तकनीक ने आधुनिक मानव समाज के व्यापक होती मूलभूत आवश्यकताओं और सुखद भविष्य के कल्पनाओं के बीच असीमित अपेक्षाओं के पुल बाँध दिए हैं. तकनीक इक्कीसवीं सदी के विकास योजनाओं की धुरी बन, बदलाव के बड़े बवंडर परोसने लगा है. लेकिन ग्रामीण भारत के दशकों पुराने बुनियादी प्रश्न मसलन शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, खेती इत्यादि अब भी चुनौती बने हुए हैं.

भारत सरकार की डिजिटल इंडिया मिशन और स्मार्ट विलेज जैसी संकल्पनाओं से अपेक्षा अवश्य की जा सकती है, हालाँकि यह अपेक्षा परोक्ष दुनिया में हुए तकनिकी विकास पर आश्रित है. सरकारी योजनाओं द्वारा आमजन, विशेष तौर पर किसानों के जीवन में कोई बड़ा परिवर्तन हुआ हो, ऐसा कहना कठिन जान पड़ता है. लेकिन आने वाला यह दसक एक बड़े बदलाव का साक्षी होगा, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता. ग्रामीण भारत को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने का स्वप्न, गाँधी के ग्राम स्वराज से लेकर आधुनिक समय के स्मार्ट विलेज तक की यात्रा तय कर चूका है. लेकिन धरातल पर देखें तो स्थति जस की तस बनी हुई है. वर्तमान समय में जिन चुनौतियों से तकनीक के सहारे निपटा जा सकता है, उसे वैश्विक परिदृश्य में हो रहे विभिन्न प्रयोगों के आलोक में देखना होगा.

इन्टरनेट और तकनीक का विस्तार प्रस्तावित सभी दिशाओं में तेजी से हुआ है. आधुनिक तकनीक और डाटा प्रबंधन ने सरकार और नागरिकों से बीच के अंतर को पाटा है. इसका सीधा असर नागरिक सहभागिता और जन जागरूकता पर पड़ता है, जिससे लोकतंत्र दृढ होता है. बढती आबादी का दबाव और पर्यावरण की चुनौतियों के बीच भारत में खेती और तकनीक के सदुपयोग पर गहन शोध की आवश्यकता है. विगत कुछ योजनाओं ने निश्चित तौर पर किसानों को कुछ राहत पहुचाई है. लेकिन भूमिगत भारत और मेट्रो मशरूफ भारत अब एक नियत कल की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं. इससे ग्रामीण जीवन शैली के सभी क्षेत्रों, विशेष रूप से सामाजिक रहन सहन, स्थानीय व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग, ई-गवर्नेंस आदि में बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे. इसके आलावा रोजमर्रा की जरूरतों जैसे जमीनों के नक्से और उसके स्वामित्व या टैक्स सम्बन्धी सूचना, रेलवे टिकट बुकिंग, अस्पतालों के ओपीडी सुविधाओं तक पहुँच जैसी कई सुविधायें, सरल और सहज रूप में उपलब्ध होने लगी हैं.

भारत सरकार के साथ कई बड़ी कम्पनियों ने भी डिजिटल भारत के सपने को साकार करने की दिशा में काम शुरू कर दिया है. इंटेल, क्वालकॉम और टाटा ने इस दिशा में प्रगति भी की है. इंटेल ने हाल ही में “डिजिटल स्किल्स फॉर इंडिया” पहल का शुभारंभ किया. इसके अंतर्गत ‘डिजिटल कौशल प्रशिक्षण एप्लीकेशन’ लाया गया, जो पांच भारतीय भाषाओं में डिजिटल साक्षरता, वित्तीय समावेशन, हेल्थकेयर और साफ-सफाई आदि मॉड्यूल के साथ डिजिटल साक्षरता की दिशा में काम करेगा.

