सरकारी काम वो काम है जिसके होने की गारेंटी लेना, खुद को अंधेरे में रखने के बराबर है. सरकारी ऑफिस वो दल-दल है जहाँ आप जितना हाथ मरेंगे उतना हि अंदर घुसते चले जाएंगे. 
UP के संतकबीर नगर में खुद को जिंदा साबित करने कचहरी पहुंचे 70 साल के बुजुर्ग ने सरकारी अफसरों के सामने दम तोड़ दिया. वो फाइनल स्टेज में थे जिसमे उन्हें खुद को ऑफिसरों के सामने ज़िंदा साबित करना था. लेकिन फाइनल राउंड में ही उनका गेम ओवर हो गया, और वो परलोक के लिए निकल पड़े. 
मुर्दा खुद चल के आ रहा है और चिल्ला-चिल्ला के कह रहा है कि वो ज़िंदा है. ऐसा दृष्य सिर्फ भारत में देखने को मिलता है.  
खेलई नाम के ये बुजुर्ग पिछले 6 साल से कागजों में दर्ज अपनी मौत के खिलाफ लड़ रहे रहे थे. सरकारी ऑफिसरों ने थेथरपना दिखते हुए खेलइ को मृत साबित कर दिया था, और खेलई की संपत्ति की वसीयत बड़े भाई फेरई की पत्नी सोमारी देवी, उनके बेटे छोटेलाल, चालूराम और हरकनाथ के नाम से कर दी.
सरकारी ऑफिसर के लंठई की वजह से न जाने कितने लोगों की ज़िन्दगी खराब हुई है. इस घटना से ये साबित होता है कि इंसान की ज़िन्दगी से भी ज़्यादा कीमती है कागज़. सरकारी ऑफिस में कागज़ को सरकाना या उसमे कुछ लिखवाना दिन में तारे गिन्ने से भी ज़्यादा मुश्किल है. ये कभी नहीं सुधरेंगे. देखते, पढ़ते और सुनते रहिए भौकाल.