इन्टरनेट की दुनिया और प्रत्यक्ष दुनिया के बीच की दूरी जैसे-जैसे सिमटती जा रही है, नीति-नियमन और संचार तंत्र की राजनितिक अर्थव्यवस्था से जुड़े कई बड़े प्रश्न टकराव बन कर उभर रहे है. दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने एक बड़ा फैसला लेते हुए, इंटरनेट निरपेक्षता का समर्थन किया है और  डाटा शुल्क की दरों में भेदभाव करने पर रोक लगा दी है. इसके साथ ही भारत में फेसबुक द्वारा प्रायोजित फ्री-बेसिक के प्रचार-प्रसार को गहरा धक्का लगा है.

हालाँकि ट्राई ने यह भी स्पष्ट किया है कि किसी सेवा प्रदात्ता को निशुल्क इंटरनेट देने या कम दाम पर इंटरनेट देने से रोका नहीं जा रहा है.  लेकिन ऐसा करने वाली कंपनियों को इसे सभी के लिए समान रखना पड़ेगा. इसका उल्लंघन पर कंपनी को 50 हजार रुपये प्रतिदिन या अधिकतम 50 लाख तक का जुर्माना किया जा सकता है. इन्टरनेट विश्व व्यापार के आंकड़ों पर नज़र डालें तो यह ज़ुर्माना कोई अर्थ नहीं रखता है. ट्राई ने विशेष परिस्थिति में आपातकालीन सेवाओं को नए नियमों के दायरे से बाहर रखा गया है. मसलन, यदि किसी क्षेत्र में बाढ़ आती है और वहां यदि कोई कंपनी कुछ समय के लिए इंटरनेट फ्री देना चाहती है तो दे सकती है. लेकिन इसकी सूचना सात दिनों के भीतर ट्राई को देनी होगी.

इस विवाद को समझने के लिए नेट निष्पक्षता  को समझना होगा. नेट निष्पक्षता  यह सुनिश्चित करता है कि इन्टरनेट सेवा देने वाली कंपनियां इंटरनेट के स्रोर्स, कंटेंट, डेस्टिनेशन और ऐप के आधार पर अलग-अलग दाम तय नहीं कर सकती है.  नेट निष्पक्षता  को सीधे तौर पर रोड पर चल रही गाड़ियों के उदहारण से समझा जा सकता है. अगर इन्टरनेट पर मौजूद अनगिनत वेबसाईट, एप्प आदि को इन्टरनेट की दुनियां का यातायात मान लिया जाए, तो यह निष्पक्षता सुनिश्चित करेगी कि उनके परिचालन पर कोई भेद भाव नहीं बरता जाएगा.

ट्राई के इस फैसले से फेसबुक द्वारा फ्री-बेसिक की मुहीम को गहरा धक्का लगा है. यह फैसला उस समय आया है जब फेसबुक के संस्थापक और प्रमुख मार्क जुकरबर्ग, अपनी भारत यात्रा और प्रधानमन्त्री से मुलाकात के बाद भारत में अपने विस्तार को लेकर सकारात्मक थे. फेसबुक प्रोफाइल में फ्री-बेसिक के समर्थन में एक फीडबैक कैम्पेन को हाल में ही भारत के लोगों ने सक्रिय पाया था.  यह फीडबैक सर्वे फेसबुक द्वारा भारत में पर फ्री बेसिक के समर्थन में माहौल तैयार करने का प्रयास अवश्य था. दरअसल यह विश्वव्य्पी मुहीम  Internet.org के द्वारा प्रायोजित है, जो कि फेसबुक की ही संस्था है. यह संस्था, भारत तथा विश्व में संपर्क बाधा खत्म करने और सूचना-सम्प्रेषण को प्रोतसाहित के लिए प्रतिबद्ध हैं. इस संस्था का लक्ष्य विश्व भर में इन्टरनेट की बुनियादी सुविधा को निःशुल्क उपलब्ध करना है.  इन्टरनेट डॉट ओर्ग फेसबुक और छः अन्य इन्टरनेट कम्पनियों का साझा प्रयास है. जिसमे सैमसंग, एरिक्सन, मीडियाटेक, ओपेरा सॉफ्टवेर , नोकिया और क्वालकॉम जैसी बड़ी कम्पनियां शामिल है. ज़ाहिर है, फ्री बेसिक में फ्री और बेसिक, दोनों ही अव्यय संशय में हैं.

