किसलिए इतना तन जाता है
बात बात पर ठन जाता है
क्यों करता अभिमान तू
क्यों ढोता झूठे अहम को तू
जीवन तो एक खेला है
चार दिन का मेला है
सब ताम झाम उठ जावेगा
जीवन का रेला जब रुक जावेगा
दो बोल मीठे प्रेम के बोल
हरि मेल है बस अनमोल
जग से जब तू जावेगा
बस तेरा कर्म साथ आवेगा
अब न कर तू कोई झोल
भक्ति के तू द्वारे खोल !
मनीषा
स्वरचित
मेरठ
बात बात पर ठन जाता है
क्यों करता अभिमान तू
क्यों ढोता झूठे अहम को तू
जीवन तो एक खेला है
चार दिन का मेला है
सब ताम झाम उठ जावेगा
जीवन का रेला जब रुक जावेगा
दो बोल मीठे प्रेम के बोल
हरि मेल है बस अनमोल
जग से जब तू जावेगा
बस तेरा कर्म साथ आवेगा
अब न कर तू कोई झोल
भक्ति के तू द्वारे खोल !
मनीषा
स्वरचित
मेरठ
किसलिए इतना तन जाता है
बात बात पर ठन जाता है
क्यों करता अभिमान तू
क्यों ढोता झूठे अहम को तू
जीवन तो एक खेला है
चार दिन का मेला है
सब ताम झाम उठ जावेगा
जीवन का रेला जब रुक जावेगा
दो बोल मीठे प्रेम के बोल
हरि मेल है बस अनमोल
जग से जब तू जावेगा
बस तेरा कर्म साथ आवेगा
अब न कर तू कोई झोल
भक्ति के तू द्वारे खोल !
मनीषा
स्वरचित
मेरठ
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