ग्रामीण भारत के समक्ष चुनौतियाँ

  •  स्तरीय शिक्षा के लिए आधारभूत ढांचा खड़ा करना,
  •  शिक्षा के ऊपर होने वाले खर्च को नियंत्रित रखना ताकि राजस्व पर संतुलित दबाव हो,
  •   इन्टरनेट पर लिंगानुपात कम करना,
  •  नारी सशक्तिकरण की दिशा में सूचना और सहभागिता को सहज करना,
  •  नागरिक स्वास्थ्य के लिए उपयोगी ढांचा को ई-विस्तार देना,
  •  जनउपयोगी योजनाओं का पारदर्शिता से क्रियान्वयन के लिए मंच उपलब्ध कराना,
  •  रोजगार और जीविका के साधन उपलब्ध कराना,
  •  जीवन स्तर में सुधार के लिए प्रोत्साहित करना, प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाना,
  •  सृजनशीलता, कला और संस्कृति को संरक्षण,
  •  लोकतान्त्रिक ढाँचे को मजबूत करते हुए, सबल व सक्षम नागरिक तैयार करना,
  •  प्रसाशन और नागरिक सेवाओं की आसान पहुँच सुनिश्चित करना,
  •  खेती और किसान को मुख्यधारा से जोड़ना, इत्यादि.

स्तरीय शिक्षा के लिए आधारभूत ढांचा खड़ा करना

वर्तमान परिदृश्य में शिक्षा व्यवस्था में बड़ा बदलाव अपेक्षित है. न केवल नीतिगत स्तर पर वरन ढांचागत स्तर पर भी शिक्षा को ज्यादा रोजगारपरक और हुनर-केन्द्रित बनाया जाना है. नई शिक्षा नीति और ई-शिक्षा, दोनों के परिप्रेक्ष्य में वैश्विक स्तर पर तकनीक की मदद से शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि उत्पादन के क्षेत्र में हुए बदलाव निश्चित तौर पर भारत के लिए बेहतर संकेत हैं.

विश्व बैंक के द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत की पंद्रह प्रतिशत आबादी इन्टरनेट तक पहुँच बना चुकी है. माध्यमिक स्कूलों को कंप्यूटर से जोड़ने के लिए वर्ष 2004 से 2014 के मध्य कुल 2,585 करोड़ रुपये खर्च किये गए. बावजूद इसके मात्र 60 प्रतिशत माध्यमिक स्कूलों को कम्यूटरीकृत किया जा सका है. इससे यह सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर अबतक का रवैया कैसा रहा होगा.

एक लाख करोड़ रुपये की अति महत्वकांक्षी डिजिटल इण्डिया मिशन के अंतर्गत भारत के सभी स्कूलों को वाई-फाई से जोड़ कर, वृहत ज्ञान तंत्र खड़ा किया जाना है. इसके साथ ही स्तरीय पाठ्य सामग्री, ग्रामीण भारत के बच्चों के पास भी सहज उपलब्ध हो सकेगी. भारत की 2011 की जनगणना की रिपोर्ट में यह बात उभर कर सामने आई कि छः से आठ वर्ष की उम्र के बीस प्रतिशत बच्चों को शब्द और संख्याओं का ज्ञान नहीं था.

शिक्षा के क्षेत्र में अभिनव प्रयोग

तकनीक के माध्यम से शिक्षक ऑनलाइन अपने विचारों और संसाधनों को साझा रहे हैं जो विद्यार्थियों के लिए बहुमूल्य सामग्री सिद्ध हो रही. शिक्षकों द्वारा ऑनलाइन साझा किया गया नोट्स हों, परिचर्चा हो, ब्लॉग अथवा ई-बुक हो, वीडयो या कोई अन्य सामग्री; सभी को डिजिटली संकलित कर, उँगलियों पर उपलब्ध कराया जा सकता है. वृहत पाठ्य सामग्री से बच्चों में शोध क्षमता का विकास होगा. कई तरह के गेम्स और एप्लीकेशंस के माध्यम से शिक्षण देने के प्रयोग में बच्चों की समझ और यादास्त में भी वृद्धि पायी गयी. “गल्ली गल्ली सिम सिम” नामक एक अनूठे पहल के अंतर्गत बिहार और दिल्ली के कुछ स्कूलों में बच्चों को ‘फन न लर्न’ एप्लीकेशन के उपयोग से उत्साहजनक परिणाम मिले हैं.

