भोज यह सिर्फ शब्द नहीं, भावना है. भोज के इंतज़ार में लोग 2-2 दिन पेट खाली कर के रखते हैं कि जब भोज पे टूटें तो ऐसे टूटें मानो कल का दिन उनके लिए आएगा नहीं.
बिहार के मधेपुरा के पथराहा गांव वार्ड संख्या चार में एक सौ से अधिक महिला, पुरुष और बच्चे फूड पॉयजन के शिकार हुए हैं. मिली जानकारी के मुताबिक पथराहा गांव के वार्ड संख्या चार में शैलेंद्र यादव नामक व्यक्ति के बेटी की शादी में प्रीति भोज का आयोजन किया गया था. सारे लोग भोज में अपना पेट और रूह भरने गए थे. इनके रूह का परिंदा फड़-फड़ाया लेकिन इनको फिर भी सुकून न आया और ये ठूंस ते गए. गांव के सभी महिला,पुरुष, बच्चे व बच्ची को उल्टी कैय दस्त होने लगी और सबके सब बेहोश हो गए. इसके बाद आनन फानन में सभी पीड़ित को मेडिकल कॉलेज और सदर अस्पताल मधेपुरा में भर्ती कराया गया, जहां इलाज चल रहा है.
भोज के लिए न जाने कितने लोग अपनी ज़मीन गिरवी रख देते हैं, शायद कहिं ऐसा तोह नहीं कि सबक सीखाने के लिए ऐसा जान बूझकर किया गया हो. घोर कल्युग है, यहां कुछ भी हो सकता है. भोज में हद से ज़्यादा खाना लोड करने की वजह से भी ऐसा हो सकता है.
भोज में खाने को खाने की तरह खाएं. जीने के लिए खाएं न की खाने के लिए जिएं. देखते, सुनते और पढ़ते रहें भौकाल.
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