बदलते भारत की गुंज भारतीय भूगोल को लांघ चुकी है। बदलाव के बयार को पूरी दुनिया स्वीकारने लगी है। संचार क्रांति ने तो बदलाव की गति को और तीव्र कर दिया है। गांवों में बसने वाला भारत अब ई-क्रांति का अग्रदूत बनने की राह पर है। व्यवस्थागत संपूर्ण जानकारी एक क्लिक पर उपलब्ध कराने की दिशा में भारत सरकार पुरजोर कोशिश कर रही है। इसी संदर्भ में भारत सरकार ने शिक्षा-व्यवस्था को पूरी तरह से डिजिटलाइज्ड करने की योजना बनाई है। इसी योजाना के आलोक में प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च शिक्षा तक की पूरी शिक्षण प्रणाली को डिजिटल किया जा रहा है।
भारत सरकार की नई-शिक्षा नीति जहाँ शिक्षा के प्रारूप और पाठ्यक्रम में बड़े बदलाव पर जोर दे रही है, वहीं डिजिटल इंडिया मिशन का उद्देश्य भारत को ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलकर, तकनिकी तौर पर सशक्त, सक्षम समाज को तैयार करना है। सर्वांगीण विकास लिए डिजिटल इंडिया एकछत्रिय प्रोग्राम है जो, न केवल जनोपयोगी सेवाओं के इलेक्ट्रोनिक वितरण का मार्ग प्रसस्त करता है, वरन ग्रामीण और नगरीय जीवन शैली के बीच डिजिटल डिवाइड को ख़त्म कर, पब्लिक डाटा के संग्रहण से भारत के डिजिटल ब्लूप्रिंट के रूप में सूचनाओं को आमंत्रित भी करता है। संगृहीत सूचना के अन्वेषण और तकीनीकी उपयोग की अपार संभावनाओं के मध्य आज ऐसे कई स्मार्ट एप्लीकेशन बन रहे हैं, जो शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासनिक सेवाओं, विनियम, यातायात आदि क्षेत्रों में अभूतपूर्व बदलाव लाने में सक्षम हैं। परन्तु इस क्रांति को आत्मसात करने में सबसे बड़ी बाधा अशिक्षा है, जो अभिशाप बन, ग्रामीण भारत को विकास की मुख्यधारा से अलग रखे हुए है। अब प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि, क्या तकनिकी विकास और ई-क्रांति के पास वास्तव में इस समस्या का समाधान है?
डिजिटल इंडिया, ई-क्रांति समस्या और समाधान
डिजिटल इंडिया संकल्पना के नौ बुनियादी स्तंभों में से ई-क्रांति सर्वाधिक व्यापक, दूरगामी और अभिनव विचारों को समाविष्ट करने वाला स्तम्भ है। ई-क्रांति द्वारा पंचायत स्तर तक इंटरनेट सेवाओं के पहुँचने और ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल एजुकेशन की शुरुआत से सभी तबके के युवाओं के लिए स्तरीय शिक्षा तक पहुँच सुलभ होगी, साथ ही शिक्षा व्यवस्था में शिक्षकों की कमी, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की समस्या, महिला शिक्षा का स्तर, रोजगार सम्बन्धी चुनौतियाँ, प्रति व्यक्ति आय, कुपोषण, कानून-व्यवस्था आदि से भी निपटने में सहूलियत होगी। चूंकि डिजिटल इंडिया मिशन और ई-शिक्षा की सभी संभावनाएं, स्मार्टफोन, कम्प्यूटर और इन्टरनेट कनेक्टिविटी पर आश्रित हैं, भारत में शिक्षा के स्तर को बढ़ाना, तकनिकी साक्षरता सुनिश्चित करना और कंप्यूटर, स्मार्टफोन, इन्टरनेट आदि को सर्वसाधारण तक सुलभ करना बड़ी चुनौतियाँ है।
सरकार के अलावा निजी क्षेत्र भी उत्साह के साथ डिजिटल इंडिया मिशन को सफल बनाने में अपनी भूमीका निभाता दिख रहा है। इंटेल, क्वालकॉम और टाटा जैसे दिग्गज कम्पनियों ने इस दिशा में कुछ प्रगति की है। इंटेल ने हाल ही में अपनी पहल ‘भारत के लिए डिजिटल कौशल’ की शुरुआत की है। डिजिटल कौशल प्रशिक्षण एप्लीकेशन, पांच भारतीय भाषाओं में डिजिटल साक्षरता, वित्तीय समावेशन, हल्थकेयर और साफ-सफाई मॉड्यूल पर शिक्षित करता है।