भारत सरकार ने स्थानीय भाषाओं में उच्च गुणवत्ता की सामग्री का निर्माण करने के लिए 2013 में ओपन शैक्षिक संसाधन के राष्ट्रीय भंडार का शुभारंभ किया था. लेकिन इसपर अभी भी सही मात्रा में सामग्री उपलब्ध नहीं हो सकी है. हिंदी भाषा की स्थिति बाकी सभी गैर अंग्रेजी भाषाओं से थोड़ी बेहतर जरुर है. सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन, खान अकादमी के साथ मिलकर, “खान अकादमी – हिंदी मंच”  विकसित कर रही. यहाँ एनसीईआरटी पाठ्यक्रम के कक्षा 5 से लेकर 8 तक के गणित विषय के वीडियो ट्यूटोरियल और अभ्यास सामग्री उपलब्ध कराया जाना है.

फ्लिप क्लासरूम नामक एक प्रयोग में बच्चे वीडयो लेक्चर होमवर्क के रूप में देखते हैं और कक्षा में उसी विषय पर चर्चा होती है. चुकी सभी बच्चों के अपने अपने अलग प्रश्न होते हैं, विषय की समझ अधिक गहरी हो पाती है. इसी तरह के एक और प्रयोग, युक्रेन के टेबेन्को भाइयों द्वारा किया गया. माइंडस्टिक्स नाम के ब्रेन ट्रेनिंग गेम की मदद से, बच्चों के अन्दर गणन की क्षमता में आश्चर्यजनक सुधार पाया गया है.

पाकिस्तान में यूनेस्को द्वारा मोबिलिंक नामक एक मोबाइल एसएमएस आधारित शिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा. फैज़ाबाद में लड़कीयां अपने मोबाइल फोन से अपने शिक्षक से एसएमएस भेज कर उर्दू लिखने का अभ्यास करती मिल जायेंगी. दूर तक कोई स्कूल नहीं होने और कई सामाजिक कारणों की वजह से उसका स्कूल में पढ़ना संभव नहीं था. चार महीनों के अवधि के बाद यह पाया गया कि ‘ए स्तर की साक्षरता परीक्षाओं’ में उतीर्ण हुए छात्राओं की संख्या 27 प्रतिशत से बढ़कर 54 प्रतिशत हो गयी. भारत में तकनीक और ब्रोड्बैंड सेवा के विस्तार की योजनाओं को देखते हुए, यह उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले कुछ वर्षों में शिक्षा तक पहुँच प्रश्न नहीं रह जाना चाहिए.
वहीँ दूसरी ओर दक्षिणी अफ्रीका के पेरू में, वहां के शिक्षा मंत्रालय ने छात्रों में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के कौशल सुधार के उद्देश्य से बच्चों के मध्य लैपटॉप विस्तृत किये गए. अगले वर्ष तक स्थिति यह थी की 92 प्रतिशत बच्चों के कंप्यूटर किसी न किसी समस्या ग्रस्त थे. मेजों पर रंगीन लैपटॉप, धुल और वाइरस, बग, एक्पायर हो चुके सॉफ्टवेर से निष्क्रिय हो प्रयोग की हालत में नहीं थे. चूँकि उन बच्चों को लैपटॉप देने से पहले उसके प्रयोग, रखरखाव, सही इस्तेमाल के संबंध में शिक्षित करने पर ध्यान नहीं दिया गया था. उपर्युक्त दोनों उदहारण यह दर्शाने के लिए पर्याप्त हैं कि भारत के सन्दर्भ में किस तरह के गलतियों की सम्भावना अधिक है. उत्तर प्रदेश में वितरित लैपटॉप के प्रायोगिक निष्कर्ष हमारे समक्ष हैं.

