यार ये अक्षय कुमार इतने तेज़ हैं की मैगी वालों ने भी अपने हाथ खड़े कर दिये हैं। ये इतने तेज़ हैं की डोमिनोज़ की 30 मिनट पिज्जा डिलीवरी भी इनकी नयी फ़िल्म की डिलीवरी के बाद आती है, ये इतने तेज़ हैं की बुलेट ट्रेन भी इनसे आधा घंटा लेट पहुँचती है...
जी हाँ प्रकृति के सारे नियम कानून को तिलहंडे में डाल अपने अक्की बाबा नौ महीने में अपनी चौथे फ़िल्म की डिलीवरी लेकर पहुँच चुके हैं। तालियाँ .......
अक्षय कुमार की नयी फ़िल्म कठपुतली डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ हो चुकी है। अब हमारा काम है आपको हर फ़िल्म का अच्छा बुरा बताना सो इस बार भी हम हमारे कर्तव्य पथ पर अडिग हैं और आपके लिए यह रिव्यू लेकर आए हैं।
कहानी
तो फ़िल्म की कहानी है अर्जन सेठी (अक्षय कुमार) की जिसे क्राइम थ्रिलर कहानियों से बड़ा लगाव है और वह फ़िल्म मेकर बनना चाहता है। मगर जब उसकी कहानी पर कोई भी पैसा नहीं लगाता तो थक हार कर वह अपने बहन के कहने पर मरहूम पिता की जगह अनुकंपा पर पुलिस की नौकरी कर लेता है। जीजा के जुगाड़ से उसकी पोस्टिंग कसौली के एक थाने में सब इंस्पेक्टर के रैंक पर हो जाती है। चूंकि अर्जन को साइकोपैथ सीरयल किलर्स की ठीकठाक जानकारी और समझ है तो नौकरी जॉइन करते हीं वह शहर में लगातार हो रहे स्कूली लड़कियों के सीरयल किलिंग वाले केस पर लग जाता है। पूरी फ़िल्म में अर्जन के अंदर का शर्लाक होम्स हिलकोरें मार मार कर बाहर आता रहता है और वो हिन्दी फ़िल्म टाइप सारी हिरोगीरी करते हुए फ़िल्म को अंजाम तक पहुंचाता है।
ट्रीटमेंट
ये तो थी कहानी अब बात करते हैं इसके ट्रीटमेंट की । दरअसल पिछले कुछ महीनों में पहाड़ों में बेस्ड कहानियाँ एकदम एक दूसरे को कॉपी करती रही हैं। इस फ़िल्म को देखते हुए भी आपको ऐसा लगेगा की शायद यह सब आप पहले भी देख चुके हैं। फ़िल्म का मेन प्लॉट लगभग हाल हीं में नेट्फ़्लिक्स पर रिलीज़ हुई वेब शो "आरण्यक" और Zee5 पर आई फ़िल्म "फोरेंसिक" जैसी हीं है, वहाँ भी स्कूल की लड़कियों के सीरयल किलिंग की कहानी को परोसा गया है। इस यानि की कठपुतली फ़िल्म की कहानी एकदम स्लो और सपाट है और जिस लेवल का सस्पेन्स कम से कम आप ऐसी फिल्मों से एक्सपेक्ट करते हैं यह उसके आसपास भी नहीं पहुँच पाती है। कई सीन्स और सीक्वेंस बार बार रिपीट होने की वजह से यह कहानी को काफी लंबी और बोरिंग बनाती है।
एक्टिंग
अक्षय कुमार ने एक्टिंग नहीं की है बल्कि बस किसी तरह खींच घसीट कर फ़िल्म को पार लगा दिया है। फ़िल्म के प्रोड्यूसर वासू भगनानी ख़ानदान की होने वाली बहू रकुल प्रीत ने स्कूल टीचर का किरदार निभाया है, बस इसके अलावा उन्होने कुछ भी ऐसा नहीं किया है जो कि बताया जा सके। जीजा के कैरक्टर में चंद्रचूर सिंह ने अपना काम अच्छा किया है। अक्षय कुमार की सीनियर और एस एच ओ के किरदार में सरगुन मेहता काफी बोल्ड और स्ट्रॉंग लगी हैं। कई बार आपको उनके कुछ सीन चौंकाते भी है। कुल मिला कर सरगुन मेहता का बॉलीवुड डेब्यु बाकी कलाकारों पर भारी पड़ता दिखता है और उनके अंदर एक बेहतरीन एक्टर बनने का पोटेंशियल भी नज़र आता है।
तो कुल जमा है कि यह फ़िल्म अक्षय कुमार की एक और ख़राब फिल्मों में से एक है। तो लीजिये हमने हमारा काम कर दिया है अब थोड़ा काम आप के हिस्से, अपनी समझ और विवेक का इस्तेमाल करें और फ़िल्म देखनी है या नहीं इसका चुनाव खुद हीं करें.