बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए 2023 का नया साल चुनौतियों भरा होगा। 2022 में जिन फैसलों को लेकर भाजपा से अलग होकर महागठबंधन के साथ अपनी सरकार बनाई उन फैसलों को जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन की चुनौती नीतीश कुमार के ऊपर होगी। कई अवसर पर यह देखा गया है कि नीतीश कुमार को पीएम कैंडिडेट बनाने की मांग पार्टी के अंदर से ही उठी है। नीतीश कुमार की भी यह राजनीतिक उत्कंठा है कि वह अपने आप को पीएम उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट करवाना चाहते हैं हालांकि उनके तरफ से कई अवसर पर इस विषय पर यह कहा गया है कि वह सिर्फ विपक्ष को एकजुट कर 2024 में भाजपा को सत्ता से बाहर करना चाहते हैं। इस दिशा में उन्होंने देश के अन्य मुख्यमंत्रियों एवं पार्टी सुप्रीमों से मिलकर इसकी बार-बार चर्चा भी की है। नीतीश कुमार का कहना है कि भाजपा लोकतंत्र के लिए खतरा है। जेडीयू को तोड़ने का आरोप भी नीतीश भाजपा पर लगा चुके है। 

 

साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की मंत्रणा 2023 में ही होगी। ऐसे में 2023 का नया साल बेहद राजनीतिक मायनों में बेहद अहम माना जा रहा है। बिहार के सियासी सरगर्मी को अगर देखें तो नीतीश अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी तेजस्वी हाथों में सौंप कर केंद्र की राजनीति करना चाहते हैं और इसकी घोषणा भी उन्होंने कर रखी है कि आगामी होने वाले विधानसभा चुनाव को तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। जेडीयू राजद के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ेंगी इसकी बागडोर तेजस्वी के कंधों पर होगी।

ऐसे में वे कौन सी चुनौतियां होंगी जो 2023 में नीतीश कुमार के सामने होगी। किस "अग्निपरीक्षा" से गुजरेंगे नीतीश कुमार,

अपनी पार्टी जेडीयू को एकजुट रखना

नीतीश कुमार ने 2022 में भाजपा से अलग होकर महागठबंधन के साथ अपनी सरकार तो बना ली लेकिन उनके इस ऐलान ने हलचल मचा दी कि आगामी चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। ऐसे में उनके पार्टी के कई ऐसे नेता हैं जो इस गठबंधन का विरोध कर सकते हैं। ऐसा इसलिए माना जा रहा है कि तेजस्वी के गठबंधन नेतृत्व करने से उनका राजनीतिक भविष्य अंधकार में चला जाएगा। जेडीयू में कई ऐसे नेता है जो नीतीश कुमार की विरासत को संभालना चाहते हैं। जेडीयू के भीतर ही कई खेमे बनाकर राजनीति कर रहे हैं ऐसे में उन सभी को एकजुट रखना नीतीश कुमार के लिए बड़ी चुनौती होगी। पहले भी कई नेता जेडीयू से बागी होकर पार्टी को अलविदा कह चुके है जिनमें पवन वर्मा, प्रशांत किशोर, आरसीपी सिंह, अजय आलोक आदि शामिल हैं।

 

जेडीयू पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाना

नीतीश कुमार के सामने जेडीयू को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाना भी बड़ी चुनौती है। आगामी आने वाले 2023 के विधानसभा चुनाव में नागालैंड सहित कई राज्यों में चुनाव होने हैं। ऐसे में पार्टी को पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ना होगा जिससे उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त हो सके। वर्तमान में बिहार के अलावा अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में जेडीयू को राज्यस्तरीय पार्टी का दर्जा मिला हुआ है। राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने के लिए जेडीयू को एक और राज्य में जीत हासिल करनी होगी तभी उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलेगा। ऐसे में राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के सामने भी बड़ी जिम्मेदारी है क्योंकि उनके कार्यकाल में जेडीयू को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है।

 

विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने की चुनौती

2024 में लोकसभा का चुनाव होना है। भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी को अब तक प्रधानमंत्री का उम्मीदवार माना जा रहा है। ऐसे में विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री का कौन उम्मीदवार होगा उसकी भी मंत्रणा की जानी है। उनका यह मानना है कि कांग्रेस सहित छोटे दलों के साथ विपक्षी सभी पार्टियों को एकजुट कर इस चुनाव को लड़ा जाना चाहिए तभी भाजपा को करारी शिकस्त दी जा सकती है। वर्तमान में सात विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर बिहार के सत्ता पर काबिज है। ऐसे में नीतीश कुमार केंद्र में भी सभी विपक्षी पार्टियों को एकजुट कर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं। पिछले दिनों नीतीश कुमार सोनिया गांधी, राहुल गांधी, शरद पवार, अरविंद केजरीवाल, डी राजा, सीताराम येचुरी, अखिलेश यादव, ओम प्रकाश चौटाला, केसीआर सहित कई नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं। उन्होंने आगामी आने वाले कुछ महीनों में विपक्षी एकजुटता की रूपरेखा तय होने की भी बात कही थी ऐसे में विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने की अहम जिम्मेदारी नीतीश कुमार पर होगी।

