञ होते हुए भी. लक्ष्य निर्धारित हो तो चलना आसान हो जाता है.
भ्रम की दुनिया से मुक्ति हेतु आवश्यक है आत्ममंथन. प्रक्रिया जारी रखने हेतु आवश्यक है अपनी इन्द्रियों को अपने अन्दर समेटना. उसके लिए आवश्यक है झूठे संसार से विदा लेना. अंतर्मुखी बन जाना.
आत्मबोध की दिशा में चलने हेतु पहला कदम है यह...आश्रयस्थलियाँ महज पड़ाव हैं, मंजिल नहीं.
#vandanagupta08इस झूठी दुनिया से दूर भागता मन, खोजता है विश्रांति के पथ. पथिक बन अब भटकन से पाना चाहता है निजात. चाहता है पहुंचना मंजिल पर, अनभिज्ञ होते हुए भी. लक्ष्य निर्धारित हो तो चलना आसान हो जाता है. भ्रम की दुनिया से मुक्ति हेतु आवश्यक है आत्ममंथन. प्रक्रिया जारी रखने हेतु आवश्यक है अपनी इन्द्रियों को अपने अन्दर समेटना. उसके लिए आवश्यक है झूठे संसार से विदा लेना. अंतर्मुखी बन जाना. आत्मबोध की दिशा में चलने हेतु पहला कदम है यह...आश्रयस्थलियाँ महज पड़ाव हैं, मंजिल नहीं. #vandanagupta08 - समीक्षा - अंतस की खुरचनमनुष्य एक जीवन में हजारों जीवन जीता है। उन सभी जीवन के अनुभवों को मिलाकर उसका व्यक्तित्व बनता है। जब उम्र का तक़रीबन आधा सफ़र तय कर लेता है तब वह अपने अनुभव संसार से बांटना चाहता है। अपने पदचिन्ह छोड़ना चाहता है, अपने अनुभव की पूँजी किसी को संभलवाना चाहता है। आज के आपाधापी के दौर में किसके पास इतना समय है जो किसी के अनुभव से स्वयं को संवार सके, दो घड़ी किसी के पास बैठ सके, बतिया सके। ऐसे में...
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