शिक्षा के क्षेत्र में ई-क्रांति के समक्ष चुनौतियाँ
निम्न साक्षरता दर: भारत में कुल 28.7 करोड़ वयस्क पढ़ना लिखना नहीं जानते हैं, जो कि दुनिया भर की निरक्षर आबादी का 37 फीसदी है। यूएन एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन (यूएनईएससीओ) और एजुकेशन फॉर ऑल ग्लोबल मॉनिटरिंग रिपोर्ट (ईएफआर जीएमआर), यह कहती है कि 1991 से 2006 के बीच भारत में साक्षरता दर 48 फीसदी से बढ़ कर 63 हो गयी, लेकिन जनसंख्या वृद्धि के कारण यह बदलाव दिख नहीं रहा और कुल निरक्षर वयस्कों की संख्या में भी कोई बदलाव नहीं आया है। चूंकि गरीबी, स्वास्थ्य, कुपोषण, सामाजिक पिछड़ापन आदि के मूल में शिक्षा का आभाव प्रमुख कारण है, इसलिए शिक्षा सभी मायनों में प्राथमिक चिंता का विषय बन जाती है। आजादी के समय देश की केवल 12 फीसदी आबादी साक्षर थी जो 2011 में 74 फीसदी हो गई, लेकिन 84 फीसदी के वैश्विक औसत से भारत अब भी काफी पीछे है। जबकि भारत में प्राथमिक अक्षर ज्ञान पर ही शिक्षित होना माना गया है।
शिक्षा में गुणवत्ता न होना: उपर्युक्त सर्वे से पता चलता है कि भले ही ग्रामीण छात्रों के स्कूल जाने की संख्या बढ़ रही हो पर इनमें से आधे से ज्यादा छात्र दूसरी कक्षा तक की किताब पढ़ने में असमर्थ हैं और सरल गणितीय सवाल भी हल नहीं कर पाते। आधारभूत ढाँचे की कमी और अन्य समस्याओं के चलते शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पड़ता है और छात्रों के सीखने के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है। 7 साल की उम्र के 50 फीसदी बच्चे शब्द नहीं पहचानते जबकि 14 साल तक की उम्र के करीब इतने ही बच्चे गणित के सामान्य सवाल भी हल नहीं कर सकते।
शिक्षा के प्रति रुझान नहीं: रिपोर्ट के अनुसार 12.4 करोड़ छोटे बच्चे अब भी स्कूलों में नहीं जाते. देशभर में पांचवीं और आठवीं में क्रमश: 13.24 करोड़ और 6.64 करोड़ यानी कुल 19.88 करोड़ बच्चे ही प्रारम्भिक शिक्षा हासिल कर रहे हैं। स्कूल की पढ़ाई करने वाले नौ छात्रों में से एक ही कॉलेज पहुँच पाता है। भारत में उच्च शिक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन कराने वाले छात्रों का अनुपात दुनिया में सबसे कम यानी सिर्फ़ 11 फ़ीसदी है। अमरीका में ये अनुपात 83 फ़ीसदी है।
शिक्षकों की भारी कमी और अनियमितता: इस समय देश में 13.62 लाख प्राथमिक विद्यालय हैं। परन्तु इनमें कुल 41 लाख शिक्षक ही तैनात हैं, जबकि देश में अनुमानित 19.88 करोड़ बच्चे प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ रहे हैं । साथ ही पूरे देश में करीब 1.5 लाख विद्याालयों में 12 लाख से भी ज्यादा पद खाली पड़े हैं, जिससे की करीब 1 करोड़ से ज्यादा बच्चे विद्याालयों से बाहर रहने को बाध्य हैं। बच्चों के स्कूल जाने में अनियमितता के अलावा टीचरों का भी स्कूल से गायब रहना एक बड़ा मुद्दा है। महाराष्ट्र और गुजरात में स्कूली टीचरों की अनुपस्थिति 15 और 17 फीसदी दर्ज की गयी, जबकि बिहार और झारखंड में 38 और 42 फीसदी अनुपस्थिति पाई गयी है.