दूरसंचार नियामक प्राधिकरण  के इस फैसले पर जुकरबर्ग की त्वरित टिपण्णी मायने रखती है. नेट निष्पक्षता पर भारत के फैसले पर निराशा जाहिर करते हुए फेसबुक के संस्थापक और प्रमुख मार्क जुकरबर्ग  ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में अपने फेसबुक पोस्ट में कहा कि Internet.org ने कई पहलें की हैं और हम इसके लिए प्रयास करते रहेंगे जब तक इंटरनेट तक पहुंच न हो जाए.  गौरतलब है कि Internet.org एक सशक्त प्रयास है, जिसमे सौर चालित विमानों, उपग्रहों और लेजर के जरिए नेटवर्क का विस्तार, फ्री बेसिक्स के जरिए मुफ्त डाटा पहुंच, एप के जरिए डाटा उपयोग घटाना और एक्सप्रेस वाय-फाय के जरिए स्थानीय उद्यमियों को सशक्त बनाना उद्देश्य रखा गया है.

गौरतलब है कि पिछले वर्ष फेसबुक ने रिलायंस के साथ एक विशेष करार किया था जिसमे रिलायंस कम्युनिकेशन के उपभोक्ताओं को  फेसबुक और कुछ अन्य वेबसाइटों  के सिमित प्रारूप, मौसम के पूर्वानुमान, स्वास्थ्य शिक्षा रोजगार सम्बन्धी कुछ बिना डाटा चार्ज लिए एप्प के माध्यम से उपलब्ध कराया जा रहा था. वहीँ, आरकॉम नाम की कम्पनी ने 38 अन्य वेबसाईट और इन्टरनेट सेवाओं, जिसमे समाचार और मनोरंजन साइट्स थी, को फ्री बेसिक के माध्यम से मुफ्त पहुंचाना तय किया था . इन्टरनेट सेवा क्षेत्र में इस  ‘जीरो रेटिंग’ के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इसके अधीन डाऊनलोड होने वाला डाटा निशुल्क रहता है.

फ्री-बेसिक को लेकर विरोध कर स्वर केवल भारत के अलावा विश्व के अन्य देशों में भी देखने को मिल रहे हैं. जानकारों का मानना है की इससे दो तरह की चुनौतियाँ पैदा होंगी. जहां छोटे उद्धामियों  और स्टार्ट-उप को अपनी सेवाओं के लिए उपयोगकर्ता वर्ग बनाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, वहीँ एक सिमित  तंत्र और वेबसाइट्स का प्राथमिक और व्यापक सूचना तंत्र पर कब्ज़ा हो जाने का डर बना रहेगा. फेसबुक ने फ्री-बेसिक की मुहीम को हाल में ही भारत के अलावा 35 अन्य विकाशशील देशों में प्रचारित किया था. फ्री-बेसिक भिन्न देशों में अलग अलग टेलिकॉम ऑपरेटरों के साथ सक्रिय है. पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, बगलादेश, इंडोनेशिया आदि देशों में फ्री बेसिक अभी काम कर रहा, तो वहीँ भारी अनियमितताओं के चलते ब्राज़ील में इसपर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दिया गया है. भारत, अब विश्व में सबसे ज्यादा इन्टरनेट सेंसोर्शिप लागू करने वाला देश बन गया है. हालाँकि ट्राई ने यह माना  है कि  अगले  दो  साल बाद इन नियमों की समीक्षा की जायेगी और जरूरत पड़ने पर उनमें बदलाव भी किया जाएगा.

समस्या को बड़े कैनवास पर देखें, तो कुछ चिंताएं अवश्य गहन विचार-विमर्श और शोध की मांग करती हैं. इन्टरनेट के व्यापक प्रसार और तकनीक पर हमारी निर्भरता जैसे जैसे बढती जायेगी, सुरक्षा और निजी, पब्लिक डाटा के व्यवहारिक, व्यवसायिक अथवा कुटनीतिक उपयोग अथवा दुरूपयोग के नए आयाम उभरने लगेंगे. ऐसे में फ्री बेसिक के नियंत्रकों के हाथ में सूचना का बड़ा भण्डार होगा. डाटा माइनिंग और शोध से सामाजिक और व्यक्तिक मनोविज्ञान को बड़े स्तर पर समझा जा सकते. ऑटोमेशन यानी यांत्रिकी के अपने समझ द्वारा मानव संसाधन और श्रम की महता तेजी से घटेगी. जहा एक तरफ इन्टरनेट भगौलिक सीमाओं को तेजी से लांघ रहा है, वहीँ क्वांटम फिजिक्स, इन्टरनेट डाटा प्रोपेगेशन में हो रहे क्रन्तिकारी प्रयोगों से विश्व तेजी से बदल रहा है. आर्तिफ़िसिअल इंटेलिजेंस और वर्चुअल रियल्टी के भावी दुनिया में डाटा के महत्त्व को कम कर के नहीं देखा जा सकता है. ट्राई के इस फैसले से भारत के उद्धामियों और नीति-निर्माताओं के पास फ्री-बेसिक और इन्टरनेट के व्यापार को समझने और उभरने का मौक़ा अवश्य मिलेगा.

11 दिसंबर , राष्ट्रीय सहारा के सम्पादकीय में प्रकाशित