तकनीक हमेशा से शिक्षा को नए युग में प्रवेश का माध्यम रही है. चाहे वह पेपर हो,  प्रिंटिंग प्रेस हो, ब्लैकबोर्ड हो, पुस्तकें हों अथवा इक्कीसवीं सदी का मोबाइल ब्रोड्बैंड और इन्टरनेट सुविधा हो. शिक्षा में तकनीक की महता मात्र पढने की क्षमता और गणित के ज्ञान तक सिमित नहीं है. शिक्षा की गुणवत्ता, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, स्वास्थ्य और पोषण में सुधार लाने और मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. उदाहरण के लिए, विकासशील देशों में आर्थिक विकास, शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता से अधिक प्रभावित होते हैं. डाटा शोध और आंकलन यह बताते हैं कि अन्तराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभा प्रदर्शन, प्रति व्यक्ति आय,  आय वितरण और समग्र आर्थिक विकास के दृष्टि से समय और संज्ञानात्मक विकास के बीच सकारात्मक संबंध है. अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा एक शोध में यह बात उभर कर आई कि अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों के मुकाबले, भारत और मध्य एशिया देशों में उच्च आर्थिक विकास दर केवल इसी कारण रहा, क्योंकि यहाँ की सरकारों ने भौतिक और मानव पूंजी में अपने उच्च निवेश को बनाये रखा है. प्रौद्योगिकी को शिक्षा, सामाजिकता और ग्रामीण इलाकों में प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किये जाने के उद्देश्य को देखते हुए सभी विकासशील देशों के विभिन्न मंत्रालयों को विभिन्न समदर्शी योजनाओं पर काम करते देखा जा सकता है.

शिक्षा की गुणवत्ता का एक और प्रत्यक्ष लाभ मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करना रहा है। 1970 के बाद से दुनिया भर में बाल मृत्यु दर में आई कमी का प्रमुख कारण महिलाओं में ‘प्रजनन की आयु समय शिक्षा प्राप्ति में हुई वृद्धि’ है। शिक्षित महिलायें स्वयं का और अपने परिवार के स्वास्थ्य का बेहतर ध्यान रख पाती है। इन्टरनेट पर आपसी संवाद और समूहों में जुड़ने से स्त्रियों के आत्मविश्वास में वृद्धि देखी गयी. जिससे घरेलु हिंसा जैसे जटिल मामलों में कमी पायी गई है. लेकिन इन्टरनेट पर लिंगानुपात में बड़ा अंतर चिंता का कारण है. इसे दूर करने के लिए गूगल का एक प्लेटफोर्म खासा मददगार साबित हो रहा. hwgo.com, हेल्पिंग वीमेन गेट ऑनलाइन, नाम के इस मंच पर इन्टरनेट के प्रयोग और सुरक्षा सम्बन्धी जानकारी के साथ-साथ घरेलु और कामकाजी महिलाओं के लिए सामान्य जानकारी भी सरल रूप में उपलब्ध है. भारत की महिलाएं व्यापार जगत को चुनौती देने के लिए इंटरनेट की ताकत का सफलतापूर्वक फायदा उठा रही हैं और महिला उद्यमियों की संख्या तेजी से बढ रही है। विश्व के प्रसिद्ध ई-कामर्स पोर्टल अलीबाबा डाट काम की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिला उद्यमियों में सालाना स्तर पर 71 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज हुई है.

क्या है खेती के समक्ष चुनौतियाँ

भोजन जैसी बुनियादी आवश्यकता के प्रति सरकार की लापरवाही चिंताजनक है. समय की मांग है कि खेती को लेकर वैचारिक शिथिलता और संस्थागत निष्क्रियता को ख़त्म किया जाए.  अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान ने बीते दिनों में एक रिपोर्ट जारी किया था. इस रिपोर्ट में प्राकृतिक संसाधनों की कमी की ओर बढ़ते विश्व में खाद्य सुरक्षा और कृषि प्रौद्योगिकी की भूमिका पर प्रकाश डाला गया था. तकनीक के बढ़ते प्रयोग ने किसानों के लिए संसाधनों के बेहतर उपयोग की संभावनाएं पैदा की हैं. रिपोर्ट के अनुसार, उच्च तकनीक के प्रयोग से सन 2050 तक वर्तमान उत्पादन क्षमता में 67% की बढ़ोतरी के साथ अन्न की कीमत में पचास प्रतिशत तक कटौती संभव है.