मध्याह्न भोजन आदि स्कीम का प्रभावी न होना: सरकार बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए प्राथमिक व उच्च प्राथमिक बच्चे के लिए 100 से 150 ग्राम प्रतिदिन मीनू के अनुसार भोजन की व्यवस्था करती है। परन्तु धरातल पर यह सब भ्रष्टाचार और अनियमितता के भेंट चढ़ जाता है।
शिक्षकों का गैर-शैक्षणिक कार्यों में संलिप्तता: सरकारी विद्यालयों में तैनात अध्यापक साधारणतः पल्स पोलियो, जनगणना, चुनाव जैसे तमाम गैर शैक्षिक कार्यों में लगे रहते हैं और शेष समय बच्चों के मध्याह्न भोजन में व्यतीत हो जाता है।
आधारभूत शिक्षण व्यवस्था की कमी और स्कूलों की दूरी: यूनीसेफ की रपट बताती है कि देश के 30 फीसदी से अधिक विद्यालयों में पेयजल की व्यवस्था ही नहीं है। साथ ही 40 से 60 फीसदी विद्यालयों में खेल के मैदान तक नहीं हैं। इसके अलावा कई गाँव, आज भी प्राथमिक शिक्षा की पहुँच से बाहर है.
ड्राप-आउट रेट: सर्वशिक्षा अभियान जैसे समूह को लक्ष्य कर बनाई गई योजनाओं से प्राइमरी स्तर पर नामांकन अनुपात सौ फीसदी के करीब पहुंच चुका है, लेकिन स्कूल छोड़ने की दर ज्यादा होने के चलते 57 फीसदी छात्र ही प्राइमरी एजुकेशन और 10 फीसदी सेकंडरी एजुकेशन पूरी करते हैं।
उच्च शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता: संख्या की दृष्टि से देखा जाए तो भारत की उच्चतर शिक्षा व्यवस्था अमरीका और चीन के बाद तीसरे नंबर पर आती है लेकिन जहाँ तक गुणवत्ता की बात है दुनिया के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है। हालांकि, उच्च शिक्षा में एनरॉलमेंट पिछले 40 वर्षों में 12 गुना बढ़ा है, लेकिन बाकी दुनिया से भारत काफी पीछे है।
रूरल- अर्बन डिवाइड: शिक्षा व्यवस्था में बदलाव गाँवों तक पहुंचे, यह विकसित होते भारत की नितांत आवश्यकता है। लेकिन गांवों में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर शहरों के मुकाबले काफी कमजोर है। यही कारण है कि देश में इंटरनेट का उपयोग करने वाली गरीब 23 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। जबकि इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं की संख्या के आधार पर भारत दुनिया में चीन और अमेरिका के बाद तीसरा स्थान रखता है। वह भी तब जब, 2014 के अंत तक देश की केवल 19.19 फीसदी आबादी ही इंटरनेट से जुड़ी थी।
क्यों आवश्यक है ई-क्रांति
ऊपर दिए गए आंकड़े हमारी अर्थव्यवस्था पर सीधा प्रभाव डालने वालें हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय छात्र विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिए हर साल सात अरब डॉलर यानी करीब 43 हज़ार करोड़ रुपए ख़र्च करते हैं क्योंकि भारतीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाई का स्तर वैश्विक मानकों पर खरा नहीं उतरता है। वही इससे होने वाले नुकसान का आकलन कई गुणा है। इस स्थिति से उबरने के लिए, पारंपरिक तरीकों को अमल में लाया जाए तो हर साल भारतीय स्कूल से पास होने वाले छात्रों में महज 15 फ़ीसदी छात्र विश्वविद्यालयों में पढ़ने जाएं, यह सुनिश्चित करने के लिए पूरे भारत में 1500 नए विश्वविद्यालय खोले जाने की ज़रूरत पड़ेगी। इसके अलावा, अन्य समस्याएं जैसे, शिक्षा की गुणवत्ता, लड़कियों के लिए शौचालय का नहीं होना आदि का निदान खर्च जोड़ा जाए तो यह निश्चित रूप से बड़ा वित्तीय निवेश हैं।
