जब तक द्वारकानगरी  की खोज नहीं हुई थी, तब तक ये महज एक किवंदती के तौर पर कथाओं में जीवित रही. एक समय था, जब लोग कहते थे कि द्वारिका नगरी एक काल्‍पनिक नगर है, लेकिन इस कल्‍पना को सच साबित कर दिखाया ऑर्कियोलॉजिस्‍ट प्रो. एसआर राव ने.

प्रो. राव और उनकी टीम ने 1979-80 में समुद्र में 560 मीटर लंबी द्वारिका की दीवार की खोज की. साथ में उन्‍हें वहां पर उस समय के बर्तन भी मिले, जो 1528 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व के हैं.

वायु सेना की पड़ी द्वारिका नगरी पर नज़र

हालांकि सबसे पहले वायुसेना के पायलटों की इस पर नजर पड़ी और इसके बाद राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान ने सोनार टेक्निक से समुद्र के अंदर जाकर करीब 4000 वर्ग मीटर क्षेत्र में अपनी रिसर्च शुरू की. तब जाकर वहां द्वारकापुरी के अस्तित्व का पता चला. वहां से लकड़ी-पत्थर और हडि्डियों के हजारों साल पुराने अवशेष मिले थे. माना जाता है कि ये अवशेष महाभारतकालीन हो सकते हैं. उन्होंने ऐसे नमूने इकट्ठा किए जिन्हें देखकर आश्चर्य होता है. 2005 में नौसेना के सहयोग से प्राचीन द्वारिका नगरी से जुड़े अभियान के दौरान समुद्र की गहराई में कटे-छंटे पत्थर मिले और लगभग 200 नमूने एकत्र किए गए.

द्वारिका में समुद्र के भीतर ही नहीं, बल्कि ज़मीन  पर भी खुदाई की गई थी और 10 मीटर गहराई तक किए गए इस उत्खनन में सिक्के और कई कलाकृतियां भी मिली .

 

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