कृषि प्रौद्योगिकी के कुछ अभिनव प्रयोग

सटीक प्रक्रियाओं: परिशुद्धता कृषि की शुरुआत
तकनिकी उपकरणों के मदद से अब खेती से जुडें कई मामलों में सटीक अनुमान लगाया जा सकता है. उदहारण के लिए गायों में ऊष्मा का पता लगा कर दूध उत्पादन और प्रजनन क्षमता का आंकलन किया जा रहा. वहीँ खेतों में उर्वरकों के उचित उपयोग के लिए, सिंचाई के लिए, कटाई अथवा बुआई के लिए छोटे ड्रोन जैसे नविन उपकरणों और जीपीएस सुविधा का उपयोग किया जा रहा, जिससे खेतों को आसानी से नेविगेट कर सही जगह का पता लगाया जा सके और निगरानी रखी जा सके.

बिग डाटा प्रवेश: बड़ी जीत या बड़ी चिंता का विषय
सुपर कंप्यूटर और कृषि उत्पादन सम्बन्धी विभिन्न पहलुओं के डाटा संकलन के बाद कुछ ऐसे समाधान अब उपलब्ध हैं जिससे खेत की उपज सम्बन्धी, संसाधनों के रख रखाव और खेतों पर काम कर रहे मजदूर आदि का प्रबंधन आसन हो गया है. कृषि क्षेत्र की दिग्गज कंपनी मोनसेंटो और उपकरण निर्माता जॉन डीरे कंपनी की योजना बड़े कृषि उत्पादक कंपनियों को ‘नवीनतम कृषि अपडेट’ वृहत स्तर पर किये डाटा खनन के पश्चात उपलब्ध कराने की है. यह डाटा किसी दिए भूभाग में सबसे उत्कृष्ट उत्पादन का सटीक आंकलन, मौषम, उर्वरकता, संकलित डाटा के शोध के पश्चात जारी किया जाएगा. इससे बाज़ार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और किसान तकनीक के उपयोग की ओर आकृष्ट होंगे. लेकिन इस सम्बन्ध में कुछ बड़े प्रश्न अभी उत्तरित होने हैं. जैसे कि-

  • किसानों के लिए कितनी जानकारी मुहैया करानी पर्याप्त होगी
  • इस डाटा पर स्वामित्व किसका और कितना होगा
  • क्या एक किसान के डाटा का उपयोग उसके हित के विरुद्ध भी किया जा सकता है

इस दिशा में असल चुनौती तकनीक शुन्य ग्रामीण समाज को इसके प्रयोग से अवगत कराना, सहज कराना और सुलभ कराना होगा. इसी दिशा में आईटी और डिजिटल शिक्षण से जुड़े लोग बड़ी संख्या में, व्यवसायिक उद्देश्य से अपना काम कर रहे. लेकिन इनमे तकनीकी दक्षता का आभाव देखा जा सकता है. यह लोग तकनीक के क्षेत्र में हो रहे अभिनव प्रयोगों के प्रति रूचि भी नहीं रखते. अधिकांस प्रशिक्षकों में ‘ क्लाउड कंप्यूटिंग ‘, ‘ एम -लर्निंग ‘,’ स्वामित्व की कुल लागत’  जैसे सामान्य विषय पर जानकारी का आभाव पाया गया है.

कुल मिलाकर भारत, आने वाले एक दसक के अन्दर तकनिकी क्रांति के आवेश में होगा. ऐसे में नवाचार को प्रोत्साहित करने, डिजिटल साक्षरता बढाने और पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने के लिए, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम के समान एक स्वायत्त एजेंसी  होनी चाहिए। यह स्वायत्त एजेंसी निजी क्षेत्र से प्रतिभा के साथ मिलकर काम कर सकती है. दूसरी अहम चुनौती ब्रॉडबैंड सेवाओं की गुणवता और विस्तार को लेकर है. अगर मजबूत इच्छाशक्ति और इमानदार प्रयास हों तो निश्चित रूप से भारत को विकासशील से विकसित देश बनाया जा सकता है.

सोपान स्टेप | अक्टूबर 2015, कवर स्टोरी