ई-शिक्षा, तकनिकी जटिलताएं और समाधान की दिशा में सफल प्रयोग
ऊपरलिखित सभी समस्याओं पर गौर करें तो इसके केंद्र में तीन महत्वपूर्ण अव्यय मिलेंगे। शिक्षा को सस्ता करना होगा, सुलभ करना होगा और गुणवत्ता में सुधार करना होगा। इस दिशा में ई-शिक्षा को लेकर हुए विभिन्न प्रयोगों से उत्साहजनक परिणाम मिले हैं। पर ध्यान रहे ई-शिक्षा के किसी भी प्रयास को सफल होने के लिए मूलभूत आवश्यकताओं को पूर्ण करना होगा जिन्हें निम्न उपशिर्षकों के माध्यम से समझा जा सकता हैः-
ब्रॉडबैंड और इन्टरनेट की स्पीड सुनिश्चित करना : इंटरनेट की पहुंच और स्पीड को प्रभावी करने के लिए डिजिटल इंडिया के तहत वर्ष 2020 तक देशभर में 60 करोड़ ब्रॉडबैंड कनेक्शन और ग्रामीण क्षेत्रों में 100 फीसदी टेली डेंसिटी का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। भारत में टेलीकॉम सेक्टर की स्थिति संतोषजनक नहीं है।
एक तरफ सरकार का यह मानना रहा है कि टेलिकॉम कंपनियों ने अपने ग्राहक विस्तार के अनुपात में अपने नेटवर्क को अनुकूल रूप से नहीं ढाला है. वहीं टेलिकॉम कम्पनियाँ यह दावा करती हैं कि सरकार की स्पेक्ट्रम नीति सरल नहीं है, और अधिक स्पेक्ट्रम खरीदना हितकर नहीं है.
वस्तुस्थिति इससे अलग है. भारत में प्रत्येक टेलिकॉम ऑपरेटर पर औसतन 28 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम है, जबकि यहीं हिस्सेदारी 117, चीन में 153 और अमेरिका में 136 मेगाहर्ट्ज है. आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि, भारत में प्रत्येक दस लाख ग्राहकों के ऊपर उपलब्ध स्पेक्ट्रम केवल 0.1 मेगाहर्ट्ज है, जबकि यहीं अनुपात अधिकांश यूरोपीय देशों में 3-6 मेगाहर्ट्ज है. भारतीय टेलीकॉम कंपनियों के पास औसतन 13-15 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम है, जबकि चीनी टेलीकॉम कंपनी औसतन 60-100 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम पर पकड़ रखती है. सरकार और टेलीकॉम कंपनियों के बीच में फंसा आम भारतीय नीतिगत शिथिलता से लकवाग्रस्त सेवाओं को ढोने के लिए विवश है.
कंपनियों के पास स्पेक्ट्रम की कमी के कारण वॉयस कॉलिंग में समस्याएं आती हैं, ऐसे हालत में डाटा ट्रांसफर के लिए 5 एमबीपीएस का वैश्विक औसत हासिल करना संभव नहीं है। जबकि भारत में, एक सर्किल में 11-12 टेलिकॉम ऑपरेटर कार्य कर रहे हैं। गौरतलब है कि 1990 से 2000 के बीच मोबाइल डाटा प्रसार में हुए जबरदस्त विस्तार ने वायरलेस डिवाइस और अभियांत्रिकी को भारी विस्तार दिया, जो अब तक जारी है। स्थिति इतनी जटिल होती जा रही कि रेडियो फ्रीक्वेंसी स्पेक्ट्रम में और अधिक डाटा प्रसारित नहीं किया जा सकता है। स्पेक्ट्रम के सह-चैनलों का आपसी हस्तक्षेप तकनिकी जटिलताएं और सूचना प्रवाह की स्पष्टता को प्रभावित करता है।
रेडियो फ्रीक्वेंसी में डेटा यातायात जिस तेजी से बढ़ रहा, अनुमान की मानें तो 2017 तक विश्व को 11 एक्साबाइट डाटा हर महीने, मोबाइल नेटवर्क के माध्यम से स्थानांतरित करने की आवश्यकता होगी। ऐसे में लाइ-फाई तकनीक की संजीवनी ने संचार अर्थव्यवस्था को एक नया आकाश दिया है। यह तकनीक उस समय आई है, जब रेडियो फ्रीक्वेंसी में प्रदुषण चरम पर होने जा रहा था।