 

जेडीयू के जनाधार को बचाने की चुनौती

नीतीश कुमार के सामने अपनी पार्टी जेडीयू के जनाधार को बचाए रखने की भी चुनौती है।अक्टूबर 2005 के चुनाव में 139 सीटों पर चुनाव लड़कर नीतीश कुमार की जेडीयू 88 सीटें जीतीं थी जबकि 2020 के चुनाव में 115 सीटों पर चुनाव लड़कर जेडीयू को मात्र 43 सीटें हासिल हुई थी। हाल में मुजफ्फरपुर के कुढ़नी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी ने जेडीयू को बड़ा झटका दिया था। उपचुनाव में जेडीयू की हार हुई। जेडीयू का जनाधार घटा है इसमें कहीं कोई संदेह नहीं है जिसे फिर से वापस लाने की जिम्मेदारी नीतीश कुमार के ऊपर ही है। बिहार में जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी हो गई है ऐसे में उसे फिर से एक नंबर की पार्टी बनाने की चुनौती भी नीतीश कुमार के सामने है। जिस तरह से बिहार में महागठबंधन का ग्राफ बढ़ा है ऐसे में जेडीयू को भी अपने वोट बैंक के ग्राफ को बढ़ाना होगा तभी देश में भी जेडीयू को एक नई पहचान मिल पाएगी।

 

जेडीयू के विलय की चर्चा

पिछले दिनों बिहार के राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा थी कि जेडीयू का विलय राजद में हो सकता है। हाल में ही तेजस्वी यादव को उत्तराधिकारी घोषित करने के बाद जिस तरह से उपेंद्र कुशवाहा का बयान आया था और पार्टी के विलय को लेकर संशय बना हुआ था उससे जदयू की मुश्किलें बढ़ गई थी। कयास यह लगाए जा रहे थे कि खरमास बाद लालू के बिहार आते ही यह संभव हो सकता है लेकिन नीतीश कुमार ने इस विषय पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए इसे सिरे से नकार दिया। लेकिन यह तय है कि बिहार में राजनीतिक हालात बदलने वाले हैं। तेजस्वी की मुख्यमंत्री के तौर पर जल्द ताजपोशी हो सकती है।

 

शराबबंदी अभियान को सफल बनाने की चुनौती

शराबबंदी नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट में एक है। बिहार के पूरे प्रदेश में शराबबंदी लागू है इसके बावजूद शराब की बिक्री और होम डिलीवरी हो रही है। हाल में ही कई दर्जन लोग बिहार के कई इलाकों में नकली शराब पीने से मारे गए थे। पूरे देश में नीतीश कुमार की जग हंसाई हुई थी कैसे बिहार में शराबबंदी के बावजूद धड़ल्ले से शराब की खरीद बिक्री हो रही है। यह नीतीश कुमार के सुशासन पर एक बड़ा तमाचा है जिसे नीतीश कुमार जमीनी स्तर पर इस बंदी को सख्ती से लागू करवाना चाहते हैं। ऐसे में नए साल में इस अभियान की सफलता उनके लिए चुनौती भरा है। इस अभियान की सफलता के लिए नीतीश कुमार जल्द पूरे बिहार का दौरा भी करने वाले हैं।

रोजगार देने के वायदे को पूरा करना

नीतीश कुमार ने स्वतंत्रता दिवस पर 10 लाख लोगों को नौकरी देने का ऐलान कर दिया था साथ ही उन्होंने 10 लाख रोजगार सृजन का भी वादा किया है। इस रोजगार के वायदे को पूरा करने की चुनौती भी नीतीश कुमार के कंधों पर होगी कि किस प्रकार से वे जल्द से जल्द अपने इस वायदे को पूरा करते हैं। बिहार में जन सुराज अभियान के तहत पदयात्रा कर रहे प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार के इस फैसले का स्वागत किया था और कहा कि यदि नीतीश कुमार रोजगार देने की घोषणा को पूरा नहीं करते हैं तो वे उनके खिलाफ आंदोलन करेंगे ऐसे में अपने रोजगार देने के वायदे को पूरा करना भी नीतीश कुमार के लिए बड़ी चुनौती है।

 

 

नीतीश कुमार की "सुशासन बाबू" वाली छवि बरकरार रखना

नीतीश कुमार को अपने 15 साल के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में अपनी विकास परियोजनाओं के माध्यम से बीमारू राज्य को बदलने का श्रेय दिया जाता है। उन्हें बिहार की छवि बदलने के लिए और यहां सुशासन कायम करने के लिए "सुशासन बाबू" के रूप में देखा जाता था। बीते कुछ दिनों में नीतीश कुमार की यह छवि बेदाग हुई है इसे फिर से बदलने की चुनौती भी नीतीश कुमार के ऊपर है। बिहार में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति को फिर से पटरी पर लाने की जिम्मेदारी भी नीतीश के हाथों में है।