स्तरीय शिक्षा सुनिश्चित करना: शिक्षा की गुणवता पाठ्यक्रम और कुशल शिक्षण पर निर्भर करती है। सूचना प्रौद्योगिकी में आई क्रांति, मोबाइल एप्लीकेशन और इन्टरनेट के माध्यम से वीडियो, अक्षर और आवाज, तीनों माध्यमों में शिक्षा सामग्री तैयार कर, सर्वसाधारण को उपलब्ध कराया जा रहा है। स्तरीय, आसानी से समझ में आने वाली और कुशल ट्रेनर्स द्वारा तैयार की गयी सामग्री को इन्टरनेट के माध्यम से दूर-दराज में उपलब्ध कराया जा सकेगा। इसके लिए ‘स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग’ ने मुक्त शिक्षा संसाधन के राष्ट्रीय भंडारण का कार्य शुरू किया है जिसे नेशनल रिपोजिटरी ऑफ़ ओपन एडुकेशन रिसोर्सेज- एनआरओईआर कहा गया है। यह पहल “राष्ट्रीय ई- लाइब्रेरी” का एक हिस्सा बनने जा रही है। यहाँ शिक्षा सामग्री जैसे नक्शे, वीडियो, मल्टीमीडिया, ऑडियो क्लिप, ऑडियो बुक्स, तस्वीरें, लेख, विकी के पृष्ठ और चार्ट आदि उपलब्ध कराया जा रहा।
तकनीक के माध्यम से शिक्षक ऑनलाइन अपने विचारों और संसाधनों को साझा रहे हैं जो विद्यार्थियों के लिए बहुमूल्य सामग्री सिद्ध हो रही। शिक्षकों द्वारा ऑनलाइन साझा किया गया नोट्स हों, परिचर्चा हो, ब्लॉग अथवा ई-बुक हो, वीडयो या कोई अन्य सामग्री; सभी को डिजिटली संकलित कर, उँगलियों पर उपलब्ध कराया जा सकता है। वृहत पाठ्य सामग्री से बच्चों में शोध क्षमता का विकास होगा। कई तरह के गेम्स और एप्लीकेशंस के माध्यम से शिक्षण देने के प्रयोग में बच्चों की समझ और यादास्त में भी वृद्धि पायी गयी। “गल्ली गल्ली सिम सिम” नामक एक अनूठे पहल के अंतर्गत बिहार और दिल्ली के कुछ स्कूलों में बच्चों को ‘फन न लर्न’ एप्लीकेशन के उपयोग से उत्साहजनक परिणाम मिले हैं।
स्थानीय भाषाओं में शिक्षा : भारत सरकार ने स्थानीय भाषाओं में उच्च गुणवत्ता की सामग्री का निर्माण करने के लिए 2013 में ओपन शैक्षिक संसाधन के राष्ट्रीय भंडार का शुभारंभ किया था। लेकिन इसपर अभी भी सही मात्रा में सामग्री उपलब्ध नहीं हो सकी है। हिंदी भाषा की स्थिति बाकी सभी गैर अंग्रेजी भाषाओं से थोड़ी बेहतर जरुर है। सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन, खान अकादमी के साथ मिलकर, “खान अकादमी – हिंदी मंच” विकसित कर रही। यहाँ एनसीईआरटी पाठ्यक्रम के कक्षा 5 से लेकर 8 तक के गणित विषय के वीडियो ट्यूटोरियल और अभ्यास सामग्री उपलब्ध कराया जाना है। इंटरएक्टिव लर्निंग, ग्राफिक्स और चलचित्र के साथ साथ स्थानीय अथवा मातृभाषा में शिक्षा ज्यादा प्रभावी सिद्ध हुई है। डिजिटल एजुकेशन की मदद से आसान और सस्ती शिक्षा, छात्र घर बैठे अपने मनपसंद संस्थान से प्राप्त कर सकेंगे। साथ ही, उन्हें सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों का मार्गदर्शन भी मिल सकेगा। डिजिटल एजुकेशन में विभिन्न मेट्रिक शामिल है जो ई-लर्निंग के विभिन्न प्रकार के लिए लागू होते हैं:
- प्रचलित विडियो
- आभासी लाइव कक्षा
- मल्टीकास्टिंग
- इंटरैक्टिव सिमुलेशन
- सामग्री लेखन व प्रबंधन
- कौशल और ज्ञान का मूल्यांकन
शिक्षा को रुचिकर बनाने के लिए नए प्रयोग: फ्लिप क्लासरूम नामक एक गैर सरकारी प्रयोग में बच्चे वीडयो लेक्चर होमवर्क के रूप में देखते हैं और कक्षा में उसी विषय पर चर्चा होती है। चुकी सभी बच्चों के अपने अपने अलग प्रश्न होते हैं, विषय की समझ अधिक गहरी हो पाती है। इसी तरह के एक और प्रयोग, युक्रेन के टेबेन्को भाइयों द्वारा किया गया। माइंडस्टिक्स नाम के ब्रेन ट्रेनिंग गेम की मदद से, बच्चों के अन्दर गणन की क्षमता में आश्चर्यजनक सुधार पाया गया है।
शिक्षा तक आसान पहुँच सुनिश्चित करना : पाकिस्तान में यूनेस्को द्वारा मोबिलिंक नामक एक मोबाइल एसएमएस आधारित शिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा। फैज़ाबाद में लड़कीयां अपने मोबाइल फोन से अपने शिक्षक से एसएमएस भेज कर उर्दू लिखने का अभ्यास करती मिल जायेंगी। दूर तक कोई स्कूल नहीं होने और कई सामाजिक कारणों की वजह से उसका स्कूल में पढ़ना संभव नहीं था। चार महीनों के अवधि के बाद यह पाया गया कि ‘ए स्तर की साक्षरता परीक्षाओं’ में उतीर्ण हुए छात्राओं की संख्या 27 प्रतिशत से बढ़कर 54 प्रतिशत हो गयी। भारत में तकनीक और ब्रोड्बैंड सेवा के विस्तार की योजनाओं को देखते हुए, यह उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले कुछ वर्षों में शिक्षा तक पहुँच प्रश्न नहीं रह जाना चाहिए।
व्यवस्था प्रबंधन सम्बन्धी सावधानियां: सरकार अगर किसी भी तरह के उपकरण का वितरण करती है, तो यह आवश्यक हो जाता है कि उसके उपयोग और रखरखाव के समबन्ध में उचित ज्ञान पहले दिया जाए। दक्षिणी अफ्रीका, शिक्षा मंत्रालय ने पेरू में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) की दिशा में कौशल सुधार के उद्देश्य से छात्रों के मध्य लैपटॉप विस्तृत किया। अगले वर्ष तक स्थिति यह थी की 92 प्रतिशत बच्चों के कंप्यूटर किसी न किसी समस्या ग्रस्त थे। मेजों पर रंगीन लैपटॉप, धुल और वाइरस, बग, एक्पायर हो चुके सॉफ्टवेर से निष्क्रिय हो प्रयोग की हालत में नहीं थे। चूँकि उन बच्चों को लैपटॉप देने से पहले उसके प्रयोग, रखरखाव, सही इस्तेमाल के संबंध में शिक्षित करने पर ध्यान नहीं दिया गया था। उदहारण यह दर्शाने के लिए पर्याप्त हैं कि भारत के सन्दर्भ में किस तरह की गलतियों की सम्भावना अधिक है।
महिला सशक्तिकरण और इन्टरनेट पर लिंगानुपात संतुलित करना: शिक्षा की गुणवत्ता, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, स्वास्थ्य और पोषण में सुधार लाने और मातृ के साथ-साथ शिशु मृत्यु दर को कम करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शिक्षित महिलायें स्वयं का और अपने परिवार के स्वास्थ्य का बेहतर ध्यान रख पाती है। इन्टरनेट पर आपसी संवाद और समूहों में जुड़ने से स्त्रियों के आत्मविश्वास में वृद्धि पायी गयी, जिससे घरेलु हिंसा जैसे जटिल मामलों में कमी पायी गई है। लेकिन इन्टरनेट पर लिंगानुपात में बड़ा अंतर चिंता का कारण है। इसे दूर करने के लिए गूगल का एक प्लेटफोर्म खासा मददगार साबित हो रहा। www.hwgo.com, हेल्पिंग वीमेन गेट ऑनलाइन, नाम के इस मंच पर इन्टरनेट के प्रयोग और सुरक्षा सम्बन्धी जानकारी के साथ-साथ घरेलु और कामकाजी महिलाओं के लिए सामान्य जानकारी भी सरल रूप में उपलब्ध है।
अर्ली हार्वेस्ट प्रोग्राम
अर्ली हार्वेस्ट, खेती की भाषा से उठाया गया प्रतीकात्मक शब्द है, जिसका आशय फसल को उपयुक्त समय पर हासिल करना, जल्दी हासिल करना है. डिजिटल इंडिया के अन्य सभी स्तंभों/ योजनाओं को पूरा करने के लिए कुछ त्वरित बदलाव अपेक्षित हैं. इन सुविधाओं और बदलाव के आभाव में अन्य सभी योजनाओं का निरुपिकरण, क्रियान्वयन और विस्तार अत्यंत कठिन हो जाएगा.
सन्देश प्रेषित करने के लिए प्लेटफार्म : इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने बड़े पैमाने पर एसएमएस/ई-मेल संदेश भेजने के लिए इस मंच का निर्माण किया है. 15 अगस्त 2014 को जारी इस प्लेटफार्म के डाटाबेस में, सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों और सरकारी कर्मचारियों को शामिल किया जाएगा। यह डेटाबेस लगभग 1.36 करोड़ से अधिक मोबाइल नंबर, और 22 लाख ईमेल के पते रखता है। डेटा संग्रह और डेटा स्वच्छता तो लगातार होते रहने वाली प्रक्रिया है।
सरकार अभिवादन करेगी अब ई- ग्रीटिंग्स के माध्यम से : 14 अगस्त 2014 को शुरू हुए इस मंच के उपयोग से सरकार ई- ग्रीटिंग्स के माध्यम से शुभकामनाएं प्रेषित कर, स्वस्थ राज्य-नागरिक संवाद को बढ़ावा दे रही है. इस पर अनगिनत टेम्पलेट्स और डिजायन उपलब्ध हैं. बड़ी संख्या में लोग माईगॉव. इन जैसे प्लेटफोर्म के माध्यम से ई- ग्रीटिंग्स और अन्य क्रिएटिव का योगदान कर रहे हैं.
बॉयोमीट्रिक हाजिरी: नौकरशाही को दुरस्त और ज्यादा क्रियाशील बनाना, सरकार की प्राथमिकताओं में से एक है. बॉयोमीट्रिक हाजिरी से अनुशासन और नियमितता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है.
सभी विश्वविद्यालयों में वाई-फ़ाई: सभी विश्वविद्यालयों को वाई-फाई के माध्यम से एक जोड़कर, एक साझा नेटवर्क तैयार करना है.
सरकार के भीतर सुरक्षित ईमेल: इलेक्ट्रोनिक सुचना के सुरक्षित आवाजाही के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, इस पर काम में जुटा है. पहले चरण के अंतर्गत 10 लाख कर्मचारी शामिल कर लिए गए हैं. दुसरे चरण में इस संख्या हो 50 लाख किये जाने का लक्ष्य है.
सरकारी ईमेल डिजाइन का मानकीकरण: चाहे वह इंटर-सर्किल वार्तालाप हो अथवा इंट्रा-सर्किल बातचित, सभी सरकारी ईमेल आदि के डिजाइन का मानकीकरण किया जाना है.
पब्लिक वाई-फाई हॉटस्पॉट: जहाँ कही भी १० लाख से अधिक की आबादी है, उन शहरों और पब्लिक जगहों में फ्री वाई-फाई उपलब्ध कराया जाएगा. दूरसंचार विभाग और शहरी विकास मंत्रालय इस कार्य के प्रति क्रियाशील हैं.
स्कूल की किताबें और ई-बुक: मानव संसाधन विकास मंत्रालय और देवता के दूरसंचार विभाग इस योजना के लिए नोडल एजेंसी हैं।
एसएमएस आधारित मौसम की जानकारी, आपदा अलर्ट
खोया-पाया बच्चों के लिए राष्ट्रीय पोर्टल
ई-क्रांति के अंतर्गत कुछ नवीनतम प्रयास
वर्तमान सरकार के कुछ अभिनव पहल, जैसे ई-शिक्षा, ई-बस्ता, नन्द घर आदि इन्टरनेट आधारित प्रोजेक्ट हैं, जो दूर-दराज के इलाकों में शिक्षा सामग्री पहुंचाएंगे, जहाँ कुशल शिक्षकों का आभाव है। ई-बस्ता पहल के अनतर्गत सभी स्कूली किताबों को डिजिटल कर के उसे इन्टरनेट पर उपलब्ध करा दिया जाएगा। जिससे की लैपटॉप, कंप्यूटर, टैबलेट और स्मार्टफोन आदि पर पढ़ा जा सके। इन्टरनेट की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए, लगभग 250,000 माध्यमिक और उच्च-माध्यमिक विद्यालयों को फ्री वाई-फाई से जोड़ा जाएग।
डिजिटल लाकर के अंतर्गत दस्तावेजों को ऑनलाइन सहेजा जा सकेगा, जिससे की सत्यापन और अन्य जांच सम्बन्धी परेशानियों से बचा जा सके। इससे स्कूल और विश्वविद्यालयों में प्रमाणपत्रों आदि के सत्यापन सम्बन्धी परेशानी से मुक्ति मिल जाएगी।
डिजिटल साक्षरता सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम चलाये जायेंगे.
- बड़े पैमाने पर ऑनलाइन ओपन पाठ्यक्रम (एमओओसी- मैसिव ऑनलाइन ओपन कोर्सेज) विकसित किया जाना है ताकि ई-शिक्षा के लिए जरुरी ढांचा विकसित हो
- साथ ही 13 लाख बालवाडी को नन्द घर में बदलने की योजना है। उन जगहों पर आंगनवाडी शिक्षक को डिजिटल टूल इस्तेमाल करने का प्रशिक्षण दिया जाना है।
- ‘ई-पाठशाला’ नाम के एप्लीकेशन की मदद से छात्रों, अभिवावकों और शिक्षकों के लिए शिक्षा सामग्री को ऑनलाइन उपलब्ध कराया गया है।
- सीबीएसई स्कूलों के लिए जारी “सारांश” नाम का मोबाइल एप्लीकेशन, बच्चों के विषयानुसार समझ को जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अन्य बच्चों की तुलना में समझने का विकल्प अभिभावकों को देता है।
- स्कूल के मानकों और मूल्यांकन के ढांचे को पारदर्शी तरीके से लागू करने के लिए ‘शाला-सिद्धि’ नाम का प्लेटफार्म बनाया गया है। एक और अभिनव प्रयास केंद्रीय विद्यालयों के लिए किया गया। शालादर्पण की सेवा अभिभावकों के लिए है, जिससे वह बच्चों की उपस्थिति, अंक-तालिका और स्कूल की समय सारिणी देख सकें।
- सभी स्कूली किताबों को डिजिटल स्वरूप में बदलकर, जन सुलभ बनाया जा रहा ताकि शिक्षा सस्ती और सुलभ हो सके।
- सरकार द्वारा अन्य ऐसे नविन प्रयासों को डिजिटल इंडिया की वेबसाईट (www.digitalindia.gov.in) के साथ-साथ (www.mhrd.gov.in/e-contents) पर देखा जा सकता है।
निष्कर्ष
तकनीक हमेशा से नवयुग में प्रवेश का माध्यम रही है। चाहे वह पेपर हो, प्रिंटिंग प्रेस हो, ब्लैकबोर्ड हो, पुस्तकें हों अथवा इक्कीसवीं सदी का मोबाइल ब्रोड्बैंड और इन्टरनेट-सुविधा हो। अब देखना यह होगा कि इस नव-क्रांति का हम कितना सकारात्मक उपयोग करते हैं। पर इतना तो अवश्य कहा जा सकता है कि जैसे-जैसे ग्रामीण भारत, सूचना तंत्र से जुड़ता जाएगा, भारत में ज्ञान का उत्पादन भी बढ़ता जायेगा और एक बार पुनः हम वैश्विक स्तर पर अपना ज्ञान-पताका फहरा पायेंगे!
योजना , 2015 जनवरी अंक में प